1 | धातुः | औपदेशिकधातुः | तास् (लुट्) | तुमुन् | तव्यत् | स्य (लृट्) | स्य (लृङ्) | विशिष्टनूतनसूत्राणि | सुपरिचितानि सूत्राणि | Mnemonic कथा | ||
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2 | क् - १ | शक् | पo | शक्लृ शक्तौ स्वा पo (शक्नोति) | शक्ता | शक्तुम् | शक्तव्यम् | शक्ष्यति | अशक्ष्यत् | |||
3 | च् - ६ | पच् | वच् - पo अन्ये - उo | डुपचँष् पाके भ्वा उ० (पचति/ते) | पक्ता | पक्तुम् | पक्तव्यम् | पक्ष्यति / पक्ष्यते | अपक्ष्यत् / अपक्ष्यत | Shady Cook The cook(पच्-पचति) while chatting(वच्-वक्ति) threwout( रिच्-रिणक्ति) after segregating(विच्-विनक्ति) the spoiled food, sprinkled(सिच्-सिञ्चति) spices on the pot and letitgo(मुच्-मुञ्चति) for distribution. | ||
4 | वच् | वचँ परिभाषणे अ प० (वक्ति) | वक्ता | वक्तुम् | वक्तव्यम् | वक्ष्यति | अवक्ष्यत् | |||||
5 | रिच्-रेच् | रिचिँर् विरेचने रु उ० (रिणक्ति/रिङ्क्ते) | रेक्ता | रेक्तुम् | रेक्तव्यम् | रेक्ष्यति / रेक्ष्यते | अरेक्ष्यत् / अरेक्ष्यत | |||||
6 | विच्-वेच् | विचिँर् पृथग्भावे रु उ० (विनक्ति/विङ्क्ते) | वेक्ता | वेक्तुम् | वेक्तव्यम् | वेक्ष्यति / वेक्ष्यते | अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत | |||||
7 | सिच्-सेच् | षिचँ क्षरणे तु उ० (सिञ्चति/ते) | सेक्ता | सेक्तुम् | सेक्तव्यम् | सेक्ष्यति / सेक्ष्यते | असेक्ष्यत् / असेक्ष्यत | |||||
8 | मुच्-मोच् | मुचॢँ मोक्षणे तु उ० (मुञ्चति/ते) | मोक्ता | मोक्तुम् | मोक्तव्यम् | मोक्ष्यति / मोक्ष्यते | अमोक्ष्यत् / अमोक्ष्यत | |||||
9 | छ् - १ | प्रच्छ् | पo | प्रछँ ज्ञीप्सायाम् तु प० (पृच्छति) | प्रष्टा | प्रष्टुम् | प्रष्टव्यम् | प्रक्ष्यति | अप्रक्ष्यत् | |||
10 | ज् - १९ | त्यज् | त्यज् , भुज्(1-तु), रुज्, भञ्ज्, सञ्ज्, मस्ज् - पo युज्(1-दि), स्वञ्ज् - आo अन्ये - उo | त्यजँ हानौ भ्वा प० (त्यजति) | त्यक्ता | त्यक्तुम् | त्यक्तव्यम् | त्यक्ष्यति | अत्यक्ष्यत् | Story of Rama, the yogi: Rama - gives up all materialistic wishes (त्यज्-त्यजति), serves (भज्-भजते) and donates (यज्-यजते). Rama - keeps clean (निज्-नेनेक्ति) and discerns good from bad (विज्-वेविक्ते) - crookedness (भुज् कौटिल्ये-भुजति), excessive eating (भुज्-भुनक्ति), attachments(युज् - युज्यते) possessions (युज् - युङ्क्ते), destructive habits (रुज्-रुजति), wastage (सृज्-सृजति) are destroyed (भञ्ज्-भनक्ति) by Rama from his heart, also his desires (रञ्ज्-रज्यति). Rama - gets himself the company(सञ्ज्-सजति) of good people , embraces them (स्वञ्ज्-स्वजते), leads a clean (मस्ज् -मज्जति) and simple independent life by cooking for himself (भ्रस्ज्-भृज्जति) | ||
11 | भज् | भजँ सेवायाम् भ्वा उ० (भजति/भजते) | भक्ता | भक्तुम् | भक्तव्यम् | भक्ष्यति/भक्ष्यते | अभक्ष्यत्/अभक्ष्यत | |||||
12 | यज् | यजँ देवपूजासङ्गतिकरणदानेषु भ्वा उ० (यजति/यजते) | यष्टा | यष्टुम् | यष्टव्यम् | यक्ष्यति / यक्ष्यते | अयक्ष्यत् /अयक्ष्यत | व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः 8.2.36 | ||||
13 | निज्-नेज् | णिजिँर् शौचपोषणयोः जु उ० (नेनेक्ति/नेनिक्ते) | नेक्ता | नेक्तुम् | नेक्तव्यम् | नेक्ष्यति/नेक्ष्यते | अनेक्ष्यत्/अनेक्ष्यत | |||||
14 | विज्-वेज् | विजिँर् पृथग्भावे जु उ० (वेवेक्ति/वेविक्ते) | वेक्ता | वेक्तुम् | वेक्तव्यम् | वेक्ष्यति / वेक्ष्यते | अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत | |||||
15 | भुज्-भोज् | भुजोँ कौटिल्ये तु प० (भुजति) भुजँ पालनाभ्यवहारयोः रुधादि:उ० (भुनक्ति/भुङ्क्ते) | भोक्ता | भोक्तुम् | भोक्तव्यम् | भोक्ष्यति भोक्ष्यति/भोक्ष्यते | अभोक्ष्यत् अभोक्ष्यत्/अभोक्ष्यत | |||||
16 | युज्-योज् | युजँ समाधौ दि आ (युज्यते) युजिँर् योगे रु उ० (युनक्ति/युङ्क्ते) | योक्ता | योक्तुम् | योक्तव्यम् | योक्ष्यते योक्ष्यति / योक्ष्यते | अयोक्ष्यत अयोक्ष्यत् / अयोक्ष्यत | |||||
17 | रुज्-रोज् | रुजोँ भङ्गे तु प० रुजति | रोक्ता | रोक्तुम् | रोक्तव्यम् | रोक्ष्यति | अरोक्ष्यत् | |||||
18 | सृज्-स्रज् | सृजँ विसर्गे तु प० (सृजति) सृजँ विसर्गे दि आ० (सृज्यते) | स्रष्टा | स्रष्टुम् | स्रष्टव्यम् | स्रक्ष्यति स्रक्ष्यते | अस्रक्ष्यत् अस्रक्ष्यत | सृजिदृशोर्झल्यमकिति 6.1.58 सृ + अ + ज् = स्रज् | ||||
19 | भञ्ज् | भञ्जोँ आमर्दने रु प० (भनक्ति) | भङ्क्ता | भङ्क्तुम् | भङ्क्तव्यम् | भङ्क्ष्यति | अभङ्क्ष्यत् | |||||
20 | रञ्ज् | रन्ज्ँ रागे भ्वा उ० (रजति/ते) रञ्जँ रागे दि उ० (रज्यति/ते) | रङ्क्ता | रङ्क्तुम् | रङ्क्तव्यम् | रङ्क्ष्यति / रङ्क्ष्यते | अरङ्क्ष्यत् /अरङ्क्ष्यत | |||||
21 | सञ्ज् | षञ्जँ सङ्गे भ्वा प० (सजति) | सङ्क्ता | सङ्क्तुम् | सङ्क्तव्यम् | सङ्क्ष्यति | असङ्क्ष्यत् | |||||
22 | स्वञ्ज् | ष्वन्ज् परिष्वङ्गे भ्वा: आ० (स्वजते) | स्वङ्क्ता | स्वङ्क्तुम् | स्वङ्क्तव्यम् | स्वङ्क्ष्यते | अस्वङ्क्ष्यत | |||||
23 | मस्ज्-मंज् | टुमस्जोँ शुद्धौ तु प० (मज्जति) | मङ्क्ता | मङ्क्तुम् | मङ्क्तव्यम् | मङ्क्ष्यति | अमङ्क्ष्यत् | मस्जिनशोर्झलि 7.1.60 | ||||
24 | भ्रस्ज्-भ्रज्/भर्ज् | भ्रस्जँ पाके तु उ० (भृज्जति/ते) | भ्रष्टा/ भर्ष्टा | भ्रष्टुम्/ भर्ष्टुम् | भ्रष्टव्यम्/ भर्ष्टव्यम् | भ्रक्ष्यति / भ्रक्ष्यते/ भर्क्ष्यति / भर्क्ष्यते | अभ्रक्ष्यत् / अभ्रक्ष्यत/ अभर्क्ष्यत् / अभर्क्ष्यत | भ्रस्जो रोपधयोः रमन्यतरस्याम् 6.4.47 भ् + अ + र् +ज् | ||||
25 | द् - २० | अद् | पद् , हद् , खिद्(2-रु,तु ), विद् - आo छिद् , भिद् , क्षुद् , तुद् , नुद् - उo अन्ये - पo | अदँ भक्षणे अ प० (अत्ति) | अत्ता | अत्तुम् | अत्तव्यम् | अत्स्यति | आत्स्यत् | Story of Latha, the happy person: Latha takes to eating healthy (अद्) and walking ( पद्). She destroys (शद्) the habit of sitting(सद्). She gets healthy by having good bowel movements ( हद्). Latha’s worries (खिद्) are brokendown (छिद्) and disintegrates (भिद्). Latha considers (विद्) that sweat (स्विद्) gives her all happiness. Lathe dismisses (क्षुद्) all sorts of - bruises (तुद्) , instigation(नुद्) and attacks(स्कन्द्). | ||
26 | पद् | पदँ गतौ दि आ० (पद्यते) | पत्ता | पत्तुम् | पत्तव्यम् | पत्स्यते | अपत्स्यत | |||||
27 | शद् | शदॢँ शातने भ्वा: प० (शीयति) शदॢँ शातने तु प० (शीयते) (प० किन्तु शदेः शितः (१.३.६०) इत्यनेन सार्वधातुकलकारेषु लट्, लोट्, लङ्, विधिलिङ् अस्य आत्मनेपदस्यैव रूपाणि भवन्ति) | शत्ता | शत्तुम् | शत्तव्यम् | शत्स्यति | अशत्स्यत् | |||||
28 | सद् | षदॢँ विशरणगत्यवसादनेषु भ्वा प०, तु प० (सीदति उभयत्र) | सत्ता | सत्तुम् | सत्तव्यम् | सत्स्यति | असत्स्यत् | |||||
29 | हद् | हदँ पुरीषोत्सर्गे भ्वा आ० (हदते) | हत्ता | हत्तुम् | हत्तव्यम् | हत्स्यते | अहत्स्यत | |||||
30 | खिद्-खेद् | खिदँ परिघाते तु प० (खिन्दति) खिदँ दैन्ये दि आ० (खिद्यते) खिदँ दैन्ये रुधादि: आ (खिन्ते) | खेत्ता | खेत्तुम् | खेत्तव्यम् | खेत्स्यति खेत्स्यते | अखेत्स्यत् अखेत्स्यत | |||||
31 | छिद्-छेद् | छिदिँर् द्वैधीकरणे रु० उ० (छिनत्ति/छिन्ते) | छेत्ता | छेत्तुम् | छेत्तव्यम् | छेत्स्यति / छेत्स्यते | अच्छेत्स्यत् / अच्छेत्स्यत | |||||
32 | भिद्-भेद् | भिदिँर् विदारणे रु उ० (भिनत्ति/भिन्ते) | भेत्ता | भेत्तुम् | भेत्तव्यम् | भेत्स्यति / भेत्स्यते | अभेत्स्यत् / अभेत्स्यत | |||||
33 | विद्-वेद् | विदँ सत्तायाम् दि आ० अनिट् (विद्यते) विदँ विचारणे रुधादि: आ अनिट् (विन्ते) | वेत्ता | वेत्तुम् | वेत्तव्यम् | वेत्स्यते | अवेत्स्यत | |||||
34 | स्विद्-स्वेद् | ष्विदाँ गात्रप्रक्षरणे दि प० (स्विद्यति) | स्वेत्ता | स्वेत्तुम् | स्वेत्तव्यम् | स्वेत्स्यति | अस्वेत्स्यत् | |||||
35 | क्षुद्-क्षोद् | क्षुदिँर् सम्पेषणे रु उ० (क्षुणत्ति/क्षुन्ते) | क्षोत्ता | क्षोत्तुम् | क्षोत्तव्यम् | क्षोत्स्यति / क्षोत्स्यते | अक्षोत्स्यत् / अक्षोत्स्यत | |||||
36 | तुद्-तोद् | तुदँ व्यथने तु उ० (तुदति/ते) | तोत्ता | तोत्तुम् | तोत्तव्यम् | तोत्स्यति / तोत्स्यते | अतोत्स्यत् / अतोत्स्यत | |||||
37 | नुद्-नोद् | णुदँ प्रेरणे तु उ० (नुदति/ते) | नोत्ता | नोत्तुम् | नोत्तव्यम् | नोत्स्यति / नोत्स्यते | अनोत्स्यत् / अनोत्स्यत | |||||
38 | स्कन्द् | स्कन्दिँर् गतिशोषणयोः भ्वा प० (स्कन्दति) | स्कन्त्ता | स्कन्त्तुम् | स्कन्त्तव्यम् | स्कन्त्स्यति | अस्कन्त्स्यत् | |||||
39 | ध् - ११ | व्यध् | बुध्, युध् - आo अन्ये - पo | व्यधँ ताडने दि प० (विध्यति) | व्यद्धा | व्यद्धुम् | व्यद्धव्यम् | व्यत्स्यति | अव्यत्स्यत् | Story of Kumar, the kshatriya son: Kumar’s father upset at his lazy son that he beats(व्यध्), advises to accomplish (सिध्), gets angry(क्रुध्) and goes to sleep hungry(क्षुध्). Kumar slowly undersands(बुध्) his father, Goes to war(युध्), learns about tidiness (शुध्), improves(राध्) himself. Kumar succeeds(साध्) by capturing(बन्ध्) all enemies. | ||
40 | सिध्-सेध् | षिधुँ संराद्धौ दि प० (सिध्यति) | सेद्धा | सेद्धुम् | सेद्धव्यम् | सेत्स्यति | असेत्स्यत् | |||||
41 | क्रुध्-क्रोध् | क्रुधँ क्रोधे दि प० (क्रुध्यति) | क्रोद्धा | क्रोद्धुम् | क्रोद्धव्यम् | क्रोत्स्यति | अक्रोत्स्यत् | |||||
42 | क्षुध्-क्षोध् | क्षुधँ बुभुक्षायाम् दि प० (क्षुध्यति) | क्षोद्धा | क्षोद्धुम् | क्षोद्धव्यम् | क्षोत्स्यति | अक्षोत्स्यत् | |||||
43 | बुध्-बोध् | बुधँ अवगमने दि आ० (बुध्यते) | बोद्धा | बोद्धुम् | बोद्धव्यम् | भोत्स्यते | अभोत्स्यत | एकाचो बशो भष् झषन्तस्य स्ध्वोः 8.2.37 | ||||
44 | युध्-योध् | युधँ सम्प्रहारे दि आ० (युध्यते) | योद्धा | योद्धुम् | योद्धव्यम् | योत्स्यते | अयोत्स्यत | |||||
45 | रुध् | रुधिँर् आवरणे रु उ (रुणद्धि) | रोद्धा | रोद्धुम् | रोद्धव्यम् | रोत्स्यति/रोत्स्यते | अरोत्स्यत्/अरोत्स्यत | |||||
46 | अनु + रुध् | रुधँ कामे दि आ (अनुरुध्यते) | अनुरोद्धा | अनुरोद्धुम् | अनुरोद्धव्यम् | अनुरोत्स्यते | अन्वरोत्स्यत | |||||
47 | शुध्-शोध् | शुधँ शौचे दि प० (शुध्यति) | शोद्धा | शोद्धुम् | शोद्धव्यम् | शोत्स्यति | अशोत्स्यत् | |||||
48 | राध् | राधँ वृद्धौ दि प० (राध्यति) राधँ संसिद्धौ स्वा प० (राध्नोति) | राद्धा | राद्धुम् | राद्धव्यम् | रात्स्यति | अरात्स्यत् | |||||
49 | साध् | साधँ संसिद्धौ स्वा प० (साध्नोति) | साद्धा | साद्धुम् | साद्धव्यम् | सात्स्यति | असात्स्यत् | |||||
50 | बन्ध् | बन्धँ बन्धने क्र्या प० (बध्नाति) | बन्द्धा | बन्द्धुम् | बन्द्धव्यम् | भन्त्स्यति | अभन्त्स्यत् | झरो झरि सवर्णे 8.4.65 | एकाचो बशो भष् झषन्तस्य स्ध्वोः 8.2.37 | |||
51 | न् - २ | मन् | मनँ ज्ञाने दि आ० (मन्यते) | मन्ता | मन्तुम् | मन्तव्यम् | मंस्यते | अमंस्यत | ||||
52 | हन् | हनँ हिंसागत्योः अ प० (हन्ति) | हन्ता | हन्तुम् | हन्तव्यम् | हनिष्यति | अहनिष्यत् | ** हन् + स्य - ऋद्धनोः स्ये (७.२.७०) | ||||
53 | प् - १५ | तप् | शप्, क्षिप्(1-तु), लिप्, लुप् - उo तप्(1-दि) , तिप् - आo अन्ये - पo | तपँ सन्तापे भ्वा प० (तपति) तपँ ऐश्वर्ये दि आ० (तप्यते, विकल्पेन शप् प० तपति) | तप्ता | तप्तुम् | तप्तव्यम् | तप्स्यति तप्स्यते | अतप्स्यत् अतप्स्यत | Story of a Guru and his student: A Guru and his student live by doing tapas(तप्) and seeds(वप्) grains to live simply. One day due to some reason Rishi curses(शप्) his student and goes to sleep (स्वप्) after throwing(क्षिप्) away his student. The good student trembles(तिप्) at the thought of leaving his guru. To appease he anoints(लिप्) and touches(छुप्) the feet of Guru. Guru’s anger is destroyed(लुप्). Guru is content (तृप्) and is delighted(दृप्). Guru goes(सृप्) and takes-back(आप्) the student. | ||
54 | वप् | डुवपँ बीजसन्ताने भ्वा उ० (वपति/ते) | वप्ता | वप्तुम् | वप्तव्यम् | वप्स्यति / वप्स्यते | अवप्स्यत् / अवप्स्यत | |||||
55 | शप् | शपँ आक्रोशे भ्वा उ० शपति/ते) | शप्ता | शप्तुम् | शप्तव्यम् | शप्स्यति / शप्स्यते | अशप्स्यत् /अशप्स्यत | |||||
56 | स्वप् | ञिष्वपँ शये अ प० (स्वपिति) | स्वप्ता | स्वप्तुम् | स्वप्तव्यम् | स्वप्स्यति | अस्वप्स्यत् | |||||
57 | क्षिप्-क्षेप् | क्षिपँ प्रेरणे दि प० (क्षिप्यति), क्षिपँ प्रेरणे तु उ० (क्षिपति/ते) | क्षेप्ता | क्षेप्तुम् | क्षेप्तव्यम् | क्षेप्स्यति / क्षेप्स्यते | अक्षेप्स्यत् / अक्षेप्स्यत | |||||
58 | तिप्-तेप् | तिपृँ क्षरणे भ्वा आ० (तेपते) | तेप्ता | तेप्तुम् | तेप्तव्यम् | तेप्स्यति | अतेप्स्यत् | |||||
59 | लिप्-लेप् | लिपँ उपदेहे तु उ० (लिम्पति/ते) | लेप्ता | लेप्तुम् | लेप्तव्यम् | लेप्स्यति | अलेप्स्यत् | |||||
60 | छुप्-छोप् | छुपँ स्पर्शे तु प० (छुपति) | छोप्ता | छोप्तुम् | छोप्तव्यम् | छोप्स्यति | अच्छोप्स्यत् | |||||
61 | लुप्-लोप् | लुपॢँ छेदने तु उ० (लुम्पति/ते) | लोप्ता | लोप्तुम् | लोप्तव्यम् | लोप्स्यति / लोप्स्यते | अलोप्स्यत् / अलोप्स्यत | |||||
62 | तृप्-तर्प् तृप्-त्रप् | तृपँ प्रीणने दि प० (तृप्यति) | तर्प्ता त्रप्ता | तर्प्तुम् त्रप्तुम् | तर्प्तव्यम् त्रप्तव्यम् | तर्प्स्यति त्रप्स्यति | अतर्प्स्यत् अत्रप्स्यत् | अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् 6.1.59 तृ + अ + प् | ||||
63 | दृप्-दर्प् दृप्-द्रप् | दृपँ हर्षमोहनयोः दि प० (दृप्यति) | दर्प्ता द्रप्ता | दर्प्तुम् द्रप्तुम् | दर्प्तव्यम् द्रप्तव्यम् | दर्प्स्यति द्रप्स्यति | अदर्प्स्यत् अद्रप्स्यत् | अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् 6.1.59 | ||||
64 | सृप्-सर्प् सृप्-स्रप् | सृपॢँ गतौ भ्वा प० (सर्पति) | सर्प्ता स्रप्ता | सर्प्तुम् स्रप्तुम् | सर्प्तव्यम् स्रप्तव्यम् | सर्प्स्यति स्रप्स्यति | असर्प्स्यत् अस्रप्स्यत् | अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् 6.1.59 | ||||
65 | आप् | आपॢँ व्याप्तौ स्वा प० (आप्नोति) | आप्ता | आप्तुम् | आप्तव्यम् | आप्स्यति | आप्स्यत् | |||||
66 | भ् - ३ | यभ् | यभ् - पo अन्ये - आo | यभँ मैथुने भ्वा प० (यभति) | यब्धा | यब्धुम् | यब्धव्यम् | यप्स्यति | अयप्स्यत् | Good companionship: When good companionship(यभ्) starts(रभ्), one obtains(लभ्) everything. | ||
67 | रभ् | रभँ राभस्ये भ्वा आ० (आरभते) | रब्धा | रब्धुम् | रब्धव्यम् | रप्स्यते | अरप्स्यत | |||||
68 | लभ् | डुलभँष् प्राप्तौ भ्वा आ० (लभते) | लब्धा | लब्धुम् | लब्धव्यम् | लप्स्यते | अलप्स्यत | |||||
69 | म् - ४ | गम् | रम् - आo अन्ये - पo | गमॢँ गतौ भ्वा प० (गच्छति) | गन्ता | गन्तुम् | गन्तव्यम् | गमिष्यति | अगमिष्यत् | गम् + सि > गमेरिट् परस्मैपदेषु (७.२.५८) | Sita, the good devotee: Sita is a good devotee. She goes(गम्) to the temple, prays(नम्) , gives(यम्) money to poor and enjoys(रम्) life everyday. | |
70 | नम् | णमँ प्रह्वत्वे शब्दे च भ्वा प० (नमति) | नन्ता | नन्तुम् | नन्तव्यम् | नंस्यति | अनंस्यत् | |||||
71 | यम् | यमँ उपरमे भ्वा प० (यच्छति) | यन्ता | यन्तुम् | यन्तव्यम् | यंस्यति | अयंस्यत् | |||||
72 | रम् | रमुँ क्रीडायाम् भ्वा आ० (रमते) | रन्ता | रन्तुम् | रन्तव्यम् | रंस्यते | अरंस्यत | |||||
73 | श् - ११ | दिश्-देश् | दिश् - उo लिश् (1-दि) - आo अन्ये - पo | दिशँ अतिसर्जने तु उ० (दिशति/ते) | देष्टा | देष्टुम् | देष्टव्यम् | देक्ष्यति/ देक्ष्यते | अदेक्ष्यत्/ अदेक्ष्यत | Lets follow path of ahimsa: Directed(दिश्) in the path of Himsa(रिश्), he goes(लिश्-लिशति) and with his reduced(लिश् - लिश्यते) intellect he enters(विश्) into path of Himsa(रुश्). He cries aloud(क्रुश्) and is touched (मृश् & स्पृश्) and finally bitten (दंश्) by Himsa. | ||
74 | रिश्-रेश् | रिशँ हिंसायाम् तु प० (रिशति) | रेष्टा | रेष्टुम् | रेष्टव्यम् | रेक्ष्यति | अरेक्ष्यत् | |||||
75 | लिश्-लेश् | लिशँ गतौ तु प० (लिशति) लिशँ अल्पीभावे दि आo (लिश्यते) | लेष्टा | लेष्टुम् | लेष्टव्यम् | लेक्ष्यति लेक्ष्यते | अलेक्ष्यत् अलेक्ष्यत | |||||
76 | विश्-वेश् | विशँ प्रवेशने तु प० (विशति) | वेष्टा | वेष्टुम् | वेष्टव्यम् | वेक्ष्यति | अवेक्ष्यत् | |||||
77 | रुश्-रोश् | रुशँ हिंसायाम् तु प० (रुशति) | रोष्टा | रोष्टुम् | रोष्टव्यम् | रोक्ष्यति | अरोक्ष्यत् | |||||
78 | क्रुश्-क्रोश् | क्रुशँ आह्वाने रोदने च भ्वा प० (क्रोशति) | क्रोष्टा | क्रोष्टुम् | क्रोष्टव्यम् | क्रोक्ष्यति | अक्रोक्ष्यत् | |||||
79 | दृश्-द्रश् | दृशिँर् प्रेक्षणे भ्वा प० (पश्यति) | द्रष्टा | द्रष्टुम् | द्रष्टव्यम् | द्रक्ष्यति | अद्रक्ष्यत् | सृजिदृशोर्झल्यमकिति 6.1.58 दृ + अ + श् = द्रश् | ||||
80 | मृश्-मर्श् मृश्-म्रश् | मृशँ आमर्शने तु प० (मृशति) | मर्ष्टा म्रष्टा | मर्ष्टुम् म्रष्टुम् | मर्ष्टव्यम् म्रष्टव्यम् | मर्क्ष्यति म्रक्ष्यति | अमर्क्ष्यत् अम्रक्ष्यत् | अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् 6.1.59 | ||||
81 | स्पृश्-स्पर्श् स्पृश्-स्प्रश् | स्पृशँ संस्पर्शने तु प० (स्पृशति) | स्पर्ष्टा स्प्रष्टा | स्पर्ष्टुम् स्प्रष्टुम् | स्पर्ष्टव्यम् स्प्रष्टव्यम् | स्पर्क्ष्यति स्प्रक्ष्यति | अस्पर्क्ष्यत् अस्प्रक्ष्यत् | अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् 6.1.59 | ||||
82 | दंश् | दंशँ दशने भ्वा प० (दशति) | दंष्टा | दंष्टुम् | दंष्टव्यम् | दंक्ष्यति | अदंक्ष्यत् | |||||
83 | ष् - १३ | त्विष्-त्वेष् | त्विष्, द्विष्, विष्, कृष्(1-तु) - उo अन्ये - पo | त्विषँ दीप्तौ भ्वा उ० (त्वेषति/ते) | त्वेष्टा | त्वेष्टुम् | त्वेष्टव्यम् | त्वेक्ष्यति /त्वेक्ष्यते | अत्वेक्ष्यत् / अत्वेक्ष्यत | Story of Light: Light(त्विष्): All dveshAs(द्विष्) are grounded to nothing(पिष्). It spreads (विष्) everywhere without Violence(शिष्-शेषति). What is leftbehind(शिष्) is embraced(श्लिष्) and produces joy(तुष्). Then every dushkarma(दुष्) is pushed(पुष्) away and is driedup(शुष्). Light engraves(कृष्) happiness in our heart. | ||
84 | द्विष्-द्वेष् | द्विषँ अप्रीतौ अ उ० (द्वेष्टि/द्विष्टे) | द्वेष्टा | द्वेष्टुम् | द्वेष्टव्यम् | द्वेक्ष्यति/ द्वेक्ष्यते | अद्वेक्ष्यत् / अद्वेक्ष्यत | |||||
85 | पिष्-पेष् | पिषॢँ सञ्चूर्णने हिंसायाम् च रु प० (पिनष्टि) | पेष्टा | पेष्टुम् | पेष्टव्यम् | पेक्ष्यति | अपेक्ष्यत् | |||||
86 | विष्-वेष् | विषॢँ व्याप्तौ जु उ० (वेवेष्टि/वेविष्टे) | वेष्टा | वेष्टुम् | वेष्टव्यम् | वेक्ष्यति / वेक्ष्यते | अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत | |||||
87 | शिष्-शेष् | शिषँ हिंसायाम् भ्वा प० (शेषति) शिषॢँ विशेषणे रु प० (शिनष्टि) | शेष्टा | शेष्टुम् | शेष्टव्यम् | शेक्ष्यति | अशेक्ष्यत् | |||||
88 | श्लिष्-श्लेष् | श्लिषँ आलिङ्गने दि प० (श्लिष्यति) | श्लेष्टा | श्लेष्टुम् | श्लेष्टव्यम् | श्लेक्ष्यति | अश्लेक्ष्यत् | |||||
89 | तुष्-तोष् | तुषँ प्रीतौ दि प० (तुष्यति) | तोष्टा | तोष्टुम् | तोष्टव्यम् | तोक्ष्यति | अतोक्ष्यत् | |||||
90 | दुष्-दोष् | दुषँ वैकृत्ये दि प० (दुष्यति) | दोष्टा | दोष्टुम् | दोष्टव्यम् | दोक्ष्यति | अदोक्ष्यत् | |||||
91 | पुष्-पोष् | पुषँ पुष्टौ विभागे च दि प० (पुष्यति) | पोष्टा | पोष्टुम् | पोष्टव्यम् | पोक्ष्यति | अपोक्ष्यत् | |||||
92 | शुष्-शोष् | शुषँ शोषणे दि प० (शुष्यति) | शोष्टा | शोष्टुम् | शोष्टव्यम् | शोक्ष्यति | अशोक्ष्यत् | |||||
93 | कृष्-कर्ष्/क्रष् | कृषँ विलेखने भ्वा प० (कर्षति) | कर्ष्टा/क्रष्टा | कर्ष्टुम्/क्रष्टुम् | कर्ष्टाव्यम्/क्रष्टव्यम् | कर्क्ष्यति/क्रक्ष्यति | अकर्क्ष्यत्/अक्रक्ष्यत् | अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् 6.1.59 | ||||
94 | कृष्-कर्ष्/क्रष् | कृषँ विलेखने तु उ० (कृषति/कृषते) | कर्ष्टा/क्रष्टा | कर्ष्टुम्/क्रष्टुम् | कर्ष्टाव्यम्/क्रष्टव्यम् | कर्क्ष्यति/क्रक्ष्यति/ कर्क्ष्यते/क्रक्ष्यते | अकर्क्ष्यत्/अक्रक्ष्यत्/ अकर्क्ष्यत/अक्रक्ष्यत | अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् 6.1.59 | ||||
95 | स् - २ | वस् | पo | वसँ निवासे भ्वा प० (वसति) | वस्ता | वस्तुम् | वस्तव्यम् | वत्स्यति* | अवत्स्यत् | सः स्यार्द्धधातुके 7.4.49 | ||
96 | घस् | घसॢँ अदने भ्वा प० (घसति) | घस्ता | घस्तुम् | घस्तव्यम् | घत्स्यति* | अघत्स्यत् | सः स्यार्द्धधातुके 7.4.49 | ||||
97 | ह् - ८ | दह् | दह्, मिह् , रुह् - पo अन्ये - उo | दहँ भस्मीकरणे भ्वा प० (दहति) | दग्धा | दग्धुम् | दग्धव्यम् | धक्ष्यति | अधक्ष्यत् | एकाचो बशो भष् झषन्तस्य स्ध्वोः 8.2.37 | Story of Milkman Raghu: Everymorning Raghu takes the basma(दह्) annoints(दिह्) himself and goes to milk(दुह्). When the milk sprouts(मिह्) and appears(रुह्), The calf tastes(लिह्) and drinks the milk first. Raghu then carries(वह्) the leftover milk inside and binds(नह्) the cow. | |
98 | दिह्-देह् | दिहँ उपचये अ उ० (देग्धि/दिग्धे) | देग्धा | देग्धुम् | देग्धव्यम् | धेक्ष्यति/ धेक्ष्यते | अधेक्ष्यत्/ अधेक्ष्यत | एकाचो बशो भष् झषन्तस्य स्ध्वोः 8.2.37 | ||||
99 | दुह्-दोह् | दुहँ प्रपूरणे अ उ० (दोग्धि/दुग्धे) | दोग्धा | दोग्धुम् | दोग्धव्यम् | धोक्ष्यति/ धोक्ष्यते | अधोक्ष्यत्/ अधोक्ष्यत | एकाचो बशो भष् झषन्तस्य स्ध्वोः 8.2.37 | ||||
100 | मिह्-मेह् | मिहँ सेचने भ्वा प० (मेहति) | मेढा | मेढुम् | मेढव्यम् | मेक्ष्यति | अमेक्ष्यत् | |||||
101 | रुह्-रोह् | रुहँ बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च भ्वा प० (रोहति) | रोढा | रोढुम् | रोढव्यम् | रोक्ष्यति | अरोक्ष्यत् | |||||
102 | लिह्-लेह् | लिहँ आस्वादने अ उ० (लेढि/लीढे) | लेढा | लेढुम् | लेढव्यम् | लेक्ष्यति/ लेक्ष्यते | अलेक्ष्यत्/ अलेक्ष्यत | |||||
103 | वह् | वहँ प्रापणे भ्वादि उ० (वहति/ते) | वोढा | वोढुम् | वोढव्यम् | वक्ष्यति/ वक्ष्यते | अवक्ष्यत्/ अवक्ष्यत | सहिवहोरोदवर्णस्य 6.3.12 | ||||
104 | नह् | णहँ बन्धने दि उ० (नह्यति/ते) | नद्धा | नद्धुम् | नद्धव्यम् | नत्स्यति/ नत्स्यते | अनत्स्यत्/ अनत्स्यत | नहो धः 8.2.34 |