A | B | C | D | E | F | |
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1 | रूपम् | |||||
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3 | सामान्यम् अभ्यासकार्यम् | अभ्याससिद्धिः | ||||
4 | सामान्यम् अभ्यासकार्यम् | अभ्यासयोजनम् | इणः परे सस्य षत्वम् (औपदेशिकधातुषु षकारादिषु) | |||
5 | सार्वधातुकलकाराः - लट् विधिलिङ् लोट् लङ् | प्रत्ययसिद्धिः | अङ्गस्य अदन्तत्वस्य कलनम्। | |||
6 | सार्वधातुकलकाराः - लट् विधिलिङ् लोट् लङ् | प्रत्ययसिद्धिः | प्रत्ययादेशः | झकारादेशः | सिच्-अभ्यस्त-विदि-भ्यश् च झेर् जुस् ङितः। -- झः अन्तः प्रत्ययादीनाम् अत् अभ्यस्तात् प्रत्ययादीनाम् झः आत्मनेपदेषु अनतः प्रत्ययादीनाम् झः अत् शीङो रुट् (झि) वेत्तेः विभाषा झः अत् रुट् बहुलं छन्दसि रुट् | |
7 | सार्वधातुकलकाराः - लट् विधिलिङ् लोट् लङ् | प्रत्ययसिद्धिः | ङित्-त्वातिदेशः | सार्वधातुकम् अपित् ङित्-वत् | ||
8 | सार्वधातुकलकाराः - लट् विधिलिङ् लोट् लङ् | प्रत्यययोजनम् | प्रत्ययस्य पित्-त्वस्य, अजादित्वस्य च कलनम्। | |||
9 | सार्वधातुकलकाराः - लट् विधिलिङ् लोट् लङ् | प्रत्यययोजनम् | अङ्गकार्यम्। | पिति अजादौ | ||
10 | सार्वधातुकलकाराः - लट् विधिलिङ् लोट् लङ् | प्रत्यययोजनम् | अङ्गकार्यम्। | पिति हलादौ | ||
11 | सार्वधातुकलकाराः - लट् विधिलिङ् लोट् लङ् | प्रत्यययोजनम् | अङ्गकार्यम्। | ङिति अजादौ | ||
12 | सार्वधातुकलकाराः - लट् विधिलिङ् लोट् लङ् | प्रत्यययोजनम् | अङ्गकार्यम्। | ङिति हलादौ | ई हल्यघोः । धातुः + श्ना | (अभ्यस्ताः - घुः) इद्दरिद्रस्य । भियोऽन्यतरस्याम् । जहातेश्च । | |
13 | सार्वधातुकलकाराः - लट् विधिलिङ् लोट् लङ् | प्रत्यययोजनम् | अङ्गकार्यम्। | ङिति हलादौ | हि य्* योजनम् | आ च हौ । लोपो यि घ्वसोर् एत् हौ अभ्यास-लोपश् च |
14 | सार्वधातुकलकाराः - लट् विधिलिङ् लोट् लङ् | प्रत्यययोजनम् | सन्धिकार्यम् अनदन्ताङ्गेषु। | |||
15 | सार्वधातुकलकाराः - लट् विधिलिङ् लोट् लङ् | अट्/आट् योजनम् | न "मा स्म"-योगे | |||
16 | आर्धधातुक-सामान्य-योजनम् | अन्तिमवर्णलोपः | अ → लोपः। हल्+य → \१ णिजन्ताः → णेर् अनिटि | अतो लोपः। यस्य हलः। | ||
17 | लृट् | धातोः परिज्ञानम् | गणज्ञानम् | |||
18 | लृट् | धातोः परिज्ञानम् | आत्मनेपदित्वज्ञानम् | |||
19 | लृट् | विवक्षा-कलनम् | कर्तरि/ कर्मकर्तरि/ भवे/ कर्मणि | |||
20 | लृट् | धात्वादेशः | ||||
21 | लृट् | विकरण-योजनम् | इडागमः | |||
22 | लृट् | विकरण-योजनम् | ङित्त्व-अतिदेशः | |||
23 | लृट् | तिङ्-योजनम् | ||||
24 | यङ् | धात्वादेशः | ||||
25 | यङ् | अङ्गकार्यम् | ङित्-त्वात् | सम्प्रसारणे विशेषः | ||
26 | यङ् | अङ्गकार्यम् | य-कारादित्वात् | |||
27 | यङ् | अङ्गकार्यम् | अभ्यासः | |||
28 | यङ् | आत्मनेपदि-प्रत्यययोजनम् | ||||
29 | यङ्-लुक् | धात्वादेशः | ||||
30 | यङ्-लुक् | अङ्गकार्यम् | लुक्यपि अभ्यासः | |||
31 | यङ्-लुक् | पदनिश्चयः, आत्मनेपदिता | परस्मैपदी, सार्वधातुकेषु शप्-लुक् विकरणम् इव | |||
32 | यङ्-लुक् | प्रत्ययसिद्धिः | + ईट् तिङि पिति वा। | यङो वा॥ | ||
33 | यङ्-लुक् | प्रत्यययोजनम् | ||||
34 | सन् | धात्वादेशः | ||||
35 | सन् | धातोः परिज्ञानम् | इडानुकूल्यज्ञानम् | |||
36 | सन् | धातोः परिज्ञानम् | ||||
37 | सन् | प्रत्ययनिर्माणम् | इडागमः | |||
38 | सन् | प्रत्ययनिर्माणम् | अतिदेशः | कित्-त्वम् | अनिट्सु इगन्तानाम् च इक्-समीप-हलन्तानाम् (जुहूषामि चिक्रीषामि)। | |
39 | सन् | प्रत्ययनिर्माणम् | अतिदेशः | वैकल्पिक-कित्-त्वम् | ||
40 | सन् | अङ्गकार्यम् | ||||
41 | सन् | अङ्गकार्यम् | दीर्घः | अज्झनगमां। तनोतेर्विभाषा। | ||
42 | सन् | अङ्गकार्यम् | अभ्यासः | साधारणम् | ||
43 | सन् | अङ्गकार्यम् | अभ्यासः | अ → इ। उ+पुँ|यण्|ज् →इ। क्वचित् विकल्पः। मान्बधदान्शान्भ्यो ई क्वचित्। | ||
44 | सन् | अङ्गकार्यम् | अभ्यासलोपः | |||
45 | सन् | प्रत्यययोजनम् | ||||
46 | णिच्| णिङ् (प्रातिपदिकात्) | संज्ञानिश्चयः | भसंज्ञा-विधानम् | णौ इष्ठन्वत् (वा) | ||
47 | णिच्| णिङ् (प्रातिपदिकात्) | संज्ञानिश्चयः | अनार्धधातुकता | |||
48 | णिच्| णिङ् (प्रातिपदिकात्) | अङ्गकार्यम् | णिचि वृद्धिकार्यम्, अन्यत्र | णौ इष्ठन्वत् (वा) | ||
49 | ||||||
50 | क्यच् | अङ्गकार्यम् | अ/आ → ई क्यचि च॥ | |||
51 | क्यच् | अङ्गकार्यम् | अपत्यार्थक-यकारदोषः। क्यच्-च्व्योश्च। | |||
52 | क्यच् | अङ्गकार्यम् | अश्व-वृषयोर् मैथुनेच्छायाम् → असुँक् | |||
53 | क्यच् | अङ्गकार्यम् | लालसायाम् सुँक्-असुकौ। | |||
54 | क्यच् | अङ्गकार्यम् | इ|ई → अकृत्सार्वधातुकयोः दिर्घः। | |||
55 | क्यच् | अङ्गकार्यम् | ऋ → रीङ् ऋतः। ओ|औ → अव्|आव् ( वान्तो यि प्रत्यये।) | |||
56 | क्यच् | अङ्गकार्यम् | न् → नः क्ये | |||
57 | क्यच् | धातुसंज्ञा-विधानम् | परस्मैपदित्वम् | |||
58 | क्यच् | विकरणम् | कर्तरि शप् | |||
59 | क्यच् | निपातनानि | अशनायोदन्यधनाया बुभुक्षापिपासागर्द्धेषु । | |||
60 | काम्यच् | धातुसंज्ञा-विधानम् | परस्मैपदित्वम् | |||
61 | काम्यच् | विकरणम् | कर्तरि शप् | |||
62 | काम्यच् | अङ्गकार्यम् | न-लोपः। | सुबन्तेभ्यः विहितम् काम्यच् → राजन् + सुप् + काम्यच् → राजन् + काम्यच् → राजकाम्य | ||
63 | क्यङ् | अङ्गकार्यम् | पुंवत्-भावः | *[^ऊङ्] - क्यङ्-मानिनोश् च॥ न कोपधायाः॥ | एनी→ एतायते। श्येनी → श्येनायते। | |
64 | क्यङ् | अङ्गकार्यम् | अच् → अकृत्-सार्वधातुकयोः दीर्घः (किति यि)। ऋ → रीङ् ऋतः॥ | फलायते मात्रीयते | ||
65 | क्यङ् | अङ्गकार्यम् | स् → कर्तुः क्यङ् सलोपश्च। ओजसो ऽप्सरसो नित्यं पयसस्तु विभाषया। {सकारस्येष्यते लोपः शब्दशास्त्रविचक्षनैः} | अप्सरायते। ओजायते। पयस्यते पयायते। | ||
66 | क्यङ् | अङ्गकार्यम् | *न् → नलोपः प्रातिपदिकान्तस्य। युष्मदस्मदोः त्वद्-मद् आदेशः। | राजायते। मद्यते त्वद्यते। मरुद्यते | ||
67 | क्यङ् | धातुसंज्ञा-विधानम् | आत्मनेपदित्वम् | |||
68 | क्यङ् | विकरणम् | कर्तरि शप् | |||
69 | ||||||
70 | णित् | अङ्गकार्यम् | अजन्तानाम् अदुपधाया वा वृद्धिः | अचो ञ्णिति अत उपधायाः | ||
71 | णित् | अङ्गकार्यम् | उपधागुणः | पुगन्तलघूपधस्य च | ||
72 | ||||||
73 | णित् कृत् | अङ्गकार्यम् | *आ-> *आय् | आतो युक् चिण्कृतोः | पायम् पायकः | |
74 | णित् कृत् | अङ्गकार्यम् | विशेषाः हनि जनि वधि रभि लभि, कॄति, चक्षि, केषुचिन् मकारान्तेषु | |||
75 | ||||||
76 | णिच् | धात्वादेशः | ||||
77 | णिच् | अङ्गकार्यम् | णित्त्व-कार्याणि साधारणानि | |||
78 | णिच् | अङ्गकार्यम् | मितां ह्रस्वः॥ (सर्वे अम्-अन्ताः) | |||
79 | णिच् | अङ्गकार्यम् | एच् → आत्। | आदेच उपदेशेऽशिति। | गै → गापि | |
80 | णिच् | अङ्गकार्यम् | आत् → पुक्। उपधागुणः। (दीर्घस्यापि।) | |||
81 | णिच् | अङ्गकार्यम् | षुँक् लुँक् आगमः। | |||
82 | ||||||
83 | निष्ठा | प्रकृत्याः परिज्ञानम् | इडानुकूल्यम् | |||
84 | निष्ठा | इडागमः | ||||
85 | निष्ठा | इडागमः | कित्त्व-कार्याणि | |||
86 | निष्ठा | अङ्गकार्यम् | सेटि गुणादेशः | |||
87 | निष्ठा | अङ्गकार्यम् | सेटि णिलोपः | निष्ठायां सेटि । | कारितम् | |
88 | निष्ठा | अङ्गकार्यम् | अनिट्-सु | श्-ऊठ्-आदेशः। | ||
89 | निष्ठा | प्रत्ययादेशः | ||||
90 | ||||||
91 | ल्यप् | अतिदेशः | स्थानिवद्भावेन कित्-त्वम् | |||
92 | ल्यप् | अशित्त्व-कार्याणि | एचः धात्वादेशः | आद् एच उपदेशेऽशिति | ||
93 | ल्यप् | कित्त्व-कार्याणि | गुणनिषेधः। | |||
94 | ल्यप् | कित्त्व-कार्याणि | अनुनासिकोपधानाम् लोपः | अनिदितां हल उपधायाः (नस्य) किति (लोपः)। …वा ल्यपि। | विध्वस्य | |
95 | ल्यप् | कित्त्व-कार्याणि | सम्प्रसारणम् बहूनाम् | |||
96 | ल्यप् | कित्त्व-कार्याणि | ॠकारान्तानाम् | ऋत इद्धातोः। उदोष्ठपूर्वस्य। हलि च (र-वान्तानां इको दीर्घः।) | विकीर्य। प्रपूर्य। | |
97 | ल्यप् | कित्त्व-कार्याणि | जन्/सन्/खन् इत्यत्र विकल्पेन आकारादेशः। | ये विभाषा। | ||
98 | ल्यप् | कित्त्व-अकार्याणि | - | घुमास्थागापाजहातिसां हलि (ईकारः)। न ल्यपि। | ||
99 | ल्यप् | पित्त्व-कार्याणि | ह्रस्वस्य | नलोपेन ह्रस्वान्तताम् प्रातवताम् | ह्रस्वस्य पिति कृति तुक्। | निषुत्य। विहृत्य | |
100 | ल्यप् | अनिट्त्व-कार्याणि | णेर् अनिटि |