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यज्ञ क्या है?

  • संस्कृत की 'यज्' धातु से 'यज्ञ' शब्द बना है, जिसके तीन अर्थ होते हैं-
    • देवत्व - देव पूजा
    • संगतिकरण - स्वयं, परिवार, समाज, राष्ट्र, विश्व, प्रकृति का संग
    • दान - स्थूल व सूक्ष्म के प्रति कर्तव्य पालन

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यज्ञ के प्रकार

अध्यापनं ब्रह्मयज्ञः पितृयज्ञस्तु तर्पणम् ।

होमो दैवो बलिर्भौतो नृयज्ञोऽतिथिपूजनम् ॥ मनुस्मृतिः ३।७०॥

यज्ञ

ब्रह्मयज्ञ

देवयज्ञ

पितृयज्ञ 

भूतयज्ञ वा बलिवैश्वदेवयज्ञ

अतिथि

यज्ञ

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१) ब्रह्मयज्ञ –

  • स्वाध्याय और अध्यापन।
  • स्वाध्याय में मोक्षपरक ग्रन्थों का वाचन और ओम् का जप, अर्थात् उपासना सम्मिलित है।
  • पढ़ना-पढ़ाना ही ऋषि-ऋण को उतारना है।
  • ब्रह्मयज्ञ का दूसरा भाग ब्रह्म में तल्लीन होना है, यह विशेष रूप से अपने लिए होता है।
  • फल –
    • शुभ-गुणों में वृद्धि, परमात्मा से प्रेम,
    • प्रारब्ध जन्य दोषों से मुक्ति, ऊर्जा का उर्ध्वारोहण,
    • दैवीय व आध्यात्मिक दुखों से निवृति,
    • निष्काम कर्म की प्रेरणा
    • मोक्ष में आस्था व उसका मार्ग प्रशस्त होना।

स्वाध्यायेनार्चयेदर्षीन् होमैर्देवान् यथाविधि।

पितॄन् श्राद्धैश्च नॄनन्नैर्भूतानि बलिकर्मणा॥ मनुस्मृतिः ३।८१॥

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२) देवयज्ञ –

  • हवन करना।
  • यह देव-ऋण से उऋण होना ही है।
  • फल –
    • वातावरण-शुद्धि,
    • संक्रामक रोगों से बचाव व सुरक्षा,
    • रोग प्रतिरोधक क्षमता का अभिवर्धन व स्वास्थ्य-लाभ।
    • नकारात्मकता व तनाव से मुक्ति, सकारात्मक भाव व विचारों की वृद्धि,
    • बुरी आदतों से बचाव व मन पर नियन्त्रण

स्वाध्यायेनार्चयेदर्षीन् होमैर्देवान् यथाविधि।

पितॄन् श्राद्धैश्च नॄनन्नैर्भूतानि बलिकर्मणा॥ मनुस्मृतिः ३।८१॥

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३) पितृयज्ञ –

  • ऋषियों, विद्वानों व वृद्ध जनों या यथायोग्य सत्कार तथा पूर्वजों का तर्पण व श्राद्ध
  • यह पितृ-ऋण से मुक्त होने का एक उपाय है।
  • फल -
    • गुरुजनों के कृपा व आशीर्वाद प्राप्ति
    • ज्ञान व गुणों में
    • आयु, बल व यश की प्राप्ति

स्वाध्यायेनार्चयेदर्षीन् होमैर्देवान् यथाविधि।

पितॄन् श्राद्धैश्च नॄनन्नैर्भूतानि बलिकर्मणा॥ मनुस्मृतिः ३।८१॥

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४) भूतयज्ञ वा बलिवैश्वदेवयज्ञ –

  • बलि = खाद्य पदार्थों की आहुति देना
  • घर में पके खाने के घृत या मिष्ट युक्त कुछ अंश को गृह्य-अग्नि में आहुत करना तथा अन्न का एक भाग जीव-जन्तुओं के लिए एक देना
  • यह ’भूत-ऋण’ से मुक्ति है ।
  • वस्तुतः, यही यज्ञ मुख्यरूप से ऊपर कहे गृहस्थ हिंसा-कर्म का प्रायश्चित्त है। अन्य यज्ञ प्रायः अन्य प्रत्युपकारों के लिए हैं
  • हमसे हीनतर प्राणी भी हमपर उपकार करते हैं । इसलिए हमें भी उनका उपकार करना है, यही इस यज्ञ का आशय है ।
  • फल –
    • सूक्ष्म जीवों का पोषण,
    • सब जन्तुओं के उपकार का बोध, उनके और हमारे सूक्ष्म सम्बन्ध (web of life) का ज्ञान
    • जीव-जन्तुओं पर किए हिंसा-कर्म का प्रायश्चित्त।

पितॄन् श्राद्धैश्च नॄनन्नैर्भूतानि बलिकर्मणा॥ मनुस्मृतिः ३।८१॥

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५) अतिथियज्ञ वा नृयज्ञ –

  • विद्वान, परोपकारी, संन्यासी, उपदेशकों को निवास व भोजन देना, और उनसे उपदेश ग्रहण करना।
  • फल –
    • धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष सम्बन्धी संशयों का निवारण
    • कर्तव्याकर्तव्य का बोध।

स्वाध्यायेनार्चयेदर्षीन् होमैर्देवान् यथाविधि।

पितॄन् श्राद्धैश्च नॄनन्नैर्भूतानि बलिकर्मणा॥ मनुस्मृतिः ३।८१॥

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यज्ञ चिकित्सा

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“या क्रिया व्याधिहरणी सा चिकित्सा निगद्यते

दोषधातुमलानां या साम्यकृत्सैव रोगृहृत्”

- भावप्रकाश/पूर्वखण्डः/1/5/11

That is, any action by which disease is cured is called treatment.

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रोगों का कारण एवं यज्ञ चिकित्सा द्वारा निवारण -

  1. वातावरण व जलवायु सम्बन्धी दोष
  2. आहार – विहार
  3. आचार – विचार
  4. दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या से उत्पन्न त्रिदोषों का असंतुलन
  5. श्रम व विश्राम में असंतुलन/अव्यवस्थित जीवनशैली
  6. शारीरिक व मानसिक रेचन का अभाव
  7. संक्रमण
  8. आनुवंशिक
  9. प्रारब्ध जन्य दोष

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यज्ञ चिकित्सा द्वारा रोग निवारण (Patanjali Wellness/Yoggram) -

  • Arthritis, Knee Pain (गठिया, घुटने का दर्द)
  • Obesity & Diabetes (मोटापा और मधुमेह)
  • Fungal Infection (कवकीय संक्रमण)
  • Heart problems (हृदय संबंधी समस्याएं)
  • Kidney problems (गुर्दे संबंधी समस्याएं)
  • Gynecological disorders (स्त्रीरोग संबंधी विकार)
  • Skin Allergy, Psoriasis (त्वचा की एलर्जी, सोरायसिस)
  • Cancer: brain tumor, Breast Cancer (कैंसर: ब्रेन ट्यूमर, स्तन कैंसर)
  • Sinus, Migrain, Neumonia, Asthma, Lung Fibrosis, Tuberculosis (साइनस, माइग्रेन, अस्थमा, निमोनिया, फाइब्रोसिस, क्षय रोग)
  • Paralysis (पक्षाघात)

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यज्ञ चिकित्सा के शास्त्रीय प्रमाण -

यदि क्षितायुर्यदि वा परेतो यदि मृत्योरन्तिकं नीत एव।

तमा हरामि निर्ऋतेरुपस्थादस्पार्शमेनं शतशारदाय।। (अर्थव. 3.11.2)

किसी की आयु क्षीण हो चुकी है, वह जीवन से निराश हो चुका है, मृत्यु के बिल्कुल समीप पहुँच चुका है, तो भी यज्ञ चिकित्सा उसे मृत्यु की मुख से लौटा लाती है।

आयुर्वेदेषु यत्प्रोक्तं यस्य रोगस्य भेषजम्।

तस्य रोगस्य शान्त्यर्थं तेन तेनैव होमयेत्।। (पंचरत्नसारसारसंग्रह)

आयुर्वेद ग्रन्थों में जिन रोगों के शमन के लिए जिन औषधियों का विधान है, उन-उन रोगों के शमन हेतु उन्हीं औषधियों से हवन करें।

यया प्रयुक्तया चेष्ट्या राजयक्ष्मा पुरा जित:।

तां वेदविहितामिष्टमारोग्यार्थी प्रयोजयेत्।। (च.सं.चि. स्थानम्- 8.122)

प्राचीनकाल में जिन यज्ञों के प्रयोग से राजयक्ष्मा को जीता जाता था, आरोग्य चाहने वाले मनुष्य को उन वेदविहित यज्ञों का अनुष्ठान करना चाहिए।

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यज्ञ चिकित्सा से रोग निवारण कैसे ?

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Ion and health –

    • हवा में रहने वाले धनायनों से 'रक्त सेरोटोनिन' की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे स्वास्थ्य की हानि होती है और रोगी को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करना बहुत मुश्किल होता है। (अल्बर्ट कुर्जर)
    • ऋण-आयनों वाले वातावरण में रहने से 'रक्त सेरोटोनिन' की मात्रा में भारी कमी आती है, जो स्वास्थ्य लाभ देता है।
    • यज्ञ करने से ऋणावेशित कणों की संख्या बढ़ती है और धनावेशित कणों की संख्या घट जाती है।

Psychological benefits –

    • मंत्रों और भजनों के उच्चारण से एक विशेष स्पंदन उत्पन्न होता है, जो मन व वातावरण को शांत व ध्यानपूर्ण बनाता है।
    • तनाव कम होना
    • सात्विक गुणों का विकास व कल्याण की भावना को बढ़ावा मिलता

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यज्ञ एक सूक्ष्म आहार -

    • शरीर को उर्जा चाहिए भोजन नहीं
    • जिसके (इन्द्रियों द्वारा) ग्रहण करने से उर्जा मिलती है वो आहार है
    • आहार, हम पांच प्रकार से ग्रहण करते हैं- रूप, रस, गंध, स्पर्श व शब्द
    • आहार, हम तीन रूपों में ग्रहण करते हैं – Solid (90 days), Liquid (30 days), Gas (5 min)
    • वायु रूप आहार का शोधन, पोषण, औषधीय, सुगंधित एवं जीवनीय-शक्ति युक्त करने का कार्य यज्ञ से होता है।

वायुमंडलीय प्रदूषण को कम करना –

    • यज्ञ से उत्पन्न विभिन्न गैसों की प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया (photochemical process) द्वारा Indoor एवं Outdoor दोनों ही स्तरों पर हानिकारक गैसें जैसे कि CO2, SO2, और NO2 आदि के स्तरों में कमी आती है।
    • यज्ञ करने से PM 2.5, PM 10 और RSPM के स्तर में कमी आती है।

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विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों पर प्रभाव –

    • यज्ञ से वाष्पीकृत आर्गेनिक अणु (Molecule) वायुमंडल में आने पर एटॉमिक रेडिएशन को पृथक् (dissociate) कर देता है। जिससे रेडियोधर्मी (Radioactive) बीटा किरणों को तोड़ने में लग जाती है और मानव शरीर तक नहीं पहुंच पाती हैं।
    • यज्ञ के बाद विद्युत चुम्बकीय विकिरण (Electromagnetic Radiation) के स्तर में कमी आती है।

यज्ञ भस्म (Ash) के लाभ

    • यज्ञ की भस्म के अंदर खनिज तत्व मौजूद होते हैं, जैसे कि Zinc, Iron, Calcium, Magnesium आदि।
    • यज्ञ भस्म का सेवन करने पर खनिज तत्त्वों की कमी दूर होती है तथा शरीर क्षारीय (Alkaline) बनता है।
    • पेयजल में भस्म मिलाने से क्षारीय बनता है।
    • पेड़-पौधों हेतु खाद एवं रोगों की रोकथाम में भी विशेषकर लाभप्रद होती है।
    • यज्ञीय वातावरण से शरीर क्षारीय बनता है, क्षारीय शरीर के अंदर कोई रोग नहीं होता है।

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सूक्ष्म औषधि (Nano-Medicine) -

    • जो भी पदार्थ यज्ञाग्नि के संपर्क में आता है उसको अपने जैसा सूक्ष्म से सूक्ष्मतम बना देती है।
    • सूक्ष्मीकरण से पदार्थ की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है
    • सूक्ष्मीकरण से जड़ी-बूटियां, थोड़े से ही सेवन से असीम एवं अनंत लाभ देती हैं।

माइक्रोबियल प्रदूषण (Microbiological Pollution) -

    • यज्ञ के दौरान विशिष्ट पदार्थों को जलाने से कुछ फाइटोकेमिकल्स और वाष्पशील यौगिक (जैसे Eucalyptol, Endo-Borneol, p-Cyanoaniline) निकलते हैं जिनमें रोगाणुरोधी गुण होते हैं। जिनके वायुमंडल में फैलने पर विभिन्न Pathogenic Bacteria, Virus, Fungus आदि से हमारा बचाव होता है।
    • यज्ञ हवा को शुद्ध व कीटाणुरहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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Testimonilas

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Depression

https://youtu.be/zZQK-EQ5b5s

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Migrain

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Sinus/Asthma/Tuberculosis

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Lung fibrosis

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Pneumonia

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Tumor/Cancer

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Fibroid & Multiple disease

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Psoriasis & other Skin Problems

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Throat/Thyroid

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Muscular Dystrophy

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Paralysis

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Misscarrige, PCOD & other Gynecological Problems

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Arthritis/Knee Pain

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Obesity & Diabetes

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Spinal Cord infection

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Infertility

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Heart Problems

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Spinal Cord

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Chronic Ulcer

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Kidney Problems

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Comma

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fissure

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Fungal Infection

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Black fungus

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Tuberculosis

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Insomnia

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Multiple Sclerosis

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Cough, Sneezing, Cold & Allergies

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Over Bleeding Problem

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Knee Problem

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Genetic Problems

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Peripheral artery Disease (PAD)

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विशेष अनुभव

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यज्ञ के विशेष अनुभव - 1

  • भोपाल में हुए भयावह गैस कांड को 34 साल हो चुके हैं।
  • 2-3 दिसंबर 1984 की रात भोपाल में केवल 25 हज़ार लोगों की मौत हुई।
  • जब भोपाल में गैस रिसाव हुआ तो कुशवाहा परिवार के सभी लोगों को खांसी और आंखों में जलन होने लगी थी।
  • कुशवाहा दंपत्ति ने उस वक्त घर में ही अग्निहोत्र शुरू कर दिया।
  • 20 मिनट तक ये यज्ञ चला और देखते ही देखते उनका घर 'मिथाइल आइसो साइनाइड गैस' से मुक्त हो गया और कुछ ही देर में कुशवाहा और उनकी पत्नी की सांस संबंधी दिक्कत दूर हो गई।
  • घटना के कुछ दिन बाद जब सबको इस बात की जानकारी हुई तो त्रासदी से बचे पीड़ित लोगों को ठीक करने और वातावरण से 'मिथाइल आइसो साइनाइड गैस' का प्रभाव दूर करने के लिए 'अग्निहोत्र यज्ञ' किया जाने लगा।

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यज्ञ के विशेष अनुभव - 2

  • वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. संजय जैन आपरेशन से पहले OT में इचाइची, जायफल, जावित्री, गिलोय, ब्राहृमी, शंखपुष्पी, नागकेसर, मुलेठी, लाल चंदन, कपूर, बेल, नीम, पीपल का तना, गूलर की छाल, पलाश, घी, बहेड़ा, सोंठ एवं मधु जैसे करीब सौ प्रकार की जड़ी बूटियों से हवन करते हैं।
  • हवन करने से OT के टेबल, उपकरण, दीवार एवं एसी से सैंपल लेकर कल्चर कराने पर बैक्टीरिया, फंगस या माइक्रोआर्गनिज्म नहीं मिला। सामान्य तौर पर ओटी में संक्रमण की दर तीन प्रतिशत मिलती है, जबकि यहां एक प्रतिशत से कम मिली।
  • डा. जैन ने बड़ी संख्या में मरीजों के घुटने, कूल्हे एवं हड्डियों का आपरेशन किया। ये सभी संक्रमणमुक्त रहे।
  • उनका यह शोध दिसंबर 2023 में गोवा में आयोजित विश्व कांग्रेस आयुर्वेद में प्रस्तुत किया गया।

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यज्ञ के विशेष अनुभव - 3

  • लखनऊ स्थित राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान में हुए शोध में हवन के औषधीय धुएं की वजह से जीवाणु और विषाणुओं के नष्ट होने की पुष्टि हुई है।
  • शोध में 94 प्रतिशत तक जीवाणु व विषाणु नष्ट होने का जिक्र किया गया है।
  • साथ ही बताया गया है कि एक बार हवन करने से घर का वातावरण एक सप्ताह तक पूरी तरह शुद्ध रहता है।

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यज्ञ धूम के गुणधर्म

  • Neuroprotective (न्यूरोप्रोटेक्टिव) - तंत्रिका तंत्र (Nervous System) का संरक्षण, पुन: प्राप्ति (recovery) या उत्थान (regeneration) में प्रभावी।
  • Anti-viral (एंटी वाइरल) - वायरस के फैलाव को रोकने एवं नष्ट करने का कार्य करता है।
  • Anti-bacterial (एंटी बैक्टीरियल) - बैक्टीरिया के फैलाव को रोकने एवं नष्ट करने का कार्य करता है।
  • Anti-inflammatory (एंटी इंफ्लामेट्री) - संक्रमण (Infection) एवं सूजन को कम करने वाला।
  • Anti-diabetic (एंटी डायबिटिक) - Type 1, Type 2 मधुमेह (Diabetes) को कम करने वाला।
  • Anti-tumour (एंटी-ट्यूमर) - असामान्य कोशिका वृध्दि को रोकने वाला।
  • Anti-microbial (एंटी माइक्रोबियल) - सूक्ष्मजीवों को नष्ट करता है एवं उनके विकास को रोकता है।
  • Anti-hypertensive (एंटी हाइपरटेंसिव) - रक्तचाप संतुलन एवं उच्चरक्तचापरोधी।
  • Anti proliferative (एंटी प्रोलिफ़ेरेटिव) - घातक कोशिकाओं के प्रसार को रोकने व मंद करने वाला।
  • Anti-fatigue (एंटी फटीग) - शरीर को ऊर्जान्वित एवं थकान को कम करने वाला।
  • Anti-oxidative (एंटी ऑक्सीडेटिव) - कोशिका के अंदर अणुओं के ऑक्सीकरण (oxidation) को रोकता है।
  • Anti-parasitic (एंटी पैरासिटिक) - परजीवियों (parasitism) द्वारा संक्रमण के प्रबंधन और उपचार में लाभप्रद।
  • Anhidrotic agent (एनहाइड्रोटिक एजेंट0)- सामान्य रूप से पसीने आने में असमर्थता को ठीक करने वाला।
  • Antinociceptive (एंटीनोसाइसेप्टिव) - संवेदी न्यूरॉन्स द्वारा दर्दनाक या हानिकारक उत्तेजना को कम करने वाला।
  • Anti-leishmanial (एंटी लीशमैनियल) - लीशमैनियासिस (त्वचा के घाव-जख्म) को ठीक करने वाला।

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वैज्ञानिक शोध-पत्रों में प्रकाशित यज्ञ चिकित्सा के लाभ -

  • Addiction (लत, व्यसन)
  • Alzheimer’s Disease (भूलने की बीमारी)
  • Cancer (कैंसर)
  • Diabetes (मधुमेह)
  • Environment (पर्यावरण)
  • Mental health problems (मानसिक स्वास्थ्य समस्या)
  • Microbiological, Bacteria, Virus and Fungal (माइक्रोबायोलॉजिकल, बैक्टीरिया, वायरस और फंगल)
  • Migraine (आधासीसी)
  • Osteoarthritis (अस्थिसंधिशोथ)
  • Radiation (रेडिएशन)
  • Respiratory disease (श्वसन संबंधी रोग)
  • Thyroid (थाइरॉयड)

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Application of Yagya Therapy

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  • समय -
    • यज्ञ सामान्यत: सूर्योदय और सूर्यास्त के समय किया जाना चाहिए, तथा चिकित्सा हेतु किसी भी समय किया जा सकता है।
  • समिधा (लकड़ी) -
    • आम, पीपल, बरगद, पलाश, शमी, बड़, गूलर, बिल्व, प्लक्ष (पाकड़) आदि का प्रयोग करें
    • अथवा रोगानुसार यज्ञ चिकित्सक से परामर्श लें।
  • यज्ञ (हवन) कुंड व अन्य पात्र -
    • पिरामिड आकार के सोना, चांदी, कॉपर अथवा मिट्टी से बना यज्ञ कुंड सर्वश्रेष्ठ होता है।
  • सामग्री एवं घी -
    • रोगानुसार यज्ञ सामग्री से रोग की अवस्थानुसार मंत्रोच्चारण पूर्वक आहुतियाँ प्रदान करें।
    • प्रत्येक आहुति में 2 से 3 ग्राम गोघृत के साथ उसी अनुपात में यज्ञ सामग्री की भी आहुति दें।
    • यज्ञ के पश्चात् शांत-अग्नि के अंगारों पर जड़ी-बूटियों, गुग्गुल व घी आदि द्रव्यों के मिश्रण रखें।

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How to do Yagya Therapy?

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  • यज्ञ चिकित्सा विधि -
    • सुखासन अथवा आरामदायक स्थिति में बैठे।
    • यदि रोगी बैठ न पाता हो तो अभिभावक रोगी के बिस्तर के पास में यज्ञ करें, ताकि रोगी द्वारा औषधीय वायु को ग्रहण किया जा सके।
    • ओमकार, गायत्री मंत्र या महामृत्युंजय मंत्र द्वारा अग्नि प्रज्वलित करें तथा अच्छी प्रकार से समिधा प्रज्वलित होने पर सामग्री और घी से 11, 21, 51, 108 या चिकिसक के निर्देशानुसार आहुति दें।
  • योगाभ्यास -
    • यज्ञ के बाद धूनी वाले वायुमंडल में रोगानुसार सूक्ष्म व्यायाम, आसन तथा प्राणायाम आदि का अभ्यास अवश्य करें।
  • विशेष सावधानियां -
    • यज्ञ चिकित्सा के समय कमरे की दरवाजे-खिड़कियाँ खुली रखें।
    • गाय का घी, समिधा एवं सामग्री शुद्ध व प्रमाणिक ही प्रयोग करें।
    • चिकित्सा के समय सात्विक आहार-विहार का पालन अवश्य करें।

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How to prepare Yagya Samagri?

  1. सुगन्धित - कस्तूरी, केशर, अगर, तगर, श्वेतचन्दन, लाल चन्दन, लौंग, चिरायता, इलायची, जायफल, जावित्री, देवदार आदि।
  2. पुष्टिकारक - घी, अश्वगंधा, शतावर, सफ़ेद मूसली, अन्न, जौ, गेहूँ, उड़द आदि।
  3. मीठे पदार्थ - शक्कर, सहत (शहद), छुवारे, दाख आदि।
  4. रोगनाशक - सोमलता अर्थात् गिलोय आदि औषधियाँ।
  5. समिधा - आम आदि

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ऋतुओं के अनुसार समिधायें

ऋतु

महीना

अंग्रेजी महीना

समिधा

शिशिर

माघ-फाल्गुन

जनवरी, फरवरी, मार्च

गूलर या बरगद

वसंत

चैत्र-बैशाख

मार्च, अप्रैल, मई

शमी

ग्रीष्म

ज्येष्ठ-आषाढ

मई, जून, जुलाई

पीपल

वर्षा

श्रावण-भाद्रपद

जुलाई, अगस्त, सितम्बर

ढ़ाक या बिल्व

शरद

आश्विन-कार्तिक

सितम्बर, अक्तूबर, नवम्बर

गूलर, पाकर या आम

हेमंत

मार्गशीर्ष-पौष

नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी

खैर

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रोगानुसार यज्ञ सामग्री

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स्वामी दयानन्द की दृष्टि में यज्ञ

  • विद्वानों को चाहिए कि इस संसार के सुख के लिए यज्ञ से शोधे हुए जल से और वनों के रखने से अतिऊष्णता दूर करें। अच्छे बनाए हुए अन्न से बल उत्पन्न करें। यज्ञ के आचरण से तीन प्रकार के दु:ख (आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक) को निवार के सुख को उन्नति देवें। ऋग्वेद 1.116.8
  • मनुष्य को चाहिए कि वह आप्त विद्वानों के संग से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिध्दि करने वाले यज्ञ का विस्तार करें।
  • यज्ञ के अनुष्ठान से वायु और जल की उत्तम शुध्दि तथा पुष्टि होती है, वह दूसरे उपाय से कभी नहीं हो सकती। जो मनुष्य यज्ञ आदि से जल आदि पदार्थों को शुध्द करके सेवन करते हैं, उन पर सुखरुप अमृत की वर्षा निरंतर होती है। यजुर्वेद 1.12, 36.12
  • वर्षा का हेतु जो यज्ञ है, उसका अनुष्ठान करके नाना प्रकार के सुख उत्पन्न करने चाहिए। क्योंकि यज्ञ के करने से वायु और वृष्टि जल की शुध्दि द्वारा संसार में अत्यंत सुखद सिध्द होता है।
  • मनुष्यों को इस प्रकार का यज्ञ सदैव करना चाहिए जो पूर्ण श्री, संपूर्ण आयु, अन्न आदि पदार्थ के रोगनाश और सब सुखों का विस्तार करता है। वह किसी को कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
  • मनुष्य को चाहिए कि जीवन पर्यंत शरीर, प्राण, अंतः करण, दसों इन्द्रियां और जो सबसे उत्तम सामग्री हो उसको यज्ञ के लिए समर्पित करें, जिससे पाप रहित कृतकृत्य होके परमात्मा को प्राप्त होकर इस जन्म और द्वितीय जन्म में सुख को प्राप्त होवें ।
  • आर्यवर शिरोमणि महाशय, ऋषि-महर्षि, राजे-महाराजे लोग बहुत सा होम करते और कराते थे। जब तक इस होम करने का प्रचार रहा तब तक आर्यवर्त देश रोगों से रहित एवं सुखों से पूरित था। अब भी प्रचार हो तो वैसा ही हो जाए।

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आह्वान

  • यज्ञ सार्वभौमिक, वैज्ञानिक एवं पंथ-निरपेक्ष पावनी परम्परा है। यज्ञ से पर्यावरण शुध्दि, आरोग्य-प्राप्ति, उत्तम कृषि, रेडिएशन से मुक्ति, माइक्रो बायोलॉजिकल प्रदूषण से मुक्ति, मनोकामना पूर्ति, देव पूजन, ईश्वर आराधना, मानस शांति से लेकर मानवीय चेतना का उत्कर्ष करके हमें अति-मानस चेतना की ओर अग्रसर करने वाले अनेकों लाभ प्रदान करता है।
  • पवित्र ज्वाला वाली यज्ञाग्नि हजारों लाभ प्रदान करती है, जिसमे दृष्ट-अदृष्ट, लौकिक-पारलौकिक, भौतिक एवं आध्यात्मिक हजारों लाभ शामिल हैं। तो आइये संकल्प लें संसार के श्रेष्ठतम कर्म यज्ञ को अपनाएं, पिंड एवं ब्रह्मांड में संतुलन करने वाले यज्ञ को जीवन का अभिन्न अंग बनायें एवं प्रकृति मां के प्रति अपने ऋणों को अदा करें।
  • अत: आइए भोगोन्माद, मजबहोन्माद एवं युध्दोन्माद रूपी पाश्चात्य संस्कृति को नहीं, अपितु सार्वभौमिक, वैज्ञानिक एवं पन्थनिरपेक्ष पावनी संस्कृति, भारतीय संस्कृति, याज्ञिक संस्कृति को अपनाए, “भाग्य हाथों की लकीरों में नहीं अपितु भाग्य लिखने की यज्ञरुपी कलम हमारे हाथों में है”
  • स्वयं यज्ञ को अपनाएं एवं यज्ञीय जीवन जिएं और अपने सौभाग्य को जगाएं।

यही हमारी संस्कृति, यही हमारी पहचान।

आओं करें मिलकर यज्ञ सब, हो ऋषि-राष्ट्र सम्मान।।

न होता कोरोना आदि रोगों का वार।

आते यदि यज्ञ-योग-आयुर्वेद के द्वार।।

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वैश्विक चुनौतियाँ एवं यज्ञ

  • आज निरंकुश भोगवाद के कारण प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से पर्यावरण प्रदूषित हो चुका है।
  • 130 देशों के 2500 साइंटिस्टों की टीम ने अपनी रिपोर्ट “Intergovernmental Panel on Climate Change” में कहा है, कि धरती का तापमान इस सदी में 1.5 डिग्री बढ़ जाएगा, जिससे मौसम में आमूलचूल परिवर्तन होंगे। ‘ग्लेशियर तेजी से पिघल जायेगें, समुद्रतटीय शहर संकट से घिरे होंगे, रोगों का भयानक हमला होगा, गंगा जैसी बड़ी नदियों का जल स्तर कम हो जायेगा, कई पेड़-पौधें व पशु-पक्षियों की प्रजातियां विलुप्त हो जायेंगी, फसलों की पैदावार घटेगी, जिससे बहुत बड़ी जान-माल की हानि होगी।
  • शताब्दी के अंत तक पूरी दुनिया में एक करोड़ से भी ज्यादा लोगों के सामने पीने के लिए पानी नहीं होगा।
  • आज भारत जैसे देश की 40% नदियाँ सूख चुकी हैं, 55% कुएं सूख चुके हैं, 45% भूगर्भ जलस्तर नीचे जा चुके हैं।
  • पूरी दुनिया के 10 बड़े ऐसे शहर है, जहां पर पानी की आपूर्त्ति कुछ ही दिनों के बाद समाप्त हो जायेगी।
  • ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के अनुसार 70 लाख से अधिक लोगों कि मृत्यु वायु-प्रदूषण से हो जाती है।

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