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वितान भाग-1 हिंदी पूरक कक्षा-11

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आलो आंधारि

लेखिका

अध्याय

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आलो आंधारि

Be बेबी हालदर

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लेखिका परिचय

जम्मू कश्मीर के किसी स्थान पर जन्म, जहाँ सेना कि नौकरी में पिता तैनात थे | तेरह वर्ष कि उम्र में नौकरी में दुगनी उम्र के व्यक्ति से विवाह के कारण 7वीं कक्षा में पढाई छोडनी पड़ी | 12 – 13 वर्षों बाद पति कि ज्यादतियों से परेशान होकर तीन बच्चों सहित पति का घर छोड़ दुर्गापुर से फरीदाबाद आ गई | कुछ समय बाद गुडगाँव चली आई| बांग्ला में लिखी एवं हिंदी में अनुदित आलो –आँधारि एक मात्र पुस्तक | वर्तमान में गुडगाँव में घरेलु नौकरानी के रूप में कार्यरत

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बेबी हालदर

बेबी हालदर ने जीवन की पहली सांस कश्मीर में ली. कुछ साल की थी कि उसकी माँ पति के उत्पीड़न से तंग आकर घर से चली गई जाते समय उसे मासूम बेटी का भी ख्याल नहीं आया. वह माँ को याद करके रोती तो पिता उसे बुरी तरह धुतकारता और मारता.

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मासूम हील्डर की समझ में कुछ नहीं आता वे मार खाकर भी पिता की गोद में सिर रख देती. उसकी जिंदगी में उस समय कष्टप्रद मोड़ आया जब सौतेली माँ ने घर में कदम रखा. पिता की भाषा कड़वी हो गई और घर में प्रताड़ना की चाप सुनाई देने लगी. सौतेली माँ के आग्रह पर उसका पिता ने टूटे परिवार को कश्मीर की वादियों से निकालकर पश्चिम बंगाल के शहर ”दुर्गापुर” ले आया|

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पिता ने बेबी हलदर का एक स्कूल में नाम लिखा दिया. वहाँ उसकी मुलाकात जीवन के हसीन तरीन दिनों से हुई मगर इन दिनों का साथ बहुत कम था. छठी कक्षा की परीक्षा पास की थी कि सिकुड़ते संसाधन और बिगड़ते हालात उसे स्कूल से दूर कर दिया.

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बेबी हालदर

पिता ने इकलौती बेटी को बोझ समझा और अपने से भी अधिक उम्र के पुरुष से उसकी शादी कर दी. हील्डर दुल्हन बनी अपनी सहेलियों के साथ बैठी थी. उस समय उसने अपनी एक सहेली से कहा ”अच्छा है मेरी शादी हो रही है कम से कम पेट भरकर खाना तो मिलेगा” जिस घर में गरीबी का डेरा हो वहाँ बच्चे खाने से ज्यादा और क्या सोच सकते हैं. चाहे इसके की व्यवस्था के लिए उनकी बलि क्यूँ न दिया जार हा हो. लेकिन विदाई के कुछ दिन बाद ही हील्डर जीवन में परेशानियां फिर से लौट आईं.

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बेबी हालदर

ये 1999 की बात है, उस समय हील्डर जीवन की 25 वीं सीढ़ी पर पैर रखा था पति की अनुपस्थिति में अपने तीन बच्चों को लेकर ट्रेन में सवार हुई और दिल्ली पहुंच गई जहां एक कच्ची बस्ती में झोपड़ी बनाकर अपना ठिकाना बना लिया और ऐसे घरों की खोज में निकल पड़ी जहां कुछ काम मिल सके लेकिन उससे चिमटे तीन बच्चों को देखकर कोई उसे नौकरी देने को तैयार न हुआ, उसकी कड़वी ज़िंदगी के दिन और रात गुजरते रहे.

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बेबी हालदर

बच्चे भूख से बलबलाते तो वह तड़प जाती. फिर समय की तेज लहर उसे ”गुड़गांव” ले गई जो बस्ती से कुछ दूरी पर था. सौभाग्य से वहाँ उसे एक ऐसे घर में काम मिल गया जिन्होंने उसे सिर छिपाने के लिए सर्वनट क्वार्टर भी दे दिया..

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बेबी हालदार

यह घर मानव विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर प्रबोध कुमार का था हील्डर के जिम्मे घर की सफाई थी उसे काम करते हुए कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन प्रबोध कुमार ने उसे अपने अलमारियों में लगी पुस्तकों को झाड़ने के बजाय रुचि से पन्नों को पलटते देखा

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बेबी हालदार

उनके एस लिए यह एक आश्चर्यजनक क्षण था कुछ दिन लगातार उसे चुपचाप देखते रहे वह कभी शेल्फ से एक किताब निकलती कभी दूसरी. अंततः प्रबोध कुमार ने एक दिन कुछ सोचते हुए हील्डर को शेल्फ में सजी किताबों से दोस्ती करने की अनुमति दे दी. उस बात से हील्डर बहुत खुश हुई. दूसरे दिन प्रबोध कुमार ने उसे एक कलम और रजिस्टर देते हुए कहा कि इस पर अपनी जीवन के विषय में लिखना.

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बेबी हालदार

पहले तो बेबी हालदार की कुछ समझ नहीं आया वह घबरा गई लेकिन प्रबोध ने उसे प्रेरित करते हुए कहा कि ज़िंदगी में जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ अच्छा या बुरा उसे रजिस्टर में उसी तरह लिख दो. कोई और होता तो शायद मना कर देता लेकिन हील्डर ने हिचकिचाते हुए प्रबोध कुमार के हाथ से कलम और रजिस्टर लेकर मजबूती से थाम लिया.

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अब उसके रात और दिन बदल गए थे. घर के कामों को खत्म कर वह सर्वनट क्वार्टर में चली जाती. अतीत खंगालते हुए जो बातें याद आतीं रजिस्टर पर लिखती जाती. एक सप्ताह में उसने रजिस्टर के तीन सौ पृष्ठों में से साठ पृष्ठों को काला कर दिए था.

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बेबी हालदार

शर्मिला उससे तरह-तरह की बातें करती थी। लेखिका सोचती कि अगर तातुश उससे न मिलते तो यह जीवन कहाँ मिलता। लेखिका का जीवन तातुश के घर में आकर बदल गया। उसका बड़ा लड़का काम पर लगा था। दोनों छोटे बच्चे स्कूल में पढ़ रहे थे। वह स्वयं लेखिका बन गई थी। पहले वह सोचती थी कि अपनों से बिछुड़कर कैसे जी पाएगी, परंतु अब उसने जीना सीख लिया था

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बेबी हालदार

वह तातुश से शब्दों के अर्थ पूछने लगी थी। तातुश के जीवन में भी खुशी आ गई थी। अंत में वह दिन भी आ गया जब लेखिका की लेखन-कला को पत्रिका में जगह मिली। पत्रिका में उसकी रचना का शीर्षक था- ‘आलो-आँधारि” बेबी हालदार। लेखिका अत्यंत प्रसन्न थी। तातुश के प्रति उसका मन कृतज्ञता से भर आया। उसने तातुश के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया

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बेबी हालदार

मजबूरी से हिम्मत अपने आप आ जाती है|

बेबी हालदार

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तातुश

और

बेबी हालदार

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गृहकार्य

1. शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षा की ओर मोड़ने के लिए आप क्या क्या करना चाहेंगे?

2. ‘आज बच्चों का अनपढ़ रहना कल के समाज पर बोझ बन जाएगा।” इस कथन से आप कितना सहमत हैं और क्यों?

3. आप ‘साहब’ के व्यक्तित्व के किन-किन मूल्यों को अपनाना चाहेंगे?

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धन्यवाद

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प्रस्तुतिकरण-

राकेश कुमार मीना

जवाहर नवोदय विद्यालय

कोटा राजस्थान

  • मोबाइल नंबर:-9462941159

मेल आईडी-rakeshmeena090@gmail.com

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राकेश कुमार मीना

जवाहर नवोदय विद्यालय

कोटा राजस्थान

मोबाइल नंबर:-9462941159

मेल आईडी rakeshmeena090@gmail.com