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सुमन शर्मा

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केन्द्रीय विद्यालय जमालपुर

(पटना संभाग)

रस

कक्षा-दसवीं

सुमन शर्मा �प्रशिक्षित स्नातक शिक्षिका (हिंदी)�केन्द्रीय विद्यालय जमालपुर,

पटना संभाग

रस (अर्थ एवं परिभाषा)

रस (प्रमुख उदाहरण)

रस (याद रखने योग्य बिंदु)

रस (प्रमुख भेद)

रस (प्रमुख अंग)

रस (रस एवं स्थायी भाव)

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  • रस का सामान्य अर्थ होता है आनंद, काव्य को सुनने, पढ़ने नाटक आदि को देखने से जो आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है.
  • रस का जनक भरतमुनि को माना जाता है-
  • संक्षिप्त में ‘काव्य में आनंद की अनुभूति’ को रस कहते हैं-
  • भरतमुनि ने रसों की संख्या आठ मानी हैं-
  • रस को काव्य की आत्मा कहा जाता है-
  • रससूत्र(भावानुभावाव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पतिः) भरतमुनि ने दिया-
  • आइए ! रस के प्रमुख अंगों के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करते हैं-

सुमन शर्मा

रस अर्थ एवं परिभाषा

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रस के प्रमुख अंग

स्थायी भाव

अनुभाव

विभाव

संचारी भाव

1. आलंबन विभाव

2. उद्दीपन विभाव

1. कायिक

2. वाचिक

3. सात्त्विक

4. आहार्य

  1. रति
  2. उत्साह/जोश
  3. क्रोध
  4. भय
  5. जुगुप्सा/घृणा
  6. शोक
  7. सम/निर्वेद
  8. हास
  9. विस्मय/आश्चर्य
  10. वत्सल/ममत्व
  11. भगवद प्रेम

इनकी संख्याएँ 33 होती हैं

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रस के अंग (संक्षिप्त विवरण)

स्थायी भाव

सहृदय के मन में जो भाव वासना या संस्कार के रूप में सदैव स्थायी रूप से विद्यमान रहते हैं, उन्हें स्थायी भाव कहते हैं-

विभाव

स्थायी भावों को जाग्रत करने वाले अथवा जगाने वाले भावों को विभाव कहते हैं-

आलंबन विभाव

जिस व्यक्ति, वस्तु या स्थिति को देखकर हृदय में जो भाव जगता है-

उद्दीपन विभाव

जो आलंबन द्वारा उत्पन्न भावों को उद्दीप्त अथवा तीव्र(बढ़ाते) करते हैं-

अनुभाव

स्थायी भाव के उद्दीप्त होने पर आलंबन द्वारा जो चेष्टाएँ की जाती हैं-

* कायिक- पात्रों की आंगिक चेष्टाएँ

* वाचिक- वाणी का व्यवहार

* सात्त्विक- हृदय की स्वाभाविक चेष्टाएँ

* आहार्य- कृत्रिम वेशभूषा आदि

संचारी भाव (व्यभिचारी भाव)

आश्रय के हृदय में स्थायी भाव के साथ-साथ आते-जाते रहने वाले अन्य भावों को संचारी भाव कहते हैं- इनकी संख्याएँ तैंतीस होती हैं- ग्लानि, स्तंभ, हर्ष, चपलता आलस्य, दीनता उग्रता आदि

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प्रमुख रस एवं उनके स्थायी भाव

  1. शृंगार रस
  2. वीर रस
  3. भयानक रस
  4. रौद्र रस
  5. वीभत्स रस
  6. करुण रस
  7. शांत रस
  8. अद्भुत रस
  9. हास्य रस
  10. वात्सल्य रस
  11. भक्ति रस

  1. रति
  2. उत्साह या जोश
  3. भय
  4. क्रोध
  5. जुगुप्सा या घृणा
  6. शोक
  7. सम या निर्वेद
  8. विस्मय या आश्चर्य
  9. हास
  10. वत्सल या ममत्व
  11. भगवद प्रेम

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प्रमुख रस एवं उनके उदाहरण

  • शृंगार रस (रति)-यदि दी गई काव्य पंक्तियों में नायक नायिका के प्रेम,मिलन,बिछोह आदि का वर्णन किया गया है तो वहाँ शृंगार रस होता है(ध्यान रहे कि यदि शृंगार रस के भेद के बारे में पूछा है तो यदि मिलन की बात की गई है या नायक-नायिका साथ में हैं तो संयोग और विरह(बिछोह) का वर्णन किया गया है तो वियोग शृंगार रस होगा)

उदाहरण- “ बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय, (संयोग शृंगार रस)

सौंह करे भौंहनि हँसै , देन कहे नटि जाय II’’

  • वीर रस (उत्साह या जोश)- जहाँ वीरता या जोश का भाव मन में या सहृदय के मन में जाग्रत हो वहाँ वीर रस होता है-

उदाहरण- “वीर तुम बढ़े चलो ,धीर तुम बढ़े चलो,

सामने पहाड़ हो कि सिंह की दहाड़ हो ,

वीर तुम बढ़े चलो ,धीर तुम बढ़े चलोII”

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प्रमुख रस एवं उनके उदाहरण

  • भयानक रस (भय)- जहाँ काव्य में भय या डर का भाव हो वहाँ भयानक रस होता है- अथवा जहाँ डर से संबंधित काव्य पंक्तियाँ हों वहाँ भयानक रस होता है-

उदाहरण- “एक ओर अजगरहिं लखि, एक ओर मृगराय विकल बटोही बीच ही, पड्यो मूर्च्छा खायII”

  • रौद्र रस(क्रोध)- जहाँ काव्य में क्रोध का भाव होता है वहाँ रौद्र रस होता है-

उदाहरण- “श्रीकृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे I

सब शील अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगे II”

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प्रमुख रस एवं उनके उदाहरण

  • वीभत्स रस(जुगुप्सा / घृणा)- जहाँ काव्य पंक्तियों में किसी वीभत्स दृश्य का या घृणा से युक्त स्थिति का वर्णन किया गया होता है वहाँ वीभत्स रस होता है- अर्थात् जहाँ मृत पशुओं,लाशों आदि को पक्षियों द्वारा नोंचते हुए तथा किसी युद्ध की भयंकरता का वर्णन हुआ हो वहाँ वीभत्स रस होता है-

उदाहरण- “आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते, शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला चुभलाकर खातेII”

  • करुण रस(शोक)- मुख्य रूप से जहाँ काव्य में किसी की मृत्यु के गम आदि में शोकमग्न माहौल का चित्रण किया जाता है वहाँ करुण रस होता है- कुछ जगह बहुत अधिक दुःख आदि का वर्णन अथवा बहुत दयनीय स्थिति का वर्णन होता है तो भी वहाँ करुण रस होता है-

उदाहरण- “अब कौन होगा जग का रखवाला होती ये हैरानी,

“हाय! देखो कैसी विडम्बना, स्वर्ग सिधारे स्वामीII”

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प्रमुख रस एवं उनके उदाहरण

  • शांत रस (सम/निर्वेद)- जहाँ काव्य में मन को शान्ति प्रदान करने वाले शांत भावों का वर्णन किया जाता है वहाँ शांत रस होता है-

उदाहरण- “मेरो मन अनंत कहाँ सुख पावे,

जैसे उड़े जहाज को पंछी ,

फिरि जहाज पे आवे I”

  • हास्य रस (हास)- जहाँ काव्य को पढ़कर या सुनकार हँसी(हास) का भाव पैदा हो, वहाँ हास्य रस होता है-

उदाहरण- बेटा बोला बाप से, फर्ज करो निज पूर्ण,

सब धन मेरे नाम कर, खाओ कायम चूर्णII”

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प्रमुख रस एवं उनके उदाहरण

  • अद्भुत रस (विस्मय/आश्चर्य)-जहाँ काव्य में विस्मय अथवा आश्चर्य आदि का भाव उत्पन्न हो, वहाँ अद्भुत रस होता है-

उदाहरण- “देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया, क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल कायाII”

  • वात्सल्य रस(वत्सल)- जहाँ काव्य में वत्सल(ममता) आदि का भाव हो वहाँ वात्सल्य रस होता है- विशेष रूप से सूरदास जी द्वारा कृष्ण के बालरूप का जो वर्णन किया गया है उन पंक्तियों में वात्सल्य रस होता है और बोर्ड परीक्षा में कई बार सूर की यशोदा और श्रीकृष्ण, श्रीकृष्ण का बाल रूप आदि से संबंधित पंक्तियाँ पूछी जाती हैं-

उदाहरण- “यशोदा हरि पालने झुलावै ,

हलरावै-दुलरावै जोई सोई गावै I”

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रस (याद रखने हेतु प्रमुख बिंदु)

  • इस भाग में सर्वदा दो प्रश्नों में रस के उदाहरण देकर उसमें निहित रस का नाम पूछा जाता है-
  • एक प्रश्न में कभी-कभी रस का उदाहरण भी पूछ लिया जाता है-
  • एक प्रश्न में रस का नाम देकर उसका स्थायी भाव पूछा जा सकता है-
  • एक प्रश्न में स्थायी भाव देकर उसके रस का नाम पूछा जा सकता है-
  • एक प्रश्न रस के अवयवों से संबंधित भी हो सकता है-
  • संचारी भावों की संख्या भी पूछी जा सकती है-
  • रस के प्रणेता का नाम भी पूछा जा सकता है-
  • काव्य पंक्तियाँ देकर उस में निहित स्थायी भाव के बारे में पूछा जा सकता है

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  • भरतमुनि को रस का जनक कहा जाता है-
  • भरतमुनि ने रससूत्र दिया था-
  • भरतमुनि ने रसों की संख्या आठ मानी हैं-
  • मुख्य रूप से रसों की संख्या नौ मानी जाती हैं-
  • काव्य में आनंद की अनुभूति को रस कहा जाता है-
  • रस को काव्य की आत्मा माना गया है-
  • रस को ब्रह्मानंद सहोदर कहा गया है-
  • शृंगार रस को रसों का राजा कहा जाता है –
  • शृंगार रस के दो भेद –(संयोग शृंगार और वियोग शृंगार माने जाते हैं)
  • रस के चार अंग(अवयव) माने जाते हैं-
  • रस के प्रमुख अवयव-(स्थायी भाव,विभाव,अनुभाव,संचारी भाव)
  • विभाव के दो भेद माने जाते हैं-(आलंबन विभाव और उद्दीपन विभाव)
  • अनुभाव के चार भेद होते हैं-(कायिक,वाचिक,सात्विक और आहार्य)
  • संचारी भावों की संख्या तैंतीस(33) होती हैं-
  • हर्ष, ग्लानि, स्तम्भ, स्वेद आदि संचारी भावों के नाम हैं-

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धन्यवाद