1 of 13

हिंदी पाठ परियोजना �कक्षा 12th �उपविषय - बगुलों के पंख (कविता)

2 of 13

Umashankar joshi

3 of 13

प्रस्तोता - के. एल मीणा

पी.जी.टी हिंदी

  • जवाहर नवोदय विद्यालय -अटरू,जिला -बारां, (राजस्थान)

4 of 13

शिक्षण उद्देश्य - कविता का रसास्वादन करना।� रस अलंकार आदि से अवगत करना।� कठिन शब्दावली को सरलार्थ रूप में समझना।� भाषा के अंदर सक्रिय सत्ता सम्बन्ध की समझ पैदा करना।� वाचन कौशल का विकास करना।� शब्द भंडार में अभिवृद्वि करना।�

5 of 13

  • कवि परिचय - उमाशंकर जोशी बीसवीं सदी के गुजराती काव्य के प्रमुख कवि एवं निबंधकार माने जाते हैं ,इनका जन्म सन 1911 ई० में गुजरात में हुआ था और 1988 में इनका निधन हो गया जोशी जी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार माने जाते हैं।
  • इन्होंने कविता निबंध कहानी आदि विधाओं पर सफल लेखिनी चलाई उमाशंकर जोशी प्रतिभावान कवि और साहित्यकार थे। 1931 में प्रकाशित काव्य संकलन 'विश्वशांती' से उनकी ख्याति एक समर्थ कवि के रूप में हो गई थी। काव्य के अतिरिक्त उन्होंने साहित्य के अन्य अंगों, यथा कहानी, नाटक, उपन्यास, आलोचना, निबंध आदि को भी पोषित किया। आधुनिक और गांधी युग के साहित्यकारों में उनका शीर्ष स्थान है।

6 of 13

प्रमुख रचनाएँ: विश्व शांति गंगोत्री निशीथ, प्राचीना आतिथ्य, वसंत वर्षा महाप्रस्थान अभिज्ञा (एकांकी), सापनाभारा शहीद (कहानी), श्रावणी मेणो, विसामो (उपन्यास); पारकांजण्या (निबंध); गोष्ठी, उघाडीबारी, क्लांतकवि, म्हारासॉनेट, स्वप्नप्रयाण (संपादन) सन् 47 से संस्कृति का संपादन।

7 of 13

बगुलों के पंख�

  • नभ में पाँती-बाँधे बगुलों के पंख,चुराए लिए जातीं वे मेरा आँखे।कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,तैरती साँझ की सतेज श्वेत  काया
  • हले हॉले जाती मुझे बाँध निज माया से।उसे कोई तनिक रोक रक्खो।वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखे नभ में पाँती-बँधी बगुलों के पाँखें। 

8 of 13

  • प्रसंग-प्रस्तुत कविता ‘बगुलों के पंख’ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित है। इसके रचयिता उमाशंकर जोशी हैं। इस कविता में सौंदर्य की नयी परिभाषा प्रस्तुत की गई है तथा मानव-मन पर इसके प्रभाव को बताया गया है।

9 of 13

  • शब्दार्थ- 
  • नभ-आकाश । �पाँती-पंक्ति । 
  • कजरारे-वाले । 
  • साँझ-संध्या, सायं । 
  • सतेज -चमकीला, उज्जवल । 
  • श्वेत सफेद। 
  • काया-शरीर। 
  • हौले-हौले-धीरे-धीरे। 
  • निज-अपनी। 
  • माया-प्रभाव, जादू। 
  • तनिक-थोड़ा। 
  • पाँखेंपंख।

10 of 13

  • व्याख्या-कवि आकाश में छाए काले-काले बादलों में पंक्ति बनाकर उड़ते हुए बगुलों के सुंदर-सुंदर पंखों को देखता है। वह कहता है कि मैं आकाश में पंक्तिबद्ध बगुलों को उड़ते हुए एकटक देखता रहता हूँ। यह दृश्य मेरी आँखों को चुरा ले जाता है।

11 of 13

  • काले-काले बादलों की छाया नभ पर छाई हुई है। सायंकाल चमकीली सफेद काया उन पर तैरती हुई प्रतीत होती है। यह दृश्य इतना आकर्षक है कि अपने जादू से यह मुझे धीरे-धीरे बाँध रहा है। मैं उसमें खोता जा रहा हूँ।

12 of 13

  • कवि आहवान करता है कि इस आकर्षक दृश्य के प्रभाव को कोई रोके। वह इस दृश्य के प्रभाव से बचना चाहता है, परंतु यह दृश्य तो कवि की आँखों को चुराकर ले जा रहा है। आकाश में उड़तें पंक्तिबद्ध बगुलों के पंखों में कवि की आँखें अटककर रह जाती हैं।

13 of 13

कविता का केंद्रीय भाव

  • कवि काले बादलों से भरे आकाश में पंक्ति बनाकर उड़ते सफेद बगुलों को देखता है। वे कजरारे बादलों के ऊपर तैरती साँझ की श्वेत काया के समान प्रतीत होते हैं। इस नयनाभिराम दृश्य में कवि सब कुछ भूलकर उसमें खो जाता है। वह इस माया से अपने को बचाने की गुहार लगाता है, लेकिन वह स्वयं को इससे बचा नहीं पाता।