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मन्नू भण्डारी

पाठ - 7

रजनी

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सन्त कुमार शर्मा

स्नातकोत्तर शिक्षक (हिंदी)

जवाहर नवोदय विद्यालय

बाई, नूह, हरियाणा

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  • लेखिका का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय
  • पटकथा लेखन की विशेषताएँ
  • पटकथा की व्याख्या
  • पटकथा के माध्यम से सामाजिक समस्याओं की समझ का विकास
  • प्रमुख प्रश्न

सीखने के परिणाम एवं उद्देश्य

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पत्रकारिता: ऑल इंडिया रेडियो के हिंदी समाचार विभाग से संबद्ध रहे, फिर

  • जन्म : 1931 ई. में मध्यप्रदेश के भानपुरा में।

शिक्षा : प्रारम्भिक अजमेर में एम.ए. (हिंदी) काशी हिंदू विश्वविद्यालय से।

कोलकाता तथा दिल्ली के मिरांडा हाऊस में बतौर प्राध्यापिका के पद पर कार्य किया।

मन्नू भण्डारी – जीवन परिचय

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पत्रकारिता: ऑल इंडिया रेडियो के हिंदी समाचार विभाग से संबद्ध रहे, फिर

पुरस्कार एवं सम्मान:

इनकी साहित्यिक उपलब्धियों को देखते हुए इन्हें कई संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किया गया। इन्हें हिंदी अकादमी, दिल्ली के शिखर सम्मान, बिहार सरकार, कोलकाता की भारतीय भाषा परिषद्, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सम्मानित किया गया।

मन्नू भण्डारी – जीवन परिचय

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आरंभिक कविताएँ - दूसरा सप्तक (1951) में

प्रमुख रचनाएँ

कहानी संग्रह : 

सीढ़ियों पर धूप में,

आत्महत्या के विरुद्ध,

हँसो हँसो जल्दी हँसो,

लोग भूल गए हैं,

कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ,

एक समय था

उपन्यास :

आपका बंटी,

महाभोज, स्वामी,

एक इंच मुस्कान (राजेंद्र यादव के साथ)।

पटकथाएँ :

रजनी,

निर्मला, स्वामी, दर्पण।

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मन्नू भंडारी हिंदी कहानी में उस समय सक्रिय हुई जब नई कहानी आंदोलन अपने उठान पर था। उनकी कहानियों में कहीं पारिवारिक जीवन, कहीं नारी-जीवन और कहीं समाज के विभिन्न वर्गों के जीवन की विसंगतियाँ विशेष आत्मीय अंदाज़ में अभिव्यक्त हुई हैं। उन्होंने आक्रोश, व्यंग्य और संवेदना को मनोवैज्ञानिक रचनात्मक आधार दिया है।

साहित्यिक विशेषताएँ

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वह चाहे कहानी हो, उपन्यास हो या फिर पटकथा ही क्यों न हो। उनका मानना है-‘‘लोकप्रियता कभी भी रचना का मानक नहीं बन सकती। असली मानक तो होता हैं रचनाकार का दायित्वबोध, उसके सरोकार, उसकी जीवन दृष्टि।”

साहित्यिक विशेषताएँ

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पटकथा यानी पट या स्क्रीन के लिए लिखी गई वह कथा। यह पट कथा रजत पट अर्थात् फिल्म की स्क्रीन के लिए भी हो सकती है और टेलीविजन के लिए भी। मूल बात यह है कि जिस तरह मंच पर खेलने के लिए नाटक लिखे जाते हैं, उसी तरह कैमरे से फिल्माए जाने के लिए पटकथा लिखी जाती है।

पाठ का सार/प्रतिपाद्य

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पटकथा यानी पट या स्क्रीन के लिए लिखी गई वह कथा। यह पट कथा रजत पट अर्थात् फिल्म की स्क्रीन के लिए भी हो सकती है और टेलीविजन के लिए भी। मूल बात यह है कि जिस तरह मंच पर खेलने के लिए नाटक लिखे जाते हैं, उसी तरह कैमरे से फिल्माए जाने के लिए पटकथा लिखी जाती है।

पाठ का सार/प्रतिपाद्य

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यहाँ मन्नू भंडारी द्वारा लिखित रजनी धारावाहिक की कड़ी दी जा रही है। यह नाटक 20वीं सदी के नवें दशक का बहुचर्चित टी.वी. धारावाहिक रहा है। यह वह समय था जब ‘हमलोग’ और ‘बुनियाद’ जैसे सोप ओपेरा दूरदर्शन का भविष्य गढ़ रहे थे। बासु चटर्जी के निर्देशन में बने इस धारावाहिक की हर कड़ी स्वयं में स्वतंत्र और मुकम्मल होती थी और उन्हें आपस में गूँथने वाली सूत्र रजनी थी।

पाठ का सार/प्रतिपाद्य

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हर कड़ी में यह जुझारु और इंसाफ पसंद स्त्री पात्र किसी न किसी सामाजिक-राजनीतिक समस्या से जूझती नजर आती थी।

यहाँ रजनी धारावाहिक की जो कड़ी दी जा रही है, वह व्यवसाय बनती शिक्षा की समस्या और विद्यालयी प्रबंधन की ओर समाज का ध्यान खींचती है। इस पटकथा में कुल सात दृश्य हैं।

पाठ का सार/प्रतिपाद्य

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अमित के अध्यापक ने उस क्या कहा? क्यों?

अमित के अध्यापक ने उसे कहा कि हाफ़-ईयरली परीक्षा में तुमने अच्छा किया है, परंतु अगर ईयरली में तुम्हें पूरे नंबर लेने हैं तो तुरंत ट्यूशन लगवा लो। उसने ट्यूशन न लेने पर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी। वह ऐसा इसलिए कह रहे थे ताकि अमित भी उनके पास ट्यूशन पढ़ने आ जाए।

प्रश्न

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अमित की मम्मी ने गणित का ट्यूशन लगाने से क्यों मना किया?

अमित गणित में बहुत होशियार है। इस कारण उसकी मम्मी ने गणित का ट्यूशन लगाने से मना कर दिया। इसके अलावा उन्हें अमित की प्रतिभा पर भी भरोसा था।

प्रश्न

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अमित इस स्थिति में किसे दोषी मानता है? उसकी यह सोच कितनी उचित है?

अमित गणित में कम अंक आने की वजह ट्यूशन न लगाना मानता है। वह अपने माता-पिता को इसके लिए दोषी मानता है। उसकी यह सोच तनिक भी उचित नहीं है, क्योंकि इसके लिए माँ-बाप को दोष देना उचित नहीं है।

प्रश्न

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कॉपियाँ न दिखाने का नियम कहाँ तक उचित है?

स्कूलों में वार्षिक परीक्षा की कॉपियाँ न दिखलाने का नियम सर्वथा अन्यायपूर्ण है। इस नियम के नाम पर अंकों की गड़बड़ी को ढका जाता है तथा दोषी अध्यापक अपनी मनमानी करके बच्चों का शोषण करते हैं।

प्रश्न

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शिक्षा बोड की कार्यशैली पर टिप्पणी करें।

शिक्षा बोर्ड भी अन्य सरकारी विभागों की तरह अकर्मण्यशील है। वह शिकायत पर ही कोई कार्रवाई करता है अन्यथा उसे किसी बात की कोई जानकारी नहीं होती। वे स्कूलों में हो रहे शोषण से अवगत तो रहते हैं पर उसके खिलाफ कुछ नहीं करते।

प्रश्न

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धन्यवाद