नवोदय विद्यालय समिति, नोएडा
अध्याय-03
प्रस्तुतकर्ता-
डॉ. अनिल कुमार
टी. जी. टी. हिंदी
ज.न.वि. नलगोंडा
दोहा-1
शब्दार्थ-
भावार्थ-
दोहा-02
शब्दार्थ-
भावार्थ-
दोहा-03
शब्दार्थ-
भावार्थ-
दोहा-04
शब्दार्थ-
भावार्थ
दोहा-05
शब्दार्थ-
भावार्थ-
दोहा-06
शब्दार्थ-
भावार्थ-
दोहा-07
शब्दार्थ-
भावार्थ-
दोहा-08
शब्दार्थ-
भावार्थ-
सुप्रसिद्ध कवि बिहारी द्वारा रचित दोहे नावक के तीर के समान छोटे, परंतु गंभीर घाव [अर्थ] करने वाले हैं| पाठ में वर्णित इन आठ दोहों में श्रुंगार, भक्ति, प्रकृति, नीति जैसे तत्वों की अद्भुत अभिव्यंजना हुई है| उनकी चमत्कारिक लेखनी से पीतांबरधारी श्रीकृष्ण के सौंदर्य का चित्र पाठकों के समक्ष उपस्थित हो जाता है| ग्रीष्मरूपी विपत्ति के आते ही सभी पशु अपना पारस्परिक द्वेष-भाव समाप्त कर एक ही स्थान पर एकत्र हो जाते हैं| गोपियाँ कृष्ण से बतरस के लालच में उनकी मुरली छुपा लेती हैं| नायक और नायिका परिजनों से भरे हुए भवन में भी आखों से ही सारी बातें कर लेते हैं | ज्येष्ठ मास की प्रचंड गर्मी में छाया भी घबराकर भवनों में छुप गई है | प्रियतम को संदेश भेजते हुए नायिका को लज्जा आती है,पर उसे लगता है कि विरहाकुल नायक, नायिका के मन की बात स्वयं ही समझ जाएगें| कवि अपने पिता की श्रीकृष्ण से तुलना करते हुए उनसे प्रार्थना कर रहे हैं कि वे उनके कष्टों को दूर करें| अंतिम दोहे में कवि ने बताया है कि ईश्वर जप-माला, छापा, तिलक जैसे बाहयाडंबरों में नहीं, अपितु सच्चे हृदय में निवास करते हैं |
डॉ. अनिल कुमार
टी. जी. टी. हिंदी
ज.न.वि. नलगोंडा
***** धन्यवाद *****
आभार