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केंद्रीय विद्यालय जमालपुर

विषय :- हिंदी

कक्षा :- ९ वीं

पुस्तक :- क्षितिज भाग-१

अध्याय संख्या :- ११

अध्याय नाम :- सवैये (रसखान)

अध्यापक नाम :- सुमन शर्मा

पद :- प्रशिक्षित स्नातक शिक्षिका - हिंदी

सुमन शर्मा, प्रशिक्षित स्नातक शिक्षिका - हिंदी, केंद्रीय विद्यालय जमालपुर

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सवैये (रसखान)

शिक्षण उद्देश्य:-

  • विद्यार्थी श्री कृष्ण के प्रति रसखान की अनन्य भक्ति से परिचित होंगे |
  • विद्यार्थी सवैये के मूल भाव को समझकर सवैये का वाचन करने में समर्थ होंगे |
  • विद्यार्थियों में कवि के भावों एवं विचारों के साथ पूर्ण तादाम्य स्थापित कराके अलौकिक आनंद की अनुभूति कराना |

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रसखान

जन्म– सन 1548 में दिल्ली के निकट हुआ था

मृत्यु- सन 1628(लगभग)|

प्रमुख रचनाएँ:- प्रेमवाटिका, सुजान रसखान |

मुख्य बिन्दु:- उनकी रचनाओं का

संग्रह रसखान रचनावली नाम से प्रसिद्ध है|

- रसखान का मूल नाम सैयद इब्राहिम था |

- मुसलमान होने पर भी उनकी कृष्ण

में गहरी आस्था थी |

- उन्होने ब्रजभाषा में काव्य-रचना की है |

- उनके काव्य में समूची ब्रजभूमि के प्रति अनुराग प्रकट हुआ है |

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कविता का सारांश

रसखान द्वारा रचित सवैये में कृष्ण एवं उनकी लीला-भूमि वृन्दावन की प्रत्येक वस्तु के प्रति उनका लगाव प्रकट हुआ है। प्रथम सवैये में कवि कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति का उदाहरण पेश करते हैं। उनका कहना है कि ईश्वर उन्हें चाहे मनुष्य बनाए या पशु-पक्षी या फिर पत्थर, इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वो सिर्फ कृष्ण का साथ चाहते हैं। इस तरह हम रसखान के सवैयों में कृष्ण के प्रति अपार प्रेम तथा भक्ति-भाव को देख सकते हैं। अपने दूसरे सवैये में रसखान ने कृष्ण के ब्रज-प्रेम का वर्णन किया है। वे ब्रज के ख़ातिर संसार के सभी सुखों का त्याग कर सकते हैं। गोपियों के कृष्ण के प्रति अतुलनीय प्रेम को रसखान जी ने अपने तीसरे सवैये में दर्शाया है, उन्हें श्री कृष्ण की हर वस्तु से प्रेम है। गोपियाँ स्वयं कृष्ण का रूप धारण कर लेना चाहती हैं, ताकि वो कभी उनसे जुदा ना हो सकें। अपने अंतिम सवैये में रसखान कृष्ण की मुरली की मधुर ध्वनि तथा गोपियों की विवशता का वर्णन करते हैं कि किस प्रकार गोपिया चाहकर भी कृष्ण से प्रेम किए बिना नहीं रह सकतीं।

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सवैये

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मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।

जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥

पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।

जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।

कठिन शब्दार्थ :- मानुष- मनुष्य, बसौं- रहूँ, ग्वारन- ग्वाले, कहा बस- वश में नहीं होना, चरौ- चरूँ, नित- हमेशा, धेनु- गाय, मंझारन- बीच में, पाहन- पत्थर, गिरि- पर्वत

छत्र- छाता, पुरंदर- इन्द्र, धारण- धारण किया, खग- पक्षी, बसेरो- निवास, कालिंदी- यमुना नदी, कूल- किनारा, कदंब- एक पेड़, डारन- डालें, शाखाएँ |

भावार्थ :-  प्रस्तुत पंक्तियों में कवि रसखान के श्री कृष्ण एवं उनके गांव गोकुल-ब्रज के प्रति लगाव का वर्णन हुआ है। रसखान मानते हैं कि ब्रज के कण-कण में श्री कृष्ण बसे हुए हैं। इसी वजह से वे अपने प्रत्येक जन्म में ब्रज की धरती पर जन्म लेना चाहते हैं। अगर उनका जन्म मनुष्य के रूप में हो, तो वो गोकुल के ग्वालों के बीच में जन्म लेना चाहते हैं। पशु के रूप में जन्म लेने पर, वो गोकुल मे नन्द बाबा की गायों के साथ घूमना-फिरना अर्थात चरना चाहते हैं।अगर वो पत्थर भी बनें, तो उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनना चाहते हैं, जिसे श्री कृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से गोकुलवासियों को बचाने के लिए अपनी उँगली पर उठाया था। अगर वो पक्षी भी बनें, तो वो यमुना के तट पर कदम्ब के पेड़ों में रहने वाले पक्षियों के साथ रहना चाहते हैं। इस प्रकार कवि चाहे कोई भी जन्म लें, वो रहना ब्रज की भूमि पर ही चाहते हैं।

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या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।

आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं॥

रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।

कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं॥

कठिन शब्दार्थ :- या- इस, लकुटी- लाठी, कामरिया- कंबल, तिहूं- तीनों, पुर- नगर, तजि डारौं- छोड़ दूँगा, नवौ निधि- नौ निधियाँ, बिसारौं- भूलूँगा, कबौं- जब से, सौं- से, तड़ाग- तालाब, निहारौं- देखूंगा, कोटिक- करोड़ों, कलधौत- सोना, धाम- भवन, करील- एक प्रकार का वृक्ष, कुंजन- लताओं का घर, वारौं- न्योछावर करूँगा |

भावार्थ :-   प्रस्तुत पंक्तियों में कवि रसखान का भगवान श्री कृष्ण एवं उनसे जुड़ी वस्तुओं के प्रति बड़ा गहरा लगाव देखने को मिलता है। वे कृष्ण की लाठी और कंबल के लिए तीनों लोकों का राज-पाठ तक छोड़ने के लिए तैयार हैं। अगर उन्हें नन्द की गायों को चराने का मौका मिले, तो इसके लिए वो आठों सिद्धियों एवं नौ निधियों के सुख को भी त्याग सकते हैं। जब से कवि ने ब्रज के वनों, बगीचों, तालाबों इत्यादि को देखा है, वे इनसे दूर नहीं रह पा रहे हैं। जब से कवि ने करील की झाड़ियों और वन को देखा है, वो इनके ऊपर करोड़ों सोने के महल भी न्योछावर करने के लिए तैयार हैं।

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मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।

ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥

भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।

या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥

कठिन शब्दार्थ :- मोरापखा- मोर के पंखों से बना मुकुट, रखिहौं- रखूँगी, गुंज- एक जंगली पौधे का छोटा फल, गरें- गले में, पहिरौंगी- पहनूँगी, पितबर- पीला वस्त्र, गोधन- गाय रूपी धन, ग्वारिन- ग्वालिन, फिरौंगी- फिरूंगी, भावतो- अच्छा लगना, वोही- जो कुछ, स्वाँग- रूप धारण करना, अधरा- होंठो पर, धरौंगी- रखूँगी |

भावार्थ :-  प्रस्तुत पंक्तियों में रसखान ने कृष्ण से अपार प्रेम करने वाली गोपियों के बारे में बताया है, जो एक-दूसरे से बात करते हुए कह रही हैं कि वो कान्हा द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं की मदद से कान्हा का रूप धारण कर सकती हैं। मगर, वो कृष्ण की मुरली को धारण नहीं करेंगी। यहाँ गोपियाँ कह रही हैं कि वे अपने सिर पर श्री कृष्ण की तरह मोरपंख से बना मुकुट पहन लेंगी। अपने गले में कुंज की माला भी पहन लेंगी। उनकी तरह पीले वस्त्र भी पहन लेंगी और अपने हाथों में लाठी लेकर वन में ग्वालों के संग गायें चराएंगी।गोपी कह रही है कि कृष्ण हमारे मन को बहुत भाते हैं, इसलिए मैं तुम्हारे कहने पर ये सब कर लूँगी। मगर, मुझे कृष्ण के होठों पर रखी हुई मुरली अपने होठों से लगाने के लिए मत बोलना, क्योंकि इसी मुरली की वजह से कृष्ण हमसे दूर हुए हैं। गोपियों को लगता है कि श्री कृष्ण मुरली से बहुत प्रेम करते हैं और उसे हमेशा अपने होठों से लगाए रखते हैं, इसीलिए वे मुरली को अपनी सौतन या सौत की तरह देखती हैं।

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काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।

मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै॥

टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै।

माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै॥

कठिन शब्दार्थ :- काननि कानों में, दै- देकर, अंगुरी- उंगली, रहिबो- रहूँगी, धुनि- धुन, मंद- मधुर स्वर में, बजैहै- बजाएगे, मोहनी- मन को मोहने वाली, तानन- तानों से, अटा- अटारी, गोधन- ब्रजक्षेत्र में गाया जाने वाला लोकगीत, गैहै- गाएगे, टेरी- पुकारकर बुलाना, सिगरे- सारे, काल्हि- कल, समुझैहै- समझाना, वा- वह, सम्हारी- संभाली, न जैहै- नहीं जाएगी |

भावार्थ :- रसखान ने इन पंक्तियों में गोपियों के कृष्ण प्रेम का वर्णन किया है, वो चाहकर भी कृष्ण को अपने दिलो-दिमाग से निकाल नही पा रही है । इसीलिए एक गोपी कह रही हैं कि जब कृष्ण अपनी मुरली बजाएंगे, तो वो उससे निकलने वाली मधुर ध्वनि को नहीं सुनेंगी। वो अपने कानों में उंगली डाल लेंगी। उसका मानना है कि भले ही, कृष्ण किसी महल पर चढ़ कर, अपनी मुरली की मधुर तान क्यों न बजायें और गीत ही क्यों न गाएं, उस पर इसका कोई असर नही होगा ।लेकिन अगर गलती से भी मुरली की मधुर ध्वनि उसके कानों में चली गई, तो फिर मैं अपने वश में नहीं रह पाऊँगी। फिर चाहे मुझे कोई कितना भी समझाए, मैं कुछ भी समझ नहीं पाएऊँगी। गोपियों के अनुसार, कृष्ण की मुस्कान उन्हे इतनी प्यारी लगती है कि उसे देखकर कोई भी उनके वश में हुए बिना नहीं रह सकता। इसी कारणवश, गोपियाँ कह रही हैं कि श्री कृष्ण का मोहक मुख देखकर, वो स्वय को बिल्कुल भी संभाल नहीं पाएगी। वो सारी लाज-शर्म छोड़कर श्री कृष्ण की ओर खिंची चली जाएँगी।

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बोधात्मक प्रश्न :-

प्रश्न १:- कवि कृष्ण की लाठी और कंबल पर क्या त्यागने को तैयार है ?

प्रश्न २:- गोपी कृष्ण की मुरली को होंठो पर क्यों नहीं रखना चाहती है ?

प्रश्न ३:- गोपियाँ श्री कृष्ण की किन-किन विशेषताओं से प्रभावित होती है ?

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गृहकार्य :-

प्रश्न १:- निम्न पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिये:-

(क) या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी |

(ख) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं॥

प्रश्न २:- कवि रसखान ने ब्रजभूमि के प्रति अपने प्रेम को किस तरह प्रकट किया है ?

प्रश्न ३:- आपके विचार से कवि पशु, पक्षी, और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य (शरण) क्यों प्राप्त करना चाहता है ?

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उपर्युक्त सवैये के अध्ययन के पश्चात एवं बोध प्रश्नों और गृहकार्य के मूल्यांकन के आधार पर निश्चित किये गए शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति कर ली जाएगी |

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धन्यवाद

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