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समयसार - QUIZ No. 6
विषय : गाथा १३, कुन्दकुन्दाचार्य
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समयसार परमागम - गाथा १३
NOTE: गाथा १३ मूल शास्त्र और चिंतन के बिंदु की PDF पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये |
१. नियम से सम्यक्त्व क्या है ?
*
1 point
जीवादि नव तत्वों को अभूतार्थ नय से जानना
जीवादि नव तत्वों को भूतार्थ नय से जानना
२. नव तत्वों को स्वभाव दृष्टि से देखने पर क्या होता है ?
*
1 point
सम्यग्दर्शन
शुद्ध नय से बताए हुए आत्मा की पहिचान
नव तत्वों में एकत्व से प्रकाशमान जीव का अनुभव
ऊपर दिए गए सब विकल्प सही है
३. जीवादि नव तत्व कोई वस्तु नहीं है अर्थात् अभूतार्थ है - ऐसा कब कहने में आता है ?
*
1 point
जीव द्रव्य के स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर अभूतार्थ है ( जीव - पुद्गल का निज स्वरुप भिन्न - भिन्न देखने से )
जीव - पुद्गल की अनादि बंधपर्याय के समीप जाकर एकरूप से अनुभव करने पर अभूतार्थ है
४. नव तत्त्व एकत्वरूप से एक आत्मा ही है - यह कैसा कथन है ?
*
1 point
व्यवहार नय
निश्चय नय
५. जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, पुण्य, पाप, आकाश, काल, मोक्ष - यह नव तत्त्व व्यवहार से कहा है - क्या यह कथन सत्य है ?
*
1 point
हाँ
नहीं
६. व्यवहार नय से देखने पर नव तत्वों की सिद्धि किसमें होती है ?
*
1 point
नव तत्वों में - प्रत्येक तत्व में एक जीव ( भाव ) और दूसरा अजीव ( द्रव्य ) लेना
नव तत्वों में - प्रत्येक तत्व में एक मात्र जीव लेना
७. जीव के विकार का हेतु अजीव है - इसका अर्थ क्या है ?
*
1 point
वास्तव में अजीव द्रव्य ही जीव को विकार कराते है
जब जीव में अपनी पर्याय की योग्यता से विकार होता है, तब अजीव द्रव्य निमित्तरूप (अकर्ता ) से होते है
८. क्या जीव को स्त्री-पुत्र-कुटुंब आदि परद्रव्य राग-द्वेष कराते हैं ?
*
1 point
हाँ, निमित्त से कार्य होता है
नहीं, जब जीव स्वयं अपने को भूलकर राग-द्वेष करता है तब निमित्तरूप से स्त्री-पुत्र-कुटुंब आदि की स्वतंत्र परिणति होती है
९. धन-वैभव-मकानादि देखकर जीव राग-द्वेष के परिणाम करता है - यहाँ व्यवहार से अजीव तत्त्व कौन है ?
*
1 point
धन-वैभव-मकानादि
जीव के परिणाम
१०. जीव द्रव्य और जीव तत्त्व में क्या अंतर है ?
*
1 point
जीव द्रव्य अनंत गुणों का पिंड है, जीव तत्त्व गुणभेद से भिन्न एक ज्ञायक भाव है
जीव द्रव्य पर्यायों से सहित है, जीव तत्त्व पर्यायों से भिन्न एक ज्ञायक भाव है
ऊपर दिए गए सब विकल्प सही है
११. व्यवहार नय से देखने पर सात तत्त्व में क्या आता है ?
*
1 point
मात्र जीव के परिणाम ( भाव )
मात्र अजीव की पर्याय
दोनों - जीव के परिणाम ( भाव ) और अजीव की पर्याय
१२. ज्ञानावरणादि कर्म के उदय का निमित्त पाकर जीव में स्वयं मोह-राग-द्वेषादि उत्पन्न होते है - वह क्या है ?
*
1 point
भाव आस्त्रव
द्रव्य आस्त्रव
१३. जीव के मोहादि भावों का निमित्त पाकर ज्ञानावरणादि कर्म जीव के प्रदेशों में एक क्षेत्रावगाह संबंध से जुड़ते है - वह क्या है ?
*
1 point
द्रव्य बंध
भाव बंध
१४. जीव स्वयं को भूलकर परपदार्थों में एकत्व, ममत्व, कर्तृत्व और भोक्तृत्व करता है तब क्या होता है ?
*
1 point
संवर और निर्जरा
आस्त्रव और बंध
मोक्ष
१५. पुण्यरूप कर्म प्रकृतियों का आत्मप्रदेशों के साथ एक क्षेत्रावगाह संबंध से जुड़ना - वह क्या है ?
*
1 point
द्रव्य पुण्य
भाव पुण्य
१६. पापरूप कर्म प्रकृतियों के उदय का निमित्त पाकर अशुभ भावों का उत्पन्न होना - वह क्या है ?
*
1 point
द्रव्य पाप
भाव पाप
१७. समिति, गुप्ति, परिषहजय के द्वारा शुद्ध आत्मा को जानना, पहिचानना और स्थिरतापूर्वक एकदेश वीतरागता प्रगट करना - वह क्या है ?
*
1 point
द्रव्य संवर
भाव संवर
१८. तीव्र पुरुषार्थ के द्वारा जब जीव अपने आत्मा की स्थिरता - शुद्धता बढ़ाता है तब क्या होता है ?
*
1 point
राग-द्वेषादि भाव क्रमश: कम होते जाते है
पूर्वबद्ध / सत्ता में पड़े हुए कर्म प्रतिसमय खिर जाते है, आत्मप्रदेश से छूट जाते है
ऊपर दिए गए सब विकल्प सही है
१९. अन्तरोन्मुखी पुरुषार्थ द्वारा जब जीव मोहादि विकारों का संपूर्ण नाश करता है तब क्या होता है ?
*
1 point
भाव मोक्ष
द्रव्य मोक्ष
दोनों
२०. द्रव्य मोक्ष क्या है ?
*
1 point
आत्मा का पर पदार्थों के साथ का संबंध पूर्णरूप से छूट जाता है
आत्मा का नोकर्म के साथ का संबंध पूर्णरूप से छूट जाता है
आत्मा का ज्ञानावरणादि कर्म के साथ का संबंध पूर्णरूप से छूट जाता है
ऊपर दिए गए सब विकल्प सही है
२१. जीव जब एक ज्ञायक आत्मा में स्थिरतापूर्वक एकदेश वीतरागता उत्पन्न करता है तब नये कर्मों का आना रुक जाता है - वह क्या है ?
*
1 point
भाव बंध और द्रव्य बंध
भाव निर्जरा और द्रव्य निर्जरा
भाव संवर और द्रव्य संवर
२२. जीव जब दान-व्रतादि शुभ भाव करता है तब पुण्यरूप कर्म प्रकृतियाँ जीव के प्रदेशों के साथ जुड़ जाती है - ऐसा कहने में आता है, यहाँ जीव के परिणाम और पुण्य कर्म के बीच में निश्चय से कौनसा संबंध है ?
*
1 point
निमित्त-नैमित्तिक संबंध
कर्ता-कर्म संबंध
कोई संबंध नहीं है , दोनों द्रव्यों का स्वतंत्र परिणाम है
२३. शुद्ध नय से, नव तत्वों में प्रकाशमान एक ज्ञायक आत्मा का अनुभव करना - उसे क्या कहा है ?
*
1 point
आत्मज्योति
आत्मख्याति
२४. आत्मानुभव के लिए जीव, नव तत्त्व को भिन्न-भिन्न जाने और शुद्धनय से आत्मा को नहीं जाने - ऐसा करने पर क्या होगा ?
*
1 point
पर्यायबुद्धि होने से सम्यग्दर्शन नहीं होगा
द्रव्यदृष्टि होने से सम्यग्दर्शन होगा
२५. मैं जीव तत्त्व हूँ और मैं मोक्षस्वरूप तत्त्व हूँ - ऐसा अनुभव करने पर सम्यग्दर्शन होगा ?
*
1 point
हाँ
नहीं
जय जिनेन्द्र. आपने नई नोटबुक और डायरी में समयसार गाथाएँ लिखी ? हर क़्विज में जो गाथाए आएगी वह लिखने से संपूर्ण समयसार अपने स्व-हस्ताक्षर में लिखा जायेगा और वह आपकी यादरूप बनेगा इस भावना से हमने गाथा लिखने का नक्की किया है. आपको अनुकूलता हो तो जरूर लिखे और दिन में गाथा को २-४ बार बोले.
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