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समयसार - QUIZ No. 8
विषय : गाथा १४ भाग-१ - कुन्दकुन्दाचार्य
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NOTE: गाथा १४ मूल शास्त्र, चिंतन के बिंदु भाग-१ PDF पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिये |
समयसार परमागम गाथा १४
समयसार परमागम गाथा १४
१. आचार्यदेव शुद्ध नय का स्वरुप कौन से पाँच भावरूप दर्शाते हैं?
*
1 point
बद्धस्पृष्ट , अन्यत्व ,अनियत , विशेष , संयुक्त
अबद्धस्पृष्ट, अनन्य, नियत, अविशेष, असंयुक्त
अबद्धस्पृष्ट, अनन्य, अनियत, अविशेष, असंयुक्त
२. आत्मा को बद्धस्पृष्ट, अन्यत्व, अनियत, विशेष, संयुक्त - इन पाँच भावों के स्वरुप से कौनसे नय से कहा है ?
*
1 point
शुद्ध नय
अशुद्ध नय
३. अबद्धस्पृष्ट, अनन्य, नियत, अविशेष, असंयुक्त - ये आत्मा के क्या है ?
*
1 point
गुण
भाव अर्थात् शुद्ध नय से जाना हुआ स्वरुप
पर्याय
४. आत्मा के ज्ञान, दर्शन, चारित्रादि गुणों का परिणमन स्वतंत्र होता है, एक-दूसरे को स्पर्श किए बिना होता है - इस लिए उसे अबद्धस्पृष्ट कहा है क्या ?
*
1 point
हाँ
नहीं
५. आत्मा परद्रव्यों के बंध से रहित और स्पर्श से रहित है, इस प्रकार स्वभावदृष्टि से देखने पर उसे क्या कहते है ?
*
1 point
असंयुक्त
अबद्धस्पृष्ट
अनियत
६. शुद्ध नय कहो , आत्मा कहो या आत्मा की अनुभूति कहो - क्या यह सब एक ही है ?
*
1 point
हाँ
नहीं
७. निश्चय से अबद्धस्पृष्ट, अनन्य, नियत, अविशेष, असंयुक्त - इन पाँच भावों में क्या प्रकाशमान है ?
*
1 point
एक आत्मा और अनंत जीव
एक आत्मा
एक आत्मा और अनंतानंत पुद्गल
८ . अनादिकाल से आत्मा कर्म-पुद्गल परमाणु के साथ एकक्षेत्रावगाह सम्बन्ध से देखने में आता है - उसे क्या कहते है ?
*
1 point
अबद्धस्पृष्ट
बद्धस्पृष्ट
९. आत्मा का बद्धस्पृष्टभाव देखने से अनुभूति हो सकती है क्या ?
*
1 point
नहीं
हाँ
१०. आत्मा अनादि से कर्म संयोग से बंधा हुआ है - क्या यह सत्यार्थ है ?
*
1 point
नहीं , आत्मा कोई भी दृष्टि से बंधा हुआ नहीं है
हाँ, पर्यायदृष्टि से देखने पर वह सत्यार्थ है
११. आचार्यदेव शुद्धनय को ग्रहण करने का उपदेश क्यों देते है ?
*
1 point
पर्याय दृष्टि से आत्मा का एक ज्ञायकभाव ग्रहण नहीं हो सकता
स्वभावदृष्टि से आत्मा को जानने से यथार्थ ज्ञान होता है
ऊपर दिए गए सभी विकल्प सही है
१२. कमलिनी के पत्र का स्वभाव जल को स्पर्श करना नहीं है, फिर भी उसे जल को स्पर्शित देखना - वह क्या है ?
*
1 point
पर्याय दृष्टि / संयोग दृष्टि / बाह्य दृष्टि
द्रव्य दृष्टि / स्वभाव दृष्टि / अंतर दृष्टि
१३. आत्मा का यथार्थ ज्ञान किसे कहा जाता है?
*
1 point
अनादिकाल से आत्मा को कर्म-पुदगल के संबंध से ही देखना , अन्य रूपसे नहीं
आत्मा का स्वभाव किंचित् मात्र भी पुदगल को स्पर्श करना नहीं है उसे ही देखना, अन्य रूपसे नहीं
आत्मा का स्वभाव किंचित् मात्र भी पुदगल को स्पर्श करना नहीं है उसे देखना, पुदगल के साथ के संयोगसंबंध को गौण करना
१४. आत्मा का अबद्धस्पृष्ट भाव क्या दर्शाता है?
*
1 point
आत्मा और द्रव्य कर्म / नोकर्म भिन्न-भिन्न है
आत्मा और भावकर्म भिन्न-भिन्न है
१५. आत्मा को वर्तमानमें संयोगमें रहे हुए शरीर के ( दुःखरूप या सुखरूप) परिणमन से भिन्न एक ज्ञानभावरूप देखने से क्या होता है?
*
1 point
आत्मा परद्रव्य से भिन्न ज्ञायकभाव रूपसे परिणमता है
कर्म बंध नहीं होता
संसार से निवृत्त होता है
ऊपर दिए गए सभी विकल्प सही है
१६. 'पर्यायबुद्धि का पक्षपात'- उसका अर्थ क्या है?
*
1 point
आत्मा को कर्मसे बंधा हुआ देखना, आत्मा को मात्र पर्यायवाला देखना, शुद्ध स्वभाव का सर्वथा अस्वीकार करना
आत्मा और कर्म-पुदगल को अपने-अपने स्वभाव से भिन्न- भिन्न देखना
आत्मा को मात्र शुद्ध देखना, कर्म संबंध का सर्वथा निषेध करना
१७. शुद्धनयका पक्षपात - उसका अर्थ क्या है?
*
1 point
आत्मा को कर्मसे बंधा हुआ देखना, आत्मा को मात्र पर्यायवाला देखना, शुद्ध स्वभावका सर्वथा अस्वीकार करना
आत्मा और कर्म-पुदगल को अपने-अपने स्वभाव से भिन्न- भिन्न देखना
आत्मा को मात्र शुद्ध देखना, कर्म संबंध का सर्वथा निषेध करना
१८. आत्मा के अनन्य भाव का अर्थ क्या है?
*
1 point
आत्मा की भिन्न-भिन्न पर्यायों में वहअलग-अलग रूपसे दिखता है, ऐसे स्वरुप को देखना
आत्मा की भिन्न-भिन्न पर्यायों में भी एक आत्मा ही प्रकाशमान है, ऐसे स्वरुप को देखना
१९. सुवर्ण के हार, कुंडल, अंगूठी, लगड़ी इत्यादि स्वरूपमें एक सुवर्ण ही विद्यमान है ऐसे देखना- वह कौनसा भाव है?
*
1 point
अबद्धस्पृष्ट भाव
अनन्य भाव
नियत भाव
२०. आत्मा को संसार अवस्थामें (चार गतिमें) अलग-अलग आकारों से देखना - वह क्या है?
*
1 point
अन्यत्वरूप
अनन्य
२१. आत्मा में नियतभाव देखने का अर्थ क्या है?
*
1 point
आत्मा के गुणों के परिणमन में होनेवाली विविधतामें एक ध्रुव आत्माको देखना
आत्मा के गुणों के परिणमन में होनेवाली विविधतामें अस्थिर आत्माको देखना
२२. जीवके अनंतगुणो में, जीवके स्वभाव के समीप जाकर देखने का अर्थ क्या है?
*
1 point
ज्ञान दर्शनादि गुणोका विशेष ज्ञान करना
ज्ञानदर्शनादि की क्षायिक, क्षायोपशमिक, औपशमिक पर्यायों का ज्ञान करना
अनंतगुणो के पिंड ऐसे द्रव्यको अभेद से ( गुणभेद से भिन्न) देखना
२३. निगोद के जीव, व्रती श्रावक, भावलिंगी मुनिराज - उनके ज्ञानकी पर्यायकी वृद्धि- हानिरुप अवस्थामें सभी को ध्रुव-स्थिर सिद्ध समान देखना - वह क्या है?
*
1 point
नियत भावका ग्रहण
अनियत भावका ग्रहण
२४. श्रद्धा गुणके सम्यक परिणमनसे मैं 'सम्यकदृष्टि ' और विपरीत परिणमनसे मैं 'मिथ्यादृष्टि' - ऐसे अपनेको मानना वह क्या है?
*
1 point
आत्मा के अनियत भाव का ग्रहण
आत्मा के अबद्धस्पृष्ट भाव का ग्रहण
आत्मा के अनन्य भाव का ग्रहण
२५. आत्माकी शक्तिका अविभाग प्रतिच्छेद (अंश) घटता है / बढ़ता है , उसरूपसे आत्मा को देखनेसे क्या जाननेमें आता है?
*
1 point
आत्मा नित्य-नियत एकरूप नहीं है- ऐसा जाननेमें आता है
आत्मा नित्य-नियत एकरूप है- ऐसा जाननेमें आता है
जय जिनेन्द्र. आपने नई नोटबुक और डायरी में समयसार गाथाएँ लिखी ? हर क़्विज में जो गाथाए आएगी वह लिखने से संपूर्ण समयसार अपने स्व-हस्ताक्षर में लिखा जायेगा और वह आपकी यादरूप बनेगा इस भावना से हमने गाथा लिखने का नक्की किया है. आपको अनुकूलता हो तो जरूर लिखे और दिन में गाथा को २-४ बार बोले.
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