पठित अवबोधन = काफ़ी मेहनत के बाद दोनों आमने-सामने पेड़ की द्विशाखा पर थे। पसीने से तरबतर अपने बालों को चेहरे पर से हटाते हुए तोत्तो-चान ने सम्मान से झुककर कहा, "मेरे पेड़ पर तुम्हारा स्वागत है।"यासुकी-चान डाल के सहारे खड़ा था। कुछ झिझकता हुआ वह मुसकराया। तब उसने पूछा, "क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?"उस दिन यासुकी-चान ने दुनिया की एक नयी झलक देखी, जिसे उसने पहले कभी न देखा था। "तो ऐसा होता है पेड़ पर चढ़ना", यासुकी-चान ने खुश होते हुए कहा।वे बड़ी देर तक पेड़ पर बैठे-बैठे इधर-उधर की गप्पें लड़ाते रहे।"मेरी बहन अमरीका में है, उसने बताया है कि वहाँ एक चीज़ होती है-टेलीविजन।" यासुकी-चान उमंग से भरा बता रहा था, "वह कहती है कि जब वह जापान में आ जाएगा तो हम घर बैठे-बैठे ही सूमो-कुश्ती देख सकेंगे। वह कहती है कि टेलीविजन एक डिब्बे जैसा होता है।"तोत्तो-चान उस समय यह तो न समझ पाई कि यासुकी-चान के लिए, जो कहीं भी दूर तक चल नहीं सकता था, घर बैठे चीज़ों को देख लेने के क्या अर्थ होंगे? वह तो यह ही सोचती रही कि सूमो पहलवान घर में रखे किसी डिब्बे में कैसे समा जाएँगे? उनका आकार तो बड़ा होता है, पर बात उसे बड़ी लुभावनी लगी। उन दिनों टेलीविजन के बारे में कोई नहीं जानता था। पहले-पहल यासुकी-चान ने ही तोत्तो-चान को उसके बारे में बताया था।पेड़ मानो गीत गा रहे थे और दोनों बेहद खुश थे। यासुकी-चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह पहला और अंतिम मौका था।