दस लक्षण पर्व - उत्तम शौच
विषय : पूज्य गुरुदेव श्री के उत्तम शौच पर के प्रवचन

पूज्य गुरुदेव श्री के धर्म के दस लक्षण पर के प्रवचन पढ़कर उत्तर दीजिए | पुस्तक के लिए एडमिन से संपर्क करे |  

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1.      उत्तमशौच अर्थात सम्यकदर्शन सहित ____________ या ______________ |

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2.      जिन्हें पवित्र आत्मा का भान नहीं है और जो ____________ को ही अपना मान रहे हैं - ऐसे अज्ञानी जीव शरीर को पवित्र रखने को ही ______________ मानते हैं | 

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3.      शरीर को अपना मानना तो महान ___________ है |

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4.      मैं पर का कर्ता हूँ ऐसा माने, वह जीव ______________ से निस्पृह नहीं हो सकता |

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5.      जिसे पुण्य-पापरूप __________ की पकड़ है उसका ज्ञान विकार से ________________ है |

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6.      जो जीव परमें _____________ है वह महान अशुचि से लिप्त है |

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7.      शरीर की ______________ से आत्मा का धर्म मानना सो _______________ है |

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8.      मुनिवरों की ______________ स्त्री, लक्ष्मी आदि से बिलकुल ________________ है, शुभ और अशुभ दोनों भावों को एक-सा मानते हैं, दोनों भाव अशुचिरूप हैं |

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9.      मुनिओ के _____________ ज्ञानकी एकाग्रता से रागादि ______________ होते ही नहीं हैं | रागादि रहित ______________ सो उत्तम शौचधर्म है |

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10. ______________ जीव उस शुभ परिणाम को अपना स्वरुप नहीं मानते और उसमें _____________ नहीं करते | इससे श्रद्धा-ज्ञानको ________________ से उनके भी शौचधर्म है 

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11.      शुभभाव से आत्मा को लाभ मानकर शुभपरिणति का संग करना, वह __________________ है |

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12.      बाह्य में स्नानादि करना वह शौच नहीं है और ____________-परिणामों में भी आत्मा की शुचिता नहीं है |

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13.      गंगा नदी, समुद्र या पुष्करादि समस्त ___________ में सदैव स्नान कराने से भी शरीर की _____________ दूर नहीं होती, शरीर कभी पवित्र होता ही नहीं | स्वभाव से ही शरीर अशुचिरूप है |

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14.      पुण्य-पाप रहित और शरीर से __________, पवित्र आत्मस्वरूप की प्रतीति से _______________ प्रगट करना सो ही पवित्रता है , और वही शौच धर्म है |

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15.      पवित्र चैतन्यभाव की श्रद्धा-ज्ञान-____________ द्वारा पवित्रभाव प्रगट करना ही उत्तम _________ की सच्ची ____________ है |

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