1. उत्तमशौच अर्थात सम्यकदर्शन सहित ____________ या ______________ |
2. जिन्हें पवित्र आत्मा का भान नहीं है और जो ____________ को ही अपना मान रहे हैं - ऐसे अज्ञानी जीव शरीर को पवित्र रखने को ही ______________ मानते हैं |
3. शरीर को अपना मानना तो महान ___________ है |
4. मैं पर का कर्ता हूँ ऐसा माने, वह जीव ______________ से निस्पृह नहीं हो सकता |
5. जिसे पुण्य-पापरूप __________ की पकड़ है उसका ज्ञान विकार से ________________ है |
6. जो जीव परमें _____________ है वह महान अशुचि से लिप्त है |
7. शरीर की ______________ से आत्मा का धर्म मानना सो _______________ है |
8. मुनिवरों की ______________ स्त्री, लक्ष्मी आदि से बिलकुल ________________ है, शुभ और अशुभ दोनों भावों को एक-सा मानते हैं, दोनों भाव अशुचिरूप हैं |
9. मुनिओ के _____________ ज्ञानकी एकाग्रता से रागादि ______________ होते ही नहीं हैं | रागादि रहित ______________ सो उत्तम शौचधर्म है |
10. ______________ जीव उस शुभ परिणाम को अपना स्वरुप नहीं मानते और उसमें _____________ नहीं करते | इससे श्रद्धा-ज्ञानको ________________ से उनके भी शौचधर्म है
11. शुभभाव से आत्मा को लाभ मानकर शुभपरिणति का संग करना, वह __________________ है |
12. बाह्य में स्नानादि करना वह शौच नहीं है और ____________-परिणामों में भी आत्मा की शुचिता नहीं है |
13. गंगा नदी, समुद्र या पुष्करादि समस्त ___________ में सदैव स्नान कराने से भी शरीर की _____________ दूर नहीं होती, शरीर कभी पवित्र होता ही नहीं | स्वभाव से ही शरीर अशुचिरूप है |
14. पुण्य-पाप रहित और शरीर से __________, पवित्र आत्मस्वरूप की प्रतीति से _______________ प्रगट करना सो ही पवित्रता है , और वही शौच धर्म है |
15. पवित्र चैतन्यभाव की श्रद्धा-ज्ञान-____________ द्वारा पवित्रभाव प्रगट करना ही उत्तम _________ की सच्ची ____________ है |