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समयसार - QUIZ No. 5
विषय : कलश ४,५,६,७ - अमृतचंद्राचार्य
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समयसार अध्ययन वर्ष
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समयसार परमागम - कलश ४
समयसार परमागम - कलश ४
१. कौन से नयों के विषय में परस्पर विरोध हे ?
*
1 point
निश्चयनय और व्यवहारनय
शुद्धनय और अशुद्धनय
द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय
ऊपर दिये गए सभी विकल्प सही है
२. नयोंके विषय में विरोध क्यों है?
*
1 point
एक ही वस्तु को द्रव्यस्वभाव और पर्यायस्वभाव ऐसे दो भिन्न अपेक्षा से कथन करते है
निश्चयनय एक वस्तुका कथन करता है और व्यवहारनय उससे विरोधी हो ऐसी दूसरी वस्तु का कथन करता है
३. आत्मामें सत-असतरूप , नित्य-अनित्यरूप आदि परस्पर विरोधी धर्मोंको समझने के लिए कैसा कथन उपयोगी है?
*
1 point
स्याद्वाद (अनेकांत) कथन
एकांत कथन
४. जो जीव वस्तुके स्वरुप समझने के लिए सिर्फ एक ही पक्ष ( एकांत) को ग्रहण करे तो वह कैसा है?
*
1 point
सम्यग्दृष्टि
मिथ्यादृष्टि
५. वर्तमानमें आत्मा क्रोधादिरूप देखनेमें आने से जीव अपनेको सर्वथा अशुद्ध ही माने , तो उसने क्या किया ?
*
1 point
एकान्तपक्ष द्वारा आत्माका स्वरुप जाना, जो सत्य नहीं है
स्याद्वाद द्वारा आत्माका स्वरुप जाना, जो सत्य है
६. वर्तमानमें जो क्रोधादिरूप अवस्था दिखती है वह वास्तव में "है ही नहीं", मैं सर्वथा शुद्ध- सिद्ध समान ही हूँ - ऐसा मैं मानता हूँ , तो मैंने क्या किया ?
*
1 point
एकान्तपक्ष द्वारा आत्माका स्वरुप जाना, जो सत्य नहीं है
स्याद्वाद द्वारा आत्माका स्वरुप जाना, जो सत्य है
७. अनुभव ( निर्विकल्प दशा ) के समय कौनसा नय लगता है?
*
1 point
निश्चय नय
व्यवहारनय
कोई भी नय लागु नहीं होते
८. यथार्थ "जिनवचन में रमना " किसे कहते है?
*
1 point
शास्त्र स्वाध्याय करना / कराना
शास्त्र में और दिव्यध्वनि में दिखाए गए उपादेय जीवके शुद्धस्वरूपका प्रत्यक्ष अनुभव करना
पुद्गल वचनरूप दिव्यध्वनि सुनना
९. वस्तुका सर्वथा एकान्तपक्ष ग्रहण करने से क्या होता है?
*
1 point
वस्तु स्वरूपकी असत्य कल्पना होती है
वस्तु का यथार्थ स्वरुप समझ में आता है
समयसार परमागम - कलश ५
समयसार परमागम - कलश ५
१०. व्यवहारनय को हस्तावलम्बन तुल्य क्यों कहा है?
*
1 point
वस्तुका निश्चय स्वरुप (सत्य स्वरुप) समझानेमें सहायक है
शुद्ध आत्मस्वरूप समझना हो तो, गुण-गुणी का भेद करके समझानेमें उपयोगी है
ऊपर दिये गए सभी विकल्प सही है
११. पूर्ण शुद्ध आत्माकी प्राप्ति होने से पहले कौनसा नय प्रयोजनवान है?
*
1 point
निश्चयनय
व्यवहारनय
दोनों नय
कोई नय नहीं
१२. पूर्ण शुद्ध आत्माकी प्राप्ति हो जानेके बाद कौनसा नय प्रयोजनवान है?
*
1 point
निश्चयनय
व्यवहारनय
दोनों नय
कोई नय नहीं
१३. पूर्ण शुद्ध आत्माकी प्राप्ति करनेके लिए कौनसा नय मुख्य और कौनसा नय गौण करनेमें आता है?
*
1 point
निश्चयनय - मुख्य , व्यवहारनय - गौण
निश्चयनय - गौण , व्यवहारनय - मुख्य
निश्चयनय - मुख्य , व्यवहारनय - मुख्य
निश्चयनय - गौण , व्यवहारनय - गौण
समयसार परमागम - कलश ६
समयसार परमागम - कलश ६
१४. कौन से द्रव्य अपनी गुण-पर्यायोंमें व्याप्त रहते है ?
*
1 point
जीव द्रव्य
पुद्गल द्रव्य
आकाश द्रव्य
सभी द्रव्य
१५. आत्मा किसमें व्याप्त है?
*
1 point
सम्यग्दर्शन आदि निर्मल पर्यायमें
क्रोधादि विकारी पर्याय में
सब प्रकारकी पर्यायों में
१६. जीव अपने गुण-पर्यायोंमें व्याप्त है इसका अर्थ क्या?
*
1 point
आत्मा क्रोधादिरूप विकारी पर्याय में व्याप्त है और आत्मा सम्यग्दर्शन आदि निर्मल पर्यायमें व्याप्त नहीं है
आत्मा क्रोधादिरूप विकारी पर्याय में व्याप्त है और आत्मा सम्यग्दर्शन आदि निर्मल पर्यायमें व्याप्त है
आत्मा क्रोधादिरूप विकारी पर्याय में व्याप्त नहीं है और आत्मा सम्यग्दर्शन आदि निर्मल पर्यायमें व्याप्त नहीं है
आत्मा क्रोधादिरूप विकारी पर्याय में व्याप्त नहीं है और आत्मा सम्यग्दर्शन आदि निर्मल पर्यायमें व्याप्त है
१७. आत्माका (मेरा) स्वाभाव शुद्ध है लेकिन कर्मके उदयमें मेरी क्रोध,मान, माया,लोभ आदि कषायरूप पर्याय होती है - यह कैसी पर्याय है?
*
1 point
स्वाभाविक पर्याय
नैमित्तिक पर्याय
१८. आत्मा कैसी पर्यायका कर्ता-भोक्ता है?
*
1 point
मात्र विकारी - क्रोधादि पर्याय का
सब प्रकारकी पर्यायों का
मात्र अविकारी - शुद्ध निर्मल पर्याय का
१९. शुद्ध आत्मा कैसा है?
*
1 point
द्रव्यकर्म और भावकर्म से सहित
क्रोधादि कषायरूप
मनुष्यादि गतिरूप
ऊपर दी गयी सभी अवस्थाओं से रहित
२०. शुद्धनयसे आत्माका आकार कैसा बताया है?
*
1 point
मनुष्यगतिमें मनुष्यके शरीर जैसा और देवगतिमे देवके शरीर जैसा
ज्ञायकमात्र एक - आकार
२१. मैं (आत्मा) मनुष्य पर्यायमें पिता,पुत्र,भाई,शेठ आदि अनेक रूपमें दिखाई देता हूँ, आत्माके ऐसे अनेक प्रकार कौन से नयसे कहे जाते है?
*
1 point
व्यवहार नय से
निश्चय नय से
२२. शरीरमें हुई रोगजन्य अवस्थाको देखकर "मैं रोगी हूँ " - ऐसा कहना , यह कौनसे नयका कथन है?
*
1 point
शुद्ध नय / निश्चय नय
अशुद्ध नय / व्यवहार नय
२३. "मुझे भूख लगते ही स्वादिष्ट भोजन खाने की क्रिया" यहाँ क्या हुआ है?
*
1 point
मैं (आत्मा) के भाव / परिणाम / पर्याय, शरीर पर्याय और भोजन की पर्याय - सब एकरूप हो जाती है
मैं (आत्मा) के भाव / परिणाम / पर्याय, शरीर पर्याय और भोजन की पर्याय - तीनों अपनी-अपनी पर्यायमें व्याप्त रहते है
२४. शुद्धनयसे बताये हुए आत्मा के प्रमाण को कैसा कहा गया है ?
*
1 point
परोक्ष प्रमाण क्योंकि नय श्रुतप्रमाण का अंश है, सर्वज्ञ के आगम वचन के द्वारा वस्तु/आत्मा को जाना
प्रत्यक्ष प्रमाण क्योंकि शुद्धनयसे प्रत्यक्ष आत्मा प्राप्त होता है
२५. शुद्धनयसे बताये हुए पूर्ण आत्माका श्रद्धान करना - वह क्या है?
*
1 point
निश्चय सम्यग्दर्शन
व्यवहार सम्यग्दर्शन
२६. शुद्ध चेतना मात्र वस्तु स्वरूपको अनुभव करना - वह क्या है?
*
1 point
व्यवहार सम्यग्दर्शन
निश्चय सम्यग्दर्शन
२७. मैं चैतन्य स्वरुप (चेतनालक्षण) युक्त जीव हूँ , जब में क्रोधादिरूप परिणमता हूँ तब मैं अपनेको क्रोधादि का कर्ता मानता हूँ - वह क्या है?
*
1 point
ज्ञान चेतना
कर्म चेतना
कर्मफल चेतना
२८. स्वजनों का वियोग होते ही दु:खका भोक्ता और पुत्रके जन्म होते ही सुखका भोक्ता "मैं ही हूँ" ऐसा मानना - वह क्या है ?
*
1 point
कर्मफल चेतना
ज्ञान चेतना
कर्म चेतना
२९. संसारकी कर्मजनित अवस्थाएँ और हर्ष-शोक के परिणामसे मैं सदा भिन्न हूँ (उसका कर्त्ता-भोक्ता मैं नहीं ) ऐसा मानना और मात्र ज्ञाता - द्रष्टा रहना - वह क्या है?
*
1 point
कर्मफल चेतना
ज्ञान चेतना
कर्म चेतना
३०. आत्मा चैतन्यमात्र स्वरुप है ऐसा श्रद्धान करना वह निश्चय सम्यग्दर्शन है क्या ?
*
1 point
हाँ
नहीं , सर्वज्ञ के द्वारा बताया गया अनंत गुणों-धर्मों के सहित जो पूर्ण आत्माका स्वरुप है उसका श्रद्धान जरूरी है
३१. जीवादि नवतत्वों के मात्र नाम और स्वरुप जानना वह व्यवहार सम्यग्दर्शन है ?
*
1 point
नहीं , निश्चय सम्यग्दर्शन साथमें होना जरूरी है
हाँ
३२. जीव जो दान-पूजा आदि पुण्यरुप क्रियामें अपनेको पुण्य तत्वरुप (धर्मात्मा) अनुभव करता है - वह कैसा है?
*
1 point
सम्यग्दृष्टि
मिथ्यादृष्टि
३३. आचार्य अमृतचंद्र क्या भावना भाते है?
*
1 point
पूर्ण वीतरागता प्राप्त हो
नव तत्वों के विकल्परूप अवस्था दूर हो
शुद्ध आत्मा प्राप्त हो
ऊपर दिये गए सभी विकल्प सही है
३४. निश्चय सम्यक्त्वकी प्राप्ति के हेतु क्या करना?
*
1 point
नव तत्वमें व्याप्त आत्मा का अभेद अनुभव करना
सभी अवस्थामें त्रिकाल रहनेवाले शुद्धत्व का अनुभव करना
ऊपर दिये गए सभी विकल्प सही है
समयसार परमागम - कलश ७
समयसार परमागम - कलश ७
३५. जीवको शुभ, अशुभ और शुद्ध परिणाम के समय "उस परिणाम स्वरुप देखना" वह क्या है?
*
1 point
भेद दृष्टि
अभेद दृष्टि
३६. नव तत्वमें अदृश्य / तिरोभूत / छिपी हुई आत्मज्योति देखना वह क्या है ?
*
1 point
शुद्ध नयकी दृष्टि
अशुद्ध नयकी दृष्टि
जय जिनेन्द्र. आपने नई नोटबुक और डायरी में समयसार गाथाएँ लिखी ? हर क़्विज में जो गाथाए आएगी वह लिखने से संपूर्ण समयसार अपने स्व-हस्ताक्षर में लिखा जायेगा और वह आपकी यादरूप बनेगा इस भावना से हमने गाथा लिखने का नक्की किया है. आपको अनुकूलता हो तो जरूर लिखे और दिन में गाथा को २-४ बार बोले.
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