दस लक्षण पर्व - उत्तम मार्दव
विषय : पूज्य गुरुदेव श्री के उत्तम मार्दव पर के प्रवचन

By: www.jainmedialive.com

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1. आज उत्तम मार्दव धर्म का दिन होने से ________________शास्त्र में से वर्णन हो रहा है |

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2. सम्यक्दर्शन सहित _____________ सो उत्तम मार्दव धर्म है |

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3. उत्तम जाति, कुल, बल, ज्ञान इत्यादिके अभिमान का त्याग सो _____________ है |

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4. धर्मी जीव को ऐसी ____________ होती है कि जाति-कुल इत्यादि के अभिमान का विकल्प भी नहीं उठता |

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5. आत्मा की जाति शुद्ध चैतन्यधातु नित्य ______________ है, वीतरागता आत्मा का कुल है और चैतन्य केवलज्ञान ___________ का स्वयं स्वामी है |   

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6. जो चैतन्यस्वरूप आत्मा को पहिचाने नहीं और शरीर-कुटुंब-कुल आदि को अपना माने उसे कभी ___________ टालता नहीं और उसे ___________ मार्दवधर्म होता नहीं | 

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7.  धर्मी जीव किसी भी बाह्य पदार्थ से अपना बड़प्पन नहीं मानते, किन्तु  _________के सम्यक श्रद्धा-ज्ञानपूर्वक __________ होकर जितना राग दूर हो गया उतना बड़प्पन और जितना राग शेष रहा उतनी हीनता है - ऐसा जानते है |

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8. आत्मा का ____________ माता-पिता-स्त्री शरीर आदि में नहीं किन्तु अपनी __________ में जो अज्ञान और राग-द्वेष है वह ही संसार है |

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9. चैतन्यस्वरुप का ____________ करके शरीर के बल आदि का ______________ करनेवाला जीव बड़ा हिंसक है |

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10.  आत्मा का बल (____________ ) या तो अज्ञानभाव से पुण्य-पाप में अटक जाता है या ___________ स्वभाव को जानकर उसमें राग-द्वेष रहित स्थिरता प्रगट करता है |

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11. राग ___________ को उठने ही नहीं देना और वीतरागरूप स्थिर रहना सो उत्तम मार्दव धर्म है |

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12. शास्त्र ज्ञान या अवधि-_______________ हो, उसका ज्ञानी को अभिमान नहीं होता |

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13. ______________ को स्वभाव की जागृतिपूर्वक वीतरागभाव प्रगट होने पर मद का विकल्प ही नहीं होता वही सच्चा मार्दव धर्म है |

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14. ______________ को छोड़कर अखण्डस्वभाव के श्रद्धा-ज्ञान को स्थिर रखना वह ___________ का धर्म है |

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15.  _______________-संत तो महाज्ञान के सागर हैं, अगाध ______________ हैं, तीव्र आराधकदशा प्रगटी है, तथापि उनके कितनी ______________ है |

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16.   ____________ के भिन्नत्व के विवेक से शरीर की ____________ का चिंतवन करनेवाले मुनियों को किसी भी पदार्थ में अहंकार करने का अवसर ही नहीं मिलता |

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17.  पर से भिन्न अपने स्वरुप को पहिचानकर ____________ को निरंतर ज्ञायक साक्षीस्वरूप आत्मा के  स्वभाव  का ही ध्यान करना चाहिए |

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