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ज्ञान गोष्ठी - QUIZ No. 45
विषय : विविध , प्रश्न : 640 to 652
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१. कुटुम्बीजन स्वार्थ के सगे हैं ऐसा लगे तो क्या करना ?
*
1 point
कुटुम्बीजन को तुरंत छोड़ देना
आत्मा का सही स्वरुप समझना , कुटुम्बीजन के प्रति अंदर से ममत्व को छोड़ना
२. परद्रव्य में सुख की वांछा रूप दीनता छोड़कर स्वभाव में ही सुख मानना - वह क्या हैं ?
*
1 point
सच्ची स्वतंत्रता हैं
सच्ची आत्मशांति भोगने की कला हैं
ऊपर दिए गए सब विकल्प सही हैं
३. वादीमुनिराज को प्रभु स्तुति करने से कुष्ठ रोग दूर हो गया - यह कैसी कथन पद्धति हैं ?
*
1 point
प्रथमानुयोग
द्रव्यानुयोग
४. निश्चयाभासी किसे कहते हैं ?
*
1 point
जो निश्चय का ज्ञान करे और अनुभव भी करे
जो निश्चय का ज्ञान करे और अनुभव न करे लेकिन अपने को अनुभवी मानने लगे
५. मनुष्यभव में आत्मा का प्रथम कर्त्तव्य क्या हैं ?
*
1 point
प्रभु भक्ति में लीन रहना
"में मनुष्य हु" - ऐसा मानकर सब कार्य करते रहना
"में ज्ञानस्वरूप हु" - ऐसा दृढ श्रद्धान करना
६. पैसा-वैभव में आकर्षण - वह क्या दर्शाता हैं ?
*
1 point
जीव के मोह की मूर्खता / पागलपन बताता है
पर द्रव्य के मोह में अपना मनुष्यभव बिगाड़कर संसार में रखड़ेगा ऐसा बताता है
ऊपर दिए गए सब विकल्प सही हैं
७. अनंत काल में आत्मा का स्वरुप समझ नहीं आया इस लिए अब भी वह समझ नहीं आएगा - यह सत्य हैं क्या ?
*
1 point
हाँ, व्यर्थ प्रयत्न करना नहीं चाहिए
नहीं, अनादि की विपरीत रूचि को सही दिशा में बदलने से आत्मा जरूर समझ में आएगा
८. ज्ञानी के भोग निर्जरा है इस लिए विषय-वासना के भाव से निर्जरा होती है - यह मान्यता क्या है ?
*
1 point
निश्चय कथन है , सत्य है
स्वछंदता की पुष्टि के लिए किया हुआ कथन है, असत्य है
९. विकारी पर्याय मेरी नहीं है इस लिए विकार करना योग्य है - ऐसा कौन मानता है ?
*
1 point
अज्ञानी ( स्वछंदता के लिए ऐसा मानते है )
ज्ञानी
१०. देह मृत कलेवर है फिर भी उसे देवालय कहना - वह क्या है ?
*
1 point
निश्चय से वह देवालय समान पवित्र है
आत्मा की महिमा बताने के लिए उपचार से देवालय कहा है
११. द्रव्य-गुण-पर्याय रूप आत्मद्रव्य का ध्यान केवलज्ञान में निमित है - उसे क्या कहते है ?
*
1 point
द्रव्य परमाणु
भाव परमाणु
१२. आत्मा का स्व संवेदन रूप सूक्ष्म परिणाम - शुद्ध निर्मल पर्याय क्या है ?
*
1 point
द्रव्य परमाणु
भाव परमाणु
१३. जड़ ( पुद्गल ) में अनुभूति क्या है ?
*
1 point
उत्पाद-व्यय-ध्रुव रूप परिणाम को जड़ के लिए अनुभूति कहते है
जड़ में अनुभूति नहीं होती
१४. भावपाहुड गाथा ३७ में कहा कि मनुष्य है शरीर में एक अंगुल स्थान में छियानवे-छियानवे रोग होते है - अगर रोग हो जाये तो क्या करे?
*
1 point
शरीर को अपना मानकर रोग होने पर आकुलित होना, दुखी होना
आत्मा आनंद का सागर है, मेरा स्वरुप शरीर से भिन्न है ऐसा विचारना और अपने आत्मा की शरण लेना
१५. कौन सा शास्त्र ज्ञान प्रधान है?
*
1 point
प्रवचनसार
समयसार
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