घर घर उपनिषद
सनातन धर्म क्या?

इस प्रश्न का कोई सीधा सही और संतोषप्रद उत्तर हमें सुनने को नहीं मिलता।

तो आज हम स्पष्टता, सत्यता और साहस के साथ आपसे कह रहे हैं कि जो वेदांत को जानता-मानता है वो ही सनातनी है।

हमारी यह बात एक निर्भीक घोषणा है उन सब दुष्प्रचारों के विरुद्ध जो कहते हैं:

~ हर गाँव, हर शहर में बदलने वाली उथली मान्यताओं का पालन करने से आप सनातनी हो जाते हैं।

~ होली दीवाली मनाने से आप सनातनी हो जाते हैं।

~ किसी भी छोटे-मोटे ग्रंथ का वेदार्थ-विहीन पालन करने से आप सनातनी हो जाते हैं।

~ जातिवाद या कर्मकांड का पालन करने से आप सनातनी हो जाते हैं।

~ पौराणिक कथाओं में विश्वास करने से आप सनातनी हो जाते हैं।

~ सनातनी घर में पैदा होने से सनातनी हो जाते हैं।

नहीं! उपरोक्त में से कोई भी बात अपनेआप में आपको सनातनी कहलाने में पर्याप्त नहीं है।

सनातन धर्म वैदिक है, और वेदों का मर्म है वेदांत में। धर्मसम्बन्धी किसी भी बात के मान्य और स्वीकार्य होने के लिए जो श्रुतिप्रमाण आवश्यक है, वो श्रुतिप्रमाण भी व्यवहारिक रूप से वेदांतप्रमाण ही है।

धर्म बिना ग्रंथ के नहीं चल सकता, धर्म बिना ग्रंथ के होगा तो उसमें सिर्फ लोगों की अपनी-अपनी मनमानी चलेगी। मनमानी चलाने को धर्म नहीं कहते।

अब्राहमिक पंथों के पास तो अपने-अपने केंद्रीय ग्रंथ हैं ही। भारतीय धर्मों में भी बौद्धों, जैनों, सिखों के पास भी अपने सशक्त व निर्विवाद रूप से केंद्रीय ग्रंथ हैं। ग्रंथ से ही धर्म को बल, स्थायित्व और आधार मिलता है। क्या हम धम्मपद के बिना बौद्धों की और गुरु ग्रंथ साहिब के बिना सिखों की कल्पना भी कर सकते हैं?

सनातन धर्म आज हज़ार हिस्सों में बटा हुआ है। उसके अनुयायी बहुधा भ्रमित और दिशाहीन हैं। धर्म के शत्रु सनातन धर्म की दुर्बलता का लाभ उठा कर धर्म की अवहेलना और अवमानना करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। धर्म का अर्थ रूढ़ि, मान्यता, और त्योहार बनकर रह गया है।

ऊपर-ऊपर से तो सनातनी सौ करोड़ हैं, लेकिन ध्यान से भीतर देखा जाए तो स्पष्ट ही है कि धर्म के प्राणों का बड़ी तेज़ी से लोप हो रहा है। लोग बस अब नाम के सनातनी हैं। यही स्थिति दस-बीस साल और चल गयी तो धर्म के हश्र की कल्पना भी भयावह है।

हम बिना किसी लाग-लपेट के साफ घोषणा करते हैं: धर्म को बचाने का एक मात्र तरीक़ा है, धर्म के केंद्र में उच्चतम ग्रंथ को प्रतिष्ठित करना। वो उच्चतम ग्रंथ उपनिषद हैं, और सनातनी होने का अर्थ ही होना चाहिए वेदांती होना। जो वेदांत को न पढ़ते हैं, न समझते हैं, वे स्वयं से पूछें कि वे किस धर्म का पालन कर रहे हैं।

पुराणों, महाकाव्यों, व स्मृतियों को भी उपनिषदों के प्रकाश में ही पढ़ा जाना चाहिए, और यदि स्मृतियों आदि के कुछ अंश उपनिषदों के विरुद्ध हैं तो हमें तत्काल उन्हें त्याग देना चाहिए।

हम आज 1 अक्टूबर को ‘वेदांत दिवस’ के रूप में मनायेंगे। आगे भी प्रतिवर्ष 1 अक्टूबर को 'वेदांत दिवस' के रूप में मनाया जाएगा। यह वैसे भी विचित्र भूल थी कि हर छोटी-मोटी चीज़ के उत्सव के लिए साल का एक दिन निश्चित किया गया लेकिन उच्चतम, अपौरुषेय वेदांत की याद और उत्सव के लिए कोई दिन ही नहीं!

हम प्रस्ताव करते हैं कि आज के दिन आप उपनिषदों के सुप्रसिद्ध शांतिपाठ:

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

के अर्थ पर ध्यानपूर्वक मनन करें व श्लोक को कंठस्थ भी कर लें। प्रण करें कि अगले एक वर्ष में आप कम से कम चार उपनिषदों को मूल अर्थ सहित ग्रहण करेंगे।

आपका काम आसान बनाने के लिए हमने आज से ‘घर घर उपनिषद’ नाम का प्रखर अभियान प्रारम्भ किया है। हमारा प्रण है 20 करोड़ घरों तक व्याख्या समेत उपनिषद को पहुँचाना।

अपनी आँखों के सामने धर्म का निरंतर क्षय और अपमान सहने की बात नहीं । सनातन धर्म जिस उच्चतम स्थान का अधिकारी है उसे वहाँ बैठाना ही होगा। हमारे सामने ही अगर समाज और देश से धर्म का लोप हो गया तो हम स्वयं को कैसे क्षमा करेंगे?

इस मुहिम का आरंभ भले ही एक व्यक्ति या एक संस्था द्वारा हो रहा हो पर वास्तव में यह अभियान मानवता को बचाने का अभियान है। सच तो यह है कि संपूर्ण विश्व में जहाँ कहीं भी जो कुछ भी उत्कृष्ट और जीवनदायक है उसके मूल में कहीं न कहीं वेदांत ही है। वेदांत की पुनर्प्रतिष्ठा जीवन की पुनर्प्रतिष्ठा होगी।

साथ दीजिए।
Sign in to Google to save your progress. Learn more
Your Name *
Email id *
Phone Number *
Delivery Address *
Pincode *
City *
State *
Comments
Submit
Clear form
Never submit passwords through Google Forms.
This form was created inside of PrashantAdvait Foundation. Report Abuse