1. उत्तम ______________ का अर्थ है सम्यक्दर्शनपूर्वक वीतरागी सरलता |
2. आत्मा के ज्ञायकस्वरूप में ___________- का भाव ही उत्पन्न न होने देना उत्तम ______________ है |
3. चैतन्यस्वरूप की _____________ में वक्रता करके किसी विकल्प या व्यव्हार के आश्रय से _____________ मानना सो अनार्यता है |
4. किसी पर के आश्रय से या पुण्य _____________ से आत्मा को लाभ मानना सो वक्रता है, _____________ है |
5. व्यवहार ______________- भी रागरूप है, वह आत्मा का स्वरुप नहीं है |
6. आत्मा ज्ञान-आनंद की मूर्ति, _______________ से रहित है, उसे यथारूप ( जैसा है वैसा ) समझना और श्रद्धा में __________- न करना सो सम्यकदर्शनरूप सरलता है |
7. जो बात मनमें हो वही ______________ से प्रगट करना उसे आर्जवधर्म कहते है और उससे विरुद्ध अर्थात मायासे दूसरेको ठगने का परिणाम सो ________________ है |
8. _________________ से तो जैसा शुद्ध आत्मस्वभाव जाना है वैसा ही परिणमन पर्याय में हो जाना सो ही उत्तम सरलता धर्म है |
9. उस समय पूर्ण वीतरागता नहीं है और राग रह जाता है इससे उस ______________ आर्जवधर्म के फल में __________ मिलता है |
10. सरलता के शुभ परिणाम या वक्रता के __________ परिणाम, इन दोनों से रहित एक ____________ आत्मा है, उसकी श्रद्धा-ज्ञान को ___________ रखना सो धर्म है |
11. यदि एकबार भी ___________ की जाए तो अत्यंत कठिनाई से संचित किये हुए मुनि के गुण __________--अहिंसा आदिको ढक देती है अर्थात मायाचारी पुरुष के ______________ गुण भी आदरणीय नहीं रहते |
12. जो अपने __________ दोषों को दोष के रूपमें नहीं जानता और उन्हें धर्म मानता है, वह वास्तवमें मायाचारी है | अपने दोष को छिपाने का भाव सो मायाचारी है |
13. यहाँ पर मुख्यतया _____________ की बात है | किन्तु _____________-गृहस्थों को भी स्वभाव के भानपूर्वक _______________ उत्तम, सरलभाव प्रगट करने का प्रयत्न करना चाहिए |
14. जो शुभराग से धर्म मानता है ऐसा __________ जीव, चाहे जैसे सरलता का परिणाम रखे, छोटे से छोटे दोष को भी प्रगट करके ____________ ले तो भी उसके किंचित आर्जव धर्म नहीं है |
15. जो श्रीगुरु आदि के ___________ को छिपाता है वह हो ______________ में भी सरल नहीं है , उसके उत्तम वीतरागी सरलता तो होती ही नहीं |