भगवद् गीता प्रश्नोत्तरी- 203
☘️🌷जय श्री राम !! 🌷☘️
☘️🌷जय श्री कृष्ण !!🌷☘️
Sign in to Google to save your progress. Learn more
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, 
हे नाथ नारायण वासुदेव। 
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
कार्तिक मास 

कार्तिक को सबसे पवित्र महीना माना जाता है। स्कंद पुराण में कार्तिक मास की महिमा का वर्णन किया गया है। 

 “न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम्।  
न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गंगा समम्।।"  

“कार्तिक मास के समान कोई मास नहीं, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं।”

इस मास को “दामोदर मास” भी कहते हैं। कार्तिक मास में भगवान दामोदर की पूजा करते हैं और प्रतिदिन घी का दीपक अर्पित करते हैं ।
वेदवित्, ब्रह्मवित्, कृत्स्न-वित्, योगवित्

वित् का अर्थ है “ज्ञाता” 

आज हम वित् से जुड़े हर उस शब्द को देखेंगे जो भगवद् गीता में आया है।

1.वेदवित् - वेदों का ज्ञाता 
जो वेदों को बहुत अच्छी तरह से जानता हो।

 श्रीभगवानुवाच 
ऊर्ध्वमूलमध:शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् | छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् 
|| 15.1|| 

अर्थ: जो अश्वत्थ वृक्ष के रहस्य को जानते हैं  उसे वेदों का ज्ञाता , वेदवित् कहते हैं। 
__________________________

2.ब्रह्म वित् - जिसे ब्रह्म का पूर्ण ज्ञान है - जिसने ब्रह्म विद्या  जैसे वेद, गीता, उपनिषद, पुराण और अन्य शास्त्र पढ़े हैं। 

न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् | 
स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थित: 
|| 5.20||  

अर्थ: जो स्वयं को जानता है जो स्थिरबुद्धि,  संमोहरहित ब्रह्मवित् पुरुष ब्रह्म में स्थित है,  वह प्रिय वस्तु को प्राप्त होकर हर्षित नहीं होता और अप्रिय को पाकर उद्विग्न नहीं होता। 

__________________________

3.कृत्स्न-वित्-ज्ञानी पुरुष 
 वह व्यक्ति जिसके पास तथ्यात्मक ज्ञान हो

प्रकृतेर्गुणसम्मूढा: सज्जन्ते गुणकर्मसु | तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत्||3.29||

अर्थ :कृतस्नवित्  यानि बुद्धिमान ज्ञानी पुरुष , जो इस परम सत्य को जानते हैं, उन्हें अकृत्स्न-वित् यानि अज्ञानी लोग  को विचलित नहीं करना चाहिए जिनका ज्ञान अल्प होता है। 
__________________________

4.योग-वित्-तमः योग के ज्ञान में सबसे उत्तम। 

एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते।  
येचाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः
।।12.1।।

अर्थ: जो भक्त, सतत युक्त होकर इस सगुण रूप की  उपासना करते हैं और जो भक्त अक्षर, और अव्यक्त की उपासना करते हैं, उन दोनों में कौन उत्तम योगवित् है।।


आपका नाम *
1.  श्रीकृष्ण ने अध्याय 4 में 12 यज्ञों का उल्लेख किया है जो मन की शुद्धि करते हैं ।
इन यज्ञों में से भगवान के अनुसार सर्वश्रेष्ठ यज्ञ कौन सा है?
*
2 points
 2. भगवान कहते हैं “और जब तुम आध्यात्मिक गुरु से सत्य के बारे में सीखोगे, तो तुम जान जाओगे कि—— *
2 points
Captionless Image
3. धृष्टद्युम्न को किसने मारा? *
2 points
4. आप हर एक भगवद् गीता पुस्तक में यह चित्र देखे होंगे जिसमें भगवान श्रीकृष्ण पाँच घोड़ों वाले अर्जुन के रथ पर सवार कर रहें है| यह चित्र हमारे मानव जीवन का प्रतीक है। इसमें रथ, अर्जुन, श्रीकृष्ण, लगाम और घोड़े सभी किसी न किसी का प्रतीक हैं।  

 लगाम किसका प्रतीक है?
*
2 points
Captionless Image
 5.  भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बनें, क्योंकि अर्जुन उनके प्रिय मित्र और भक्त थे। वे अर्जुन के आदेशों का पालन करने के लिए तैयार थे। यद्यपि वे सारथी हैं , वे हमेशा सर्वोच्च और अचूक हैं , इसलिए अर्जुन उन्हें _______ कहते हैं, जो कभी भी अपने अंतर्निहित स्वभाव और शक्तियों को नहीं खोते हैं। *
2 points

5. तत्ववित् - 
जो परम सत्य को जानता है 
- जो जानता है कि हम कर्ता नहीं हैं 
- जो जानता है कि सत् अविनाशी और शाश्वत है( पुरुष, ब्रह्म )और 
असत् नाशवान और अस्थायी है(प्रकृति, जगत)
- जो भगवान, परमात्मा और ब्रह्म को समझता है और सभी में और हर जगह ईश्वर को देखता है 
- जो जानता है कि आत्मा शाश्वत है और शरीर नाशवान है

तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयो: | 
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते 
|| 3. 28|| 

अर्थतत्ववित्  लोग अपने शरीर से अपनी पहचान नहीं जोड़ते। वे आत्मा को गुणों और कर्मों से अलग मानते हैं, और वे हर गतिविधि को तीन गुणों की गतिविधियों के कारण मानते हैं। 
__________________________

6.सर्व-वित्-
पूर्ण ज्ञान युक्त,
सब कुछ जानने वाला

सर्व-वित्  का अर्थ भगवान ने श्लोक 15.19 में बहुत ही स्पष्ट रूप में दिया है ।

यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम् | 
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत 
|| 15.19|| 

अर्थ: वे जो संशय रहित होकर मुझे परम दिव्य भगवान के रूप में जानते हैं, वास्तव में वे पूर्ण ज्ञान से युक्त हैं-  सर्व-वित् हैं  ।
हे अर्जुन! वे पूर्ण रूप से मेरी भक्ति में तल्लीन रहते हैं।  

श्रीकृष्णार्पणमस्तु!!
Submit
Clear form
Never submit passwords through Google Forms.
This content is neither created nor endorsed by Google. - Terms of Service - Privacy Policy

Does this form look suspicious? Report