वैकुंठ एकादशी और नवधा भक्ति
सभी को वैकुंठ एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏💐
सभी एकादशियों में से वैकुंठ एकादशी सबसे महत्वपूर्ण एकादशी है।ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपने वैकुंठ के आंतरिक गर्भगृह का द्वार खोलते हैं और पूरी भक्ति के साथ व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
एकादशी हमें आध्यात्मिक रूप से जागृत करती है और हमें भगवान के करीब लाती है। हम अपने आप ही भगवान की भक्ति में लीन हो जाते हैं। भगवान ने गीता में कहा है कि भक्ति योग सभी योगों में सर्वश्रेष्ठ है। भक्ति के नौ रूप हैं जिन्हें नवधा भक्ति कहा जाता है।
इस शुभ वैकुंठ एकादशी पर हम नवधा भक्ति के बारे में जानेंगे।
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ (श्रीमद् भगवतम् 7.5.23)
इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं।
1.श्रवण: ईश्वर की लीला, कथा को श्रद्धा सहित निरंतर सुनना।
उदाहरण- परीक्षित
2.कीर्तन: ईश्वर के गुण, चरित्र, नाम, का कीर्तन करना।
उदाहरण - शुकदेव, नारद ऋषि, मीराबाई
3.स्मरण: निरंतर अनन्य भाव से परमेश्वर का स्मरण करना
उदाहरण- प्रह्लाद
4.पाद सेवन: ईश्वर के चरणों का आश्रय लेना।
उदाहरण - महालक्ष्मी
5. अर्चन: शुद्ध मन और पवित्र सामग्री से ईश्वर का पूजन करना।
उदाहरण पृथुराजा
6. वंदन: भगवान की मूर्ति को अथवा भगवान के भक्तजन, गुरूजन, माता-पिता आदि का वंदन और सेवा करना।
उदाहरण- अक्रूर
7. दास्य: ईश्वर को स्वामी और अपने को दास समझकर परम श्रद्धा के साथ सेवा करना।
उदाहरण- हनुमान
8. सख्य: ईश्वर को ही अपना परम मित्र समझकर अपने को समर्पित करना उदाहरण - अर्जुन, सुदामा
9.आत्मनिवेदन: अपने आपको भगवान के चरणों में सदा के लिए समर्पण कर देना
उदाहरण - अम्बरीश महाराज