भगवद् गीता अध्याय 1
अर्जुनविषाद योग
अर्जुन का रथ, अर्जुन का पहला श्लोक और अर्जुन की दुविधा
महान योद्धाओं द्वारा शंखनाद के बाद, संजय ने कहा कि अर्जुन अपने कपिध्वज रथ में अपने धनुष के साथ युद्ध के लिये तैयार कर रहा था । यहाँ “कपिध्वज” का अर्थ है बंदर -ध्वज वाला रथ, जिस पर भगवान हनुमान मौजूद हैं , क्योंकि उन्होंने अर्जुन को वचन दिया था कि वे उसे सुरक्षा और शक्ति देंगे।
अर्जुन का रथ - खांडवन वन को जलाने के लिए अग्निदेव के अनुरोध पर वरुण देव ने अर्जुन को यह भव्य रथ ,गांडीव धनुष और अक्षय बाणों का तरकश दिया था। अर्जुन के घोड़े श्वेत यानि सफ़ेद रंग के थे ।
अर्जुन का पहला श्लोक - जिस तरह दुर्योधन ने गुरु द्रोणाचार्य से बात की और पांडवों की सेना की जाँच की, उसी तरह अर्जुन ने श्री कृष्ण से बात की।
अब गीता में पहली बार अर्जुन बोलते हैं और “हे अच्युत” कहकर आरंभ करते हैं ( श्लोक १.२१)। उन्होंने कृष्ण से कहा "हे अच्युत, कृपया रथ को दोनों सेनाओं के बीच में रखें ताकि मैं वास्तव में उन योद्धाओं को देख सकूँ जिनसे मैं लड़ने जा रहा हूँ।" यहाँ अर्जुन कृष्ण को “अच्युत” कहकर संबोधित करते हैं। अर्जुन “अच्युत” कहने का तात्पर्य ये है कि यद्यपि आप मेरे सारथी हैं, आप अचूक हैं और अच्युत हैं।
संजय अब धृतराष्ट्र को बताते हैं कि हृषिकेश (कृष्ण) ने गुडाकेश (अर्जुन) के कहने के अनुसार भीष्म, द्रोण और कौरवों के आगे रथ रखा। संजय हृषिकेश और गुडाकेश नामों का उपयोग करके पांडवों की ताकत का संकेत देते हैं।
हृषिकेश- श्री कृष्ण, इंद्रियों के स्वामी (हृषिकेश)
गुडाकेश- अर्जुन ,नींद पर विजय पाने वाला
अर्जुन की दुविधा
अर्जुन तो अपना धनुष - बाण तैयार रखकर युद्ध करने के लिए तैयार था। लेकिन जब उसका रथ कौरव सेना के पास गया तब उस युद्ध भूमि के दृश्य को देखा, तो वह घबरा गया और उसका धनुष फिसलने लगा। उसने श्रीकृष्ण से कहा कि “मेरा शरीर के अंग कांप रहे हैं, मेरा मन उलझन में है और उलझन में घूम रहा है; मैं अब खुद को और स्थिर नहीं रख पा रहा हूँ। हे केशव, केशी राक्षस के संहारक, मैं केवल दुर्भाग्य के ही संकेत देख रहा हूँ। इस युद्ध में अपने ही सगे-संबंधियों को मारने से कोई अच्छाई कैसे हो सकती है।”
आख़िर अर्जुन ने ऐसे युद्धभूमि में कौन- कौन को देखा जिसके कारण वह युद्ध नहीं करना चाहता था। इसके बारे में जानने के किए प्रश्नोत्तरी के अंत में
“आज का श्लोक” देखिए।