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भगवद् गीता प्रश्नोत्तरी-83
🌺🌼🌸जय श्री कृष्ण !! 🌺🌼🌸
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भगवान श्री कृष्ण भागवद् गीता के पाँचवे अध्याय में कहते हैं -
“
कर्म संन्यास का अर्थ है सभी बाहरी इच्छाओं और वासनाओं को दूर रखना, स्थिर बुद्धि रखना, काम और क्रोध का शमन करना, सर्वत्र समभाव रखना और सभी कार्यों को भगवान को अर्पित करना और आसक्ति से मुक्त होना। “
ऐसा करने से हमारा मन शुद्ध हो जाता है और हम भक्ति में लीन हो जाते हैं ।
भगवान के इस अद्भुत संदेश को हम सब अवश्य पालन करने की कोशिश करेंगे !!
💐
नये साल की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐
🙏🙏भगवान श्रीकृष्ण की कृपा और आशीर्वाद सदैव आप सभी पर बना रहे।
🙏🙏
आपका नाम
*
Your answer
1. ये कौन सा श्लोक है -“तुम्हें अपने निश्चित कर्मों का पालन करने का अधिकार है लेकिन तुम अपने कर्मों का फल प्राप्त करने के अधिकारी नहीं हो, तुम स्वयं को अपने कर्मों के फलों का कारण मत मानो और न ही अकर्मा रहने में आसक्ति रखो।”
2 points
यत्र योगश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीविजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
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2. ये कौन सा श्लोक है-“किन्तु जो लोग सदैव मेरे बारे में सोचते हैं और मेरी अनन्य भक्ति में लीन रहते हैं एवं जिनका मन सदैव मुझमें तल्लीन रहता है, उनकी जो आवश्यकताएँ होती हैं उन्हें मैं पूरा करता हूँ और जो कुछ उनके स्वामित्व में होता है, उसकी रक्षा करता हूँ।”
2 points
यत्र योगश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीविजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥
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3. ये कौन सा श्लोक है -“जहाँ योग के स्वामी श्रीकृष्ण और श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन हैं वहाँ निश्चित रूप से अनन्त ऐश्वर्य, विजय, समृद्धि और नीति होती है, ऐसा मेरा निश्चित मत है।
2 points
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥
यत्र योगश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीविजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
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4. ये कौन सा श्लोक है - “किसी भी शस्त्र द्वारा आत्मा के टुकड़े नहीं किए जा सकते, न ही अग्नि आत्मा को जला सकती है, न ही जल द्वारा उसे गीला किया जा सकता है और न ही वायु इसे सुखा सकती है।”
2 points
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।
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5. ये कौन सा श्लोक है -“जब जब धरती पर धर्म का पतन और अधर्म में वृद्धि होती है तब उस समय मैं पृथ्वी पर अवतार लेता हूँ।”
2 points
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
यत्र योगश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीविजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम
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