कामरेड माओ-.जे-तुंग की धरती से शुभ संकेत
सुर्ख-रेखा प्रकाशन
(दिसम्बर, २०११)
इस अंक में
-कामरेड माओ की धरती से शुभ संकेत
-माओ के समय का चीन- विश्व बैंक की नज़रों में
-मानवीय स्वास्थ्य और माओ का चीनः
करिश्मा, एक मज़दूर की जि़ंदगी के लिए!
-पूंजीवादी चीन में गैर-बराबरी शिखर पर
७० प्रतिशत दौलत ०.५ प्रतिशत परिवारों के पास
-मज़दूरों ने स्टील फैक्ट्री का निजीकरण रोका
चीनी पूंजीवाद के खिलाफ अंगडाई ले रही राजनैतिक चेतना
बरसी परः
कामरेड माओ की धरती से शुभ संकेत
९ सितंबर १९७६ को कामरेड माओ-जे-तुंग का देहांत हुआ। कामरेड माओ के नेतृत्व में चीन की जनता ने महान क्रांति की और नए समाजवादी चीन का निर्माण किया। कामरेड माओ के देहांत के कुछ समय बाद ही चीन में प्रतिक्रांतिकारियों ने मजदूर वर्ग से सत्ता छीन ली। कम्यूनिस्ट नकाब के भीतर छुपे हुए पूंजीवादी वर्ग के प्रतिनिधियों ने सत्ता सम्भाल ली। यह ऐसी घटना थी जिसके खतरे के बारे में कामरेड माओ-जे-तुंग ने बार बार चेतावनी दी थी। इस खतरे का मुकाबला करने के लिए ही उन्होने महान सांस्कृतिक क्रांति को छेड़ा था। माओ-जे-तुंग ने यह भी कहा था कि अगर पूंजीपति वर्ग क्रांति विरोधी सत्ता स्थापित करने में कामयाब हो भी गए और उन्होने पूंजीवाद को बहाल कर भी दिया तब भी उन्हें चैन नसीब नहीं होगा। उन्हें मजदूर वर्ग के विरोध का सामना करना ही पड़ेगा।
चीन की जनता आज पूंजीवादी लूट और उत्पीड़ा का दर्द झेल रही है, जिस में पिछले साढ़े तीन दशकों में लगातार तेजी आई है। पर इस पूंजीवादी लूट और उतपीड़न ने चीनी जनता में रोष और आक्रोष को जन्म दिया है। पहले इस के छिटपुट समाचार किसी तरह बाहर आ जाया करते थे, पर अब इसे चीन में तीव्र हो रहे वर्ग संघर्ष की असलियत के तौर पर कबूल कर लिया गया है।
चीन के साक्षी प्रांत के डायूयान शहर में माओ-जे-तुंग की बरसी मना रहे लोगों पर पुलिस लाठीचार्ज हुआ और गिरफ्तारियां हुईं। यह लोग लाल तराना गा रहे थे और माओ-जे-तुंग की कविताएं पढ़ रहे थे। यह सख्त कार्यवाई इस रिपोर्ट के बाद हुई कि कुछ लोग माओ की नीतियों को पुनः जीवित करने का प्रयत्न कर रहे हैं। समाचार एजंसी पी.टी.आई. ने कहा कि चीन के जन गणराज्य का संस्थापक 'माओ-जे-तुंग' अपनी ३५ साल पहले हुई मौत के बाद भी एक पहेली बना हुआ है।
उपरोक्त समाचार ''तूफानों के शाह-सवार'' की धरती से आई ऐसी पहली खबर नहीं है। माओ-जे-तुंग के प्रभाव को लोगों के मनों से मिटा देने की कोशिशें बुरी तरह से असफल साबित होती आ रही हैं। जैसे-जैसे चीन के पूंजीवाद की सच्चाई से पर्दा उठ रहा है लोगों को माओ के समय का समाजवादी चीन याद आ रहा है। सांस्कृतिक क्रांति के समय हुईं महान प्राप्तियां याद आ रही है।
लोग प्रशासन द्वारा लगाई बंदिशों के रहते हुए भी माओ-जे-तुंग को श्रद्धांजली देने के लिए भारी उत्साह दिखाते हैं। ९ सितंबर २०१० को माओ-जे-तुंग की बरसी पर सैंकड़ों शहर के मजदूर और ८० विश्वविद्यालय एंव कालेजों के छात्र सरकार की लगाई बंदिशों एवं मुश्किलों के बावजूद माओ-जे-तुंग को याद करने के लिए सभाओं में शमिल हुए। २६ दिसंबर २०१० को माओ-जे-तुंग के जन्म दिन पर भी फिर यही दोहराया गया। सन्२०११ का सूर्य तो जैसे माओ-जे-तुंग को सलाम करने के लिए ही चढ़ा हो। नए साल के जश्न माओ-जे-तुंग की याद के जशन में बदल गए। नए साल के पहले दिन ७ लाख लोग माओ-जे-तुंग के जन्म-स्थल को प्रणाम करने के लिए हूनान राज्य में उसके गांव शाओशान जा पहुँचे।
माओ-जे-तुंग के लिए आदर की यह भावना चीनी मजदूर वर्ग में फिर से अँगड़ाई ले रही राजनैतिक चेतना के माहौल में प्रकट हो कर रही है। हड़तालें तो चीन में पहले भी हो रही थीं पर इस समय इनमें राजनैतिक चेतना की झलकें मिल रही हैं। निजीकरण को रोकने के लिए तौंग-हूआ स्टील फैक्ट्री के मजदूरों की हडताल के बारे में एक रिपोर्ट इसी अंक में छापी गई है।
चीन के मजदूर वर्ग में चल रही ऐसी चर्चा उत्साहित करने वाली है कि असल समस्या की जड़ समाजवाद के ऊपर पूँजीवाद की हुई अस्थाई जीत है। हड़ताली मजदूरों का यह कहना महत्वपूर्ण है कि असल मामला मजदूरों की एक या दूसरी समस्या का नहीं है असल मामला तो ''निजीकरण की राजनैतिक लाईन'' का है। चीन के मजदूर वर्ग में अब आंशिक मांगों से आगे मजदूर वर्ग के बुनियादी हितों की चर्चा के समाचार आ रहे हैं। इन मजदूरों से मुलाकातों के दौरान अब ऐसी टिप्पणियां सुनने को मिल रही हैं कि मजदूरों के बुनियादी हित तो उत्पादन के साधनों के जनतक स्वामित्व की बहाली की मांग करते हैं।
अंगडाई ले रही इस राजनैतिक चेतना के संकेत कब और कैसे समाजवाद के लिए योजनाबद्ध क्रांतिकारी लहर में तबदील होंगे, इसके बारे में तुरन्त कुछ नहीं कहा जा सकता। यह बहुत सारे पहलुओं के जोड़मेल पर निर्भर करेगा। पर यह स्पष्ट है कि चीनी पूंजीवाद की समाजवाद पर विजय अस्थाई है। यह बात अंत में साबित हो कर रहेगी।
रात के इस पहर
चमगादड़ खूब चिरचिराएंगे
कल को जगह जगह धधकते ज्वालामुखी
उस चश्मा-ए-नूर का
अमर नग़मा गाएंगे
विश्व मजदूर वर्ग के उस महान रेहबर की बरसी पर हम अगले पृष्टों पर सांस्कृतिक क्रांति के समय चीन में हुए करिश्मों के बारे में और आज के पूंजीवादी चीन के बारे में कुछ लेख दिये जा रहे हैं।
-सम्पादक
माओ के समय का चीन- विश्व बैंक की नजरों में
विश्व बैंक द्वारा १९८० में जारी की गई रिर्पोट, चीन के करिश्मयी आत्मनिर्भर समाजवादी निर्माण की पुष्टि करती है, इस निर्माण की बेहतर गवाह है। यह सांस्कृतिक क्रांति के समय की प्राप्तियों का प्रमाण देती है। आज के पूंजीवादी चीनी शासक और अमरीकी साम्राज्यवादी सांस्कृतिक क्रांति के समय को आर्थिक गिरावट के समय के तौर पर पेश करते हैं। पर विश्व बैंक की अपनी रिपोर्ट ही इस इल्जाम को खंडित करती है। यह रिपोर्ट साम्राज्यवादी पूंजी-निवेश के लिए चीन के महत्व को आंकने के मकसद से तैयार की गई थी। यह १९७९ तक के समय का जिक्र करती है। १९७६ में चीन में प्रतिक्रांतिकारी सत्ता परिवर्तन हो गया था। नए संशोधनवादी शासक गुट ने पूंजीवाद की पुः स्थापना के लिए सैद्धांतिक आधार तैयार कर लिया था। फिर भी पूंजीवादी आर्थिक नीतियों ने अभी अमल में आना था। इसलिए १९७९ तक के चीन के बारे में विश्वबैंक रिपोर्ट की टिप्पणी को माओ के नेतृत्व वाले चीन के बारे में टिप्पणी समझा जा सकता है। इस असली समाजवादी चीन के बारे में रिपोर्ट में कहा गया हैः
'समूचे उत्पादन के हिसाब से चीन दुनियां के प्रमुख औद्योगिक देशों की कतार में शामिल है।'' चीन में जन-गणराज्य के पहले दशक दौरान, वृद्धि की दर बेहद तेज है, शायद जापान, सोवियत यूनियन और जर्मनी के विकास के ऐसे समय की तुलना में उनको मात देने वाली है। चीन दुनिया के उन मुट्ठी भर देशों में से एक है, जिसने २० साल से भी ज्यादा समय तक औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि की वार्षिक दर १० प्रतिशत से भी ऊपर बना रखी है। (विश्व बैंक के अनुसार १९५२ से १९७९ के बीच यह वृद्धि दर ११.१ प्रतिशत सालाना थी) भारत और कम आमदनी वाले देशों के ग्रुप ने ५ प्रतिशत सालाना वृद्धि की दर हासिल की। चीन का प्रति व्यक्ति औद्योगिक उत्पादन कम आमदनी वाले और देशों के औसत प्रति व्यक्ति उत्पादन से ३ गुना ज्यादा है। चीन में प्रति व्यक्ति व्यापारिक ऊर्जा खपत और कम आमदनी वाले देशों के मुकाबले लगभग ४ गुना ज्यादा है। बैंक के अनुसार चीन में कुल पूंजी निवेश जो कि सम्भवतः विकास का एक बहुत ही अहम सूचक है, १९३३ में कुल घरेलू उत्पादन के १.८ फीसदी से बढ़ कर १९५५ में २०.२ प्रतिशत हो गया।
उद्योगिकरण की रफ्तार बहुत ही तेज रही जिसका सब से बड़ा कारण पूंजी निवेश का असाधारण तौर पर ऊंचा होना है और यह सारी की सारी पूंजी घरेलू बचतों द्वारा जुटाई गई है।'' १९७४ तक चीन में ५ लाख औद्योगिक इकाईयां हो गई थी।
१९५० से ५६ के दौरान सोवियत यूनियन द्वारा चीन को सस्ती दरों पर कर्जे, तकनीकी जानकारी उपलब्ध करवाने और चीनी तकनीकी कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के रूप में समाजवादी सहायता प्रदान की गई जो चीन के लिए बेहद लाभकारी साबित हुई। सोवियत आर्थिक सहायता, राज्य की तरफ से लगाई पूंजी कुल पूंजी का सिर्फ ३.१ प्रतिशत हिस्सा थी। इसके मुकाबले जंग के बाद के वर्षों में भारत को मिली विदेशी सहायता राज्य के पूंजी निवेश बजट का एक-चैथाई से एक तिहाई हिस्सा बनती रही है।
खरुश्चोव द्वारा सोवियत आर्थिक सहायता बंद कर देने के बाद समाजवादी चीन को आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। पर आत्मनिर्भर विकास की डगर पर चलते हुए इन मुश्किलों को कदम-ब-कदम पछाड़ दिया गया। इस उन्नति की चर्चा करते हुए विश्व बैंक की रिपोर्ट आगे कहती हैः
जन गणराज्य के निर्माण के पूरे अरसे दौरान नई तकनीकी समर्थताएँ हासिल करने के लिए बेहद कोशिशें जुटाई गईं। लगभग सभी क्षेत्रों में आधुनिक उद्योग स्थापित कर लिए गए। मशीने तैयार करने वाले उद्योगो पर विशेष ध्यान दिया गया। पिछले दो दशकों के दौरान चीन ने अपने लिए नए साजो-सामान का बड़ा हिस्सा खुद तैयार किया है। वास्तव में हर महत्वपूर्ण उद्योगों में देश के हर कोने में बड़े बड़े उद्योग लगाए गए। छोटे उद्योग भी निर्मित किए गए। कारोबार और उद्योगों की शाखाओं को अपनी मशीने खुद निर्मत करने के लिए प्रोत्साहन देकर और स्थानक ईकाईयों से अपने कारखानों का स्वयं निर्माण करने की मांग करके व्यापक मशीनसाज औद्योगिक क्षमता खड़ी कर ली गई है। वस्तु निर्माण उद्योग को पिछड़े क्षेत्रों और ग्रामीण इलाकों में फैलाने के लिए विशेष प्रयत्न जुटाए गए। इस समय औद्योगिक खोज संस्थाएं और ज्यादा उन्नत उद्योग लगातार नई वस्तुओं के निर्माण और नई तकनीकों में निपुणता हासिल करने के प्रयासों में लगे रहते हैं। परिणाम स्वरुप इंजिनियरिंग तजुर्बे की बुनियाद और तकनीक की क्षमताओं की विशालता देखने को मिलती है, जो किसी भी विकासशील देश के लिए असाधारण बात है।
भारतीय शासक कहते हैं कि विदेशी पूंजी के बिना उद्योग स्थापित नहीं हो सकते। पर विदेशी साम्राज्यवादी पूंजी और लूट से मुक्ति चीन का उद्योगिकरण कृषि में उन्नति का बड़ा जरिया बना। भारत में कृषि के लिए जरूरी चीजों की महंगाई किसानों को कंगाल कर रही है। पर चीन के आत्मनिर्भर उद्योगीकरण के फलस्वरूप कृषि के लिए सस्ती औद्योगिक चीजे उपलब्ध करने में हैरानी जनक प्राप्तियां की गईं। १९५९ में गेहूं की जितनी कीमत में एक ट्रैक्टर खरीदा जा सकता था, १९७९ में उस से आधी कीमत के गेहूं से एक ट्रैक्टर खरीदा जा सकता था। १९५० में जितने गेहूं के बदले में १ क्विंटल खाद खरीदी जा सकती थी, वही खाद १९७९ में उस गेहूं के एक तिहाई में खरीदी जा सकती थी। १९६० में एक क्विंटल गेहूं में जितने कीटनाशक खरीदे जा सकते थे, १९७९ में उसी १ क्विंटल गेहूं से ७ गुना कीटनाशक खरीदे जा सकते हैं। चीनी मजदूर वर्ग की गनती मुक्ति से पहले १५ लाख से बढ़कर १९७९ में ६३० लाख हो गई। दरमयाने और बड़े आकार के उद्योगों के साथ साथ लघु उद्योगों के निर्माण की चीन की ''दोनों टांगों के ऊपर चलने की नीति'' की चर्चा करते हुए रिपोर्ट कहती हैः
''छोटे उद्योगों, जो विदेशी सहायता के बिना तेजी से निर्मित हो सकते हैं, पर आधारित ये पहुँच चीन के लिए ऊँचे दर्जे की आत्मनिर्भरता हासिल करने में सहायक बनी।''
चीनी लोगों का जीवन स्तर ऊँचा उठाने में समाजवादी चीन की प्राप्तियों के बारे में विश्व बैंक की रिपोर्ट कहती है, ''कम आमदनी वाले ग्रुपों के मामले में बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के हिसाब से और गरीब देशों के मुकाबले चीन की कहीं ज्यादा बेहतर स्थिती पिछले तीन दशकों में चीन की सब से शानदार प्राप्ति है। सब के पास रोजगार है। सांझे स्वयं बीमे और सरकारी राशन प्रणाली के मेलजोल द्वारा अनाज प्राप्ति यकीनी बना ली गई है। उनके बच्चों की बड़ी गिनती न सिर्फ स्कूल जा रही है बल्कि तुलनात्मक अच्छी शिक्षा ग्रहण कर रही है। जनसमुदाय की विशाल गिनती तक मूलभूत स्वास्थ्य सेवाएं एवं परिवार नियोजन की प्राप्ति सुविधाएं उपलब्ध हैं। औसत उम्र जो कि और अनेकों आर्थिक और सामाजिक अंशों पर निर्भर होने की वजह से किसी भी देश में शायद सबसे बड़ी गरीबी की सूचक है- ६४ साल है और यह चीन जैसे प्रति व्यक्ति आमदनी वाले किसी भी देश के लिए बड़ी बात है।''
मानवीय स्वास्थ्य और माओ का चीनः
करिश्मा, एक मजदूर की जिंदगी के लिए!
माओ के समय में समाजवादी चीन ने अनेकों और क्षेत्रों के साथ साथ स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी भारी प्राप्तियां कीं। चेयरमैन माओ की शिक्षा, ''लोगों की सेवा करो'' का अनुसरण करते हुए चीनी डाक्टरों ने ऐसी पहाड़ी चोटियां सर कीं जिनके बारे में पूंजीवादी विकसित देशों के स्वास्थय क्षेत्र के विशेषज्ञों ने सपना भी नहीं लिया होगा। प्रस्तुत लेखन में चीनी डाक्टरों के ऐसे ही एक करिश्में का संक्षिप्त वर्णन किया गया है, जिस के द्वारा चीनी मैडीकल विशेषज्ञों ने विज्ञान की चोटियों पर जीत के झंडे गाड़ दिए। प्रस्तुत लेखन एक ब्रिटेन के डाक्टर जोशूआ ए. हौरन, जिसने १९५४ से १९६९ तक चीन के दिहाती इलाकों में डाक्टरी सेवाओं के क्षेत्र में काम किया की पुस्तक ''आफतों को अलविदा'' (अबे विद ऑल पैस्टस) के एक पाठ पर आधारित है।
१९५० में मई का आखिरी दिन था। शंघाई के एक इस्पात मजदूर चीऊ साई कांग पर पिघले हुए इस्पात (स्टील) का कुछ हिस्सा छलक गया। उसके कपड़ों ने आग पकड़ ली और वह ८९ प्रतिशत जल गया।
उसे उसी वक्त शंघाई के कवांगसू अस्पताल पहुंचाया गया। यहां एक चमत्कार की नींव रखी जाने लगी। इस चमत्कार की धूम आज भी चीन ही नहीं बल्कि चीन की सरहदों से परे भी गूंजती है।
ब्रिटेन और अमरीका द्वारा जारी किए गए मैडीकल विज्ञान के ज्ञान के हिसाब से उसकी जान बचा पाने की सम्भावना न के बराबर थी। चीनी डाक्टरों के आगे सवाल था कि क्या जन गणराज्य चीन अपने सब तकनीकी पिछड़ेपन के बावजूद, एक जले हुए मजदूर को ऐसा बेहतर ईलाज देने के प्रयत्न करे जो पश्चिम के देशों में अपने शासकों और करोड़पतिओं को दिए जाते ईलाज से बढ़कर हो। इस हद तक जला शरीर अपने आप में ही एक चुनौती थी। परन्तु कुल मिला के हालात की यह मांग थी कि चुनौती को कबूल किया जाए।
शरीर के जले हुए हिस्से पर से लगातार पानी का तेज बहाव तुरंत भारी मात्रा में खून, खून का पानी (प्लाजमा) और खनिज पानी चढ़ाने की मांग कर रहा था। खबर मिलते ही खूनदानियों की अस्पताल में भीड़ इक्ट्ठा होने लगी। पहले २३ दिनों में ३० लीटर से ऊपर खून (एक व्यक्ति के शरीर के अंदर खून की मात्रा ६ लिटर) और खून का पानी (प्लाज़मा) चढ़ाया गया। २४-२४ घंटों की महीना भर लंबी और सख्त मेहनत से खून और पानी की कमी वाले मोर्चे पर बैठे मौत के दानव को हरा दिया गया था।
अब एक और दानव से माथा लगाने की तुरंत जरूरत थी। जले हुए शरीर के नंगे जख्मों पर कीटाणुओं (बैक्टीरीया) के भयानक हमले का खतरा मंडराने लगा। इस हमले से पैदा होने वाली जहर और मवाद खून में मिलकर मौत का कारण बन सकते थे। इस मोर्चे पर लडाई और भी जटिल थी।
२४ घंटों में सिर्फ इस मरीज के लिए ही वातानुकूल (एअर कंडीशनड) कमरों का एक सैट तैयार किया गया। एक विशेष तापमान पर साफ (फिल्टर) की गई नमी वाली हवा के जोरदार फव्वारे चलाने और स्पैशल रौशनदानों द्वारा अंदर की हवा को बाहर निकालने के विशेष प्रबंध किए गए। अस्पताल के इस कक्ष में आने वाले हर कर्मचारी के लिए कीटाणू रहित होना लाजमी था। विशेष स्नान के बाद हर एक को कीटाणू रहित कपडे पहनने को दिए जाते। ताकि सिर के बालों से कोई कीटाणू अंदर प्रवेश न कर सकें, इसके लिए नर्सों ने अपने सिर के बाल कटवा दिए।
पार्टी कमेटी ने निकट और लंबे समय की तजबीज बनाने के लिए कई बारी अस्पताल में बैठकों का आयोजन किया जिनमें डॉक्टर, नर्सें और अस्पताल के साधारण कर्मचारी जैसे रसोईए, सफाई सेवक, मुरम्मत करने वाले और बॉयलर में काम करने वाले शामिल हुए। ४ डॉक्टर, ८ नर्सें, प्रयोगशाला के कर्मचारी, सहायकों एवं बावरचिओं की टीम २४ घंटे मरीज की देखभाल के लिए तैयार रहने लगीं। पूरे चीन से मैडीकल विज्ञान के कम से कम आधी दर्जन अलग अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों को तुरंत हवाई सफर से शंघाई पहुंचने के लिए कहा गया।
एक समय जब मरीज को पौष्टिक आहार की जरूरत थी तो उसकी भूख मर गई। एक बड़े जख़्म से अब भी पानी का बहाव जारी था और उसका वजन भी कम हो रहा था। अस्पताल में उपस्थित आहार वैज्ञानिकों ने उसके लिए अलग अलग प्रकार के बेहतरीन और स्वादिष्ट भोजन बनवाए पर सब व्यर्थ।
जब यह समचार फैल गया तो शंघाई के सबसे मशहूर होटलों के मुख्य बावरचियों ने गम्भीर सोच विचार किया। उन्होंने हर एक खाने के लिए अलग अलग मीनू तैयार किए और स्वादिष्ट व्यंजन भेजे। चीऊ की देख रेख कर रहे साथियों ने चीऊ को एक ऐसे संघर्ष के लिए प्रेरित किया जो उसकी जिंदगी के लिए जरूरी था, जिसमें बाकी सब लोग बड़ी दृढ़ता से लगे हुए थे। उस संघर्ष में अपना हिस्सा डालने के लिए और इसे एक राजनैतिक फर्ज समझते हुए उसे खाने के लिए प्रेरित किया। चीऊ ने अपनी पूरी क्षमता से जोर लगाया।
जल कर बेजान हुई चमड़ी अब उतर गई थी। पीछे ताजे ह्णख्मों का एक लंबा चौड़ा क्षेत्र रह गया। जो जख्म गहरे थे वे चीऊ की हडिडयों और जोड़ों को नंगा कर रहे थे। उन जख्मों को राजी करने का तरीका यह था कि शरीर के बाकी अनजले हिस्से से चमड़ी लेकर उसका प्रत्यारोपण जख्म वाले हिस्से पर किया जा सकता था। इसे चमड़ी की ग्राफटिंग करना कहा जाता है। क्योंकि अनजले हिस्से बहुत कम थे, इसलिए यह अमल लंबा चलना था। पर अगर इसके लिए लंबा समय लगाया जाता नंगे जख्मों पर कीटाणुओं के हमले की बहुत ज्यादा सम्भावना थी। कीटाणु जख़्मों से होकर खून संक्रमण करके मौत का सामान बन सकते थे। जख्म राजी होने की रफ्तार जितनी तेज हो सके जिदंगी को बचाने के मौके उतने ही बढ़ सकते थे। खतरे से निपटने और जख्म ठीक होने की तीव्रता को बढ़ाने के लिए और व्यक्तियों से चमडी लेकर चीऊ के शरीर पर प्रत्यारोपण करने का फैसला हुआ। इससे जख्म ढक जाना था, जिससे जख्म में कीटाणुओं का हमला रुक जाना था। चाहे मैडीकल विज्ञान की जानकारी के मुताबिक और आदमी की चमड़ी को चीऊ के शरीर ने स्वीकार नहीं करना था, दो चार हफ्तों में इसने उतर जाना था, पर इस समय में चीऊ के शरीर पर अनजले हिस्से के राजी होकर चमडी की नई सतह देने के लिए तैयार होने तक, बाहर की चमडी ने चीऊ के जख़्मों में संक्रमण को रोक कर रखना था। यह समाचार सुनते ही हजारों वलंटीयर अपनी चमडी दान करने के लिए अस्पताल पहुंचने शुरू हुए। चमडी दान करने के लिए इजाजत मांगती चिटिठयों और टैलीफोनों की झड़ी लग गई। अस्पताल के एक सीनीयर सरजन वलंटियरों में सब से पहले व्यक्ति थे।
खून के अलग अलग टैस्ट जैसे खणिज लवणों की जानकारी, ताजे जख्मों में कीटाणुओं की मौजूदगी और बाकी सब टैस्ट रोजाना के काम का जरूरी हिस्सा बन गए। पूरे ईलाज के दौरान टैस्टों की गिनती हजारों तक जा पहुंची। पूरे देश के लोग चीऊ के स्वास्थ्य की जानकारी के लिए सांसें रोक कर बैठे थे। समाचार बुलेटिन लगातार चालू रखे जा रहे थे। इस केस से सम्बंधित जानकारी देने के लिए अस्पताल में ही एक दफ्तर खोला गया।
आखिर में सब जख़्म राजी हो गए और चीऊ की जिंदगी बच गई। यह एक महान जीत थी। इस से हर किसी का चेहरा खिल उठा और जले हुए शरीर के जख्मों के ईलाज के लिए नया जोश भी भर दिया।
सैंकड़ों डाक्टर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से चीऊ साई गांग के ईलाज में शामिल थे। अपने अपने घर जाकर उन्होंने बताया कि पूरे देश में जले हुए शरीर के गंभीर जख्में के ईलाज के प्रबंध हो चुके हैं।
पूंजीवादी चीन में गैर-बराबरी शिखर पर
७० प्रतिशत दौलत ०.५ प्रतिशत परिवारों के पास
-स्टाफ रिपोर्टर
१९७६ में चेयरमैन माओ के निधन के पशचातप्रतिक्रांतिकारी सत्ता परिवर्तन के बाद क्रांतिकारी राजनीति को सब से ऊपर रखने की माओ की शिक्षा को त्याग दिया गया और चीन को पूंजीवादी विकास के मार्ग पर चढ़ा दिया गया।
पूंजीवादी विकास मार्ग का आगाज गावों में जन-साधारण के कम्यून (पीप्लज कम्यून) की तबाही से शुरू हुआ। सांझे फार्म भंग कर के कृषि का निजीकरण कर दिया गया। जमीन छोटे छोटे टुकडों में बांटी गई। किसानों को छलावे में रखा गया कि निजी खेती से किसान जल्दी अमीर होने का सपना पूरा कर सकते हैं। पर इसने बहुत सारे किसानों को मंदी की हालत मे धकेल दिया।
किसानों की मरजी के खिलाफ उनको बताए बगैर उनकी जमीनों पर कब्जे किए जा रहे हैं। मुआवजा भी नहीं दिया जाता या फिर मुआवजे के नाम पर बहुत ही कम दाम दिए जा रहे हैं। फलस्वरूप चीन के किसानों में गुस्से की भावना दिन ब दिन बढ़ रही है। वाशिंगटन पोस्ट समाचार पत्र ने कुछ साल पहले बीजिंग की रैनमैन यूनिवर्सिटी में कृषि अर्थ-शास्त्र और दिहाती विकास स्कूल के निर्देशक ने वेन-ती-जिन की टिप्पणी से हवाला देते हुए लिखा कि, ''दिहाती जमीन इस लिए माटी के मोल बिकती है क्योंकि पूंजीपतियों और सरकार की ताकत में एक धनिष्ठ सम्बन्ध बना हुआ है, जिस कारण जमीन की कीमत के बारे में किसानों की मर्जी की अवहेलना करना आसान बना हुआ है।''
......तथाकथित सुधारों के फलस्वरूप सरकारी आंकडों के मुताबिक १९८० से १९८६ के अरसे दौरान ५ लाख हैक्टेयर जमीन खेती से निकल चुकी है। चाईना डेली समाचार पत्र के मुताबिक दक्षिण चीन में अक्तूबर १९८८ में १ करोड ८० लाख हैक्टेयर जमीन खाली पड़ी थी जिसका लगभग आधा हिस्सा कृषि के लिए उपयोग होता था। खादें, डीजल, बिजली और सिंचाई के लिए पानी वगैरा, जो खेती में उपयोग होने वाली वस्तुएं हैं, बेहद मँहगी कर दी गईं हैं। यह सिलसिला बेरोक टोक जारी है। समाचार पत्रिकाओं के अनुसार ''पुराने माओवादी प्रबंध की तुलना में '' अब कहीं ह्णयादा जमीन मौसम के रहम पर निर्भर है।
अनाज की खेती की जगह व्यापारिक फसलें उगाने को प्रोत्साहन दिया जा रहा है, जिस के फलस्वरूप अनाज की दरामद करनी पड़ रही है, जो १९८९ में ही १ करोड़ ६० लाख सालाना तक पहुँच गई थी। १९९० के दशक में विशाल पैमाने पर निजीकरण किया गया। सरकारी नियंत्रण वाले सभी लघु और मध्य स्तरीय और अनेकों बड़े कारोबारों का निजीकरण कर दिया गया। इस मामले में सरकारी अधिकारियों, पूर्व सरकारी कारोबारों के प्रबंधकों, सरकारी क्षेत्र में रसूख रखने वाले पूंजीपतियों और बहुराष्ट्रीय कार्पोरेशनों ने खूब हाथ रँगे। मिसाल के तौर पर १० बिलीयन युआन की तौंग-हूआ स्टील फैक्ट्री का सौदा २ बिलियन में हुआ। सरकार से मिलीभगत के कारण उसने ८०० मिलियन ही दिए। एक अंदाजे के मुताबिक निजीकरण और मार्कीट उदारीकरण के अमल दौरान सरकारी और सहकारी जायदादों के लगभग ३० ट्रिलियन यूआन सरकार में तगड़ा असर रसूख रखने वाले पूंजीपतियों के हवाले किए गए।
सालों साल चले इस बड़े स्तर के निजीकरण के अमल के बाद औद्योगिक क्षेत्र के उत्पादन में सरकारी हिस्सा ३० प्रतिशत से नीचे आ गिरा। प्राइवेट उद्योगिक क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है। इस समय सरकारी क्षेत्र की तुलना में गैर सरकारी उद्योगिक क्षेत्र में ४ गुना मजदूर शक्ति है। पर इस से भी अहम बात यह है कि सरकारी कारोबार भी गैर सरकारी नक्शे कदम र चलाए जा रहे हैं।
१७वीं पार्टी कांग्रेस (२००२) में पूंजीपतियों के कबजे में आई कम्यूनिस्ट पार्टी पर दस्तावेजी छतरी तान दी गई। क्रांति विरोधी सत्ता स्थापित होने के बाद पूंजीपतियों के वर्ग को जायज करार दे दिया गया। पुराने चार्टर के अनुसार कम्युनिस्ट पार्टी अपने आप को मजदूर वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाला ''हिरावल दस्ता'' मानती थी। नए चार्टर के अनुसार कम्यूनिस्ट पार्टी ने ''विशाल जनसमुदाय'' और बुलंदियां छू रही ''उत्पादन शक्तियों'' का प्रतिनिधित्व करने का फैसला किया है। बुलंदियां छू रही ''उत्पादन शक्तियों'' वाले इस शब्द को पूंजीपतियों के लिए प्रयोग में लाई गई मधुर शब्दावली ही समझा जा रहा है।
माओ के समाजवादी दौर में चीनी मजदूर उद्योगों में अपना स्वामित्व महसूस किया करते थे, जिस पर वे गर्व भी करते थे। पर मौजूदा शासकों ने निजीकरण के बाद उनको 'दिहाड़ीदार मजदूर' बना दिया। प्लांट निर्देशकों को सीधी जिम्मेदारी का प्रबंध तथा ठेकेदारी का प्रबंध बहुत बड़े पैमाने पर लागू होने लगे है।
सार्वजनिक सेवाओं को भंग किया जा रहा है। ग्रामीण सैकेंडरी शिक्षा को काट दिया गया है। अस्पताल भी मरीज़ को दाखिले से पहले बड़ी रकम की मांग करते हैं। नतीजा कई बार मरीज की मौत के रूप में में निकलता है। औरतों के साथ भारी भेद भाव शुरू हो गया है। रोज़ाना काम करने वाली औरतों को मिल रही सुविधाएं वापिस ली जा रही हैं। यह सुविधाएं देने से बचने के लिए विवाहित और बच्चे वाली औरतों को काम से इन्कार किया जा रहा है और औरत को काम से निकालना आम बात हो गई है। सांस्कृतिक क्रांति के समय की नीति को खारिज कर दिया है जो कहती थी कि ''जो एक आदमी कर सकता है, औरत भी कर सकती है।'' माओ के समय का चीन जो कम और स्थिर कीमतों के लिए जाना जाता था अब वहां महंगाई की मार लगातार बढ़ रही है। महंगाई की वजह से चीन का जीवन स्तर लगातार नीचे लुढ़क रहा है और लोगों की बेचैनी का बड़ा कारण बन रहा है। अब चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी ने खुलेआम ऐलान किया है कि कीमतें अब मंडी द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए।
जो चीन विश्व का सब से बड़ा बराबर आर्थिकता वाला देश माना गया था समाजवाद से पूंजीवादी तबदीली के तीन दशकों में विश्व के सब से गैर-बराबरी वाले देश में पलट गया है।
विश्व बैंक के अनुसार २००५ में सब से ज्यादा दौलतमंद १० प्रतिशत परिवार कुल चीनी आमदन के ३१ प्रतिशत के मालिक हैं, जब कि सबसे गरीब १० प्रतिशत कुल आमदन के सिर्फ २ प्रतिशत के मालिक हैं। धन दौलत की ना बराबरी और भी ज्यादा भयानक है। २००६ की ''विश्व दौलत की रिपोर्ट'' बताती है कि सब से ज्यादा दौलतमंद ०.४ प्रतिशत परिवारों का चीन की राष्ट्रीय सम्पति के ७० प्रतिशत पर कब्जा है। साल २००६ में १०० मिलियन यूआन (लगभग डेढ़ करोड़ अमरीकी डालर) से ज्यादा कीमत की निजी सम्पति वाले लगभग ३२०० लोग हैं। इनमें लगभग २९०० (९० प्रतिशत) सीनीयर सरकारी एवं पार्टी अधिकारियों के बाल बच्चे हैं। उनकी कुल जायदाद का अंदाजा २००६ में चीन के घरेलू उत्पादन का करीब करीब २० ट्रिलियन यूआन बनता है। पूंजीपति वर्ग की इस दौलत का बड़ा हिस्सा समाजवादी दौर में जमा हुए सरकारी एवं सहकारी अदारों की लूट से आया है। आम जनता के विशाल हिस्सों में इसे हराम की दौलत समझा जाता है।
चीन का प्रधान मंत्री वैन जिया वाओ विश्व का सब से अमीर प्रधान मंत्री माना जाता है। उसकी पत्नी हीरे जवाहरात उद्योग की इन्चार्ज है। वैन के परिवार ने अंदाजन ३० बिलियन यूआन (लगभग ४.३ बिलीयन अमरीकी डालर) की दौलत इकट्ठी की हुई है। जिओंग जैमिन (पूर्व प्रधान और पार्टी जनरल सैक्टरी) के पास अंदाजन ७ बिलियन यूआन की दौलत है और जूह रौंगजी (पूर्व प्रधान मंत्री) के पास अंदाजन ५ बिलियन यूआन हैं।
भ्रष्टाचार अमर बेल की तरह बढ़ रहा है। एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार २००८ में कथित काली कमाई ५.४ ट्रिलियन यूआन या चीन के घरेलू उत्पादन के १८ प्रतिशत तक जा पहुंची है। रिपोर्ट के लेखकों का विश्वास है कि काली कमाई का बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार एवं सार्वजनिक सम्पति की चोरी से आया है। मुख्य धारा के एक जाने-माने समाज विज्ञानी सुन-लिपिंग की टिप्पणी है कि भ्रष्टाचार काबू से बाहर हो कर बेलगाम हो गया है और चीनी समाज बड़ी तेजी से गरक रहा है।
इस तरह चीनी जनता पूंजीवादी पथ पर चल रहे चीनी शासकों की नीतियों की भारी कीमत दे रही है। पर साम्राज्यवादी लुटेरे लूट का मज़ा ले रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा फंड और विश्व बैंक चीनी शासकों के पूंजीवादी सुधारों से गदगद हो रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा फंड के अध्यक्ष यह कहते हुए फूले नहीं समा रहे कि ''वे चीनी आर्थिक सुधारों के प्रति चीनी नेताओं की वचनबद्धता से बेहद प्रभावित हुए हैं।'' विश्व बैंक के उप-अध्यक्ष ने और भी खुशी जाहिर करते हुए कहा है कि ''हम उनके विश्लेषण के स्तर से प्रसन्न हैं। चीन कोशिशें जारी रख रहा है और माली पक्ष से हमारी मदद का हकदार है।''
साम्राज्यवादी संस्थानों की प्रशंसा और मदद का हकदार बन चुका पूंजीवादी चीनी निजाम चीन और विश्व भर के क्रांतिकारी लोगों की नफरत और फटकार का हकदार भी बन गया है।
मजदूरों ने स्टील फैक्ट्री का निजीकरण रोका
चीनी पूंजीवाद के खिलाफ अंगडाई ले रही राजनैतिक चेतना
जुलाई २००९ में चीन के जि़लीन राज्य में सरकारी मलकियत वाली तौंग-हूआ स्टील फैक्ट्री के मजदूरों में निजीकरण के खिलाफ एक प्रभावशाली विरोध उठा। इसके बाद २०१० की गर्मियों में हड़ताल की एक लहर पूरे तटीय क्षेत्र के राज्यों में फैल गई। यह घटनाएं एक ऐतिहासिक मोड़ का बिन्दू साबित हो सकती हैं। दशकों की लगातार हार, पछाड़ और लंबी चुप के बाद चीनी मजदूर वर्ग एक नई समाजिक और राजनैतिक शक्ति के तौर पर उभर रहा है।
१९४९ की चीनी क्रांति घरेलू बड़े जमींदारों, पूंजीपतियों और विदेशी साम्राज्यवादियों की लूट के खिलाफ चीनी जनता की भारी गिनती की विशाल लामबंदी पर आधारित थी। अपनी सभी ऐतिहासिक सीमितताओं के होते हुए माओ के दौर के चीन को एक समाजवादी देश कहलाने का पूरा अधिकार हासिल था। १९७६ में माओ के निधन के पश्चात्पूंजीपति-मार्गियों ने प्रतिक्रांतिकारी परिवर्तन कर दिया और माओ के रास्ते पर चलने वाले गंभीर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। सत्ता के परिवर्तन के बाद उभर कर आए तिंग-सिआओ पिंग ने कुछ बर्षों में अपनी राजनैतिक ताकत को मजबूत कर लिया और चीन पूंजीवादी मार्ग पर चढ़ा लिया गया।
नकली आर्थिक सुधारों के गावों में से शुरू किया गया। जन-साधारण के कमयूनों को तहस-नहस कर दिया गया और कृषि का निजीकरण कर दिया गया। अगले वर्षों में लाखों करोड़ों मजदूर देसी एवं विदेशी कारोबारों की लूट का शिकार बनने के लिए ''मजबूर'' कर दिए गए।
१९९० के दशक में बड़े पैमाने पर निजीकरण किया गया। असली अर्थों में, सरकारी स्वामित्व वाले सब से छोटे एवं मध्यम वर्ग के और कई बड़े कारोबारों का निजीकरण कर दिया गया। यह सब बहुत ही कम दाम पर बेच दिये गए या लगभग मुफ्त में ही लुटा दिए गए। यह सब लाभ प्राप्त करने वालों में सरकारी अधिकारी, पूर्व सरकारी कारोबारों के प्रबंधक सरकार में असर रसूख रखने वाले निजी क्षेत्र के पूंजीपति और बहुराष्ट्रीय कार्पोरेशने शामिल थीं। इस दौरान सरकारी एवं सहकारी क्षेत्र के लाखों करोड़ों मज़दूर काम से हटा कर कंगाल कर दिए गए। चीन में तेज रफ्तार पूंजी के एकत्रीकरण का आधार लाखों करोड़ों चीनी मज़दूरों की अंधी लूट है।
सन् १९८० के शुरू में १५ करोड़ के लगभग प्रवासी मज़दूर रोजगार की तलाश में गांवों से शहरों को कूच कर गए। चीन का बरामदी उत्पादन मुख्य तौर पर इन मज़दूरों की लूट पर आधारित है। एक जांच पड़ताल की रिपोर्ट के अनुसार दो तिहाई मज़दूर ८ घंटे से ज्यादा काम करते हैं और हफ्ते में कभी कोई छुट्टी भी नहीं करते। बहुत सारों को लगातार १६-१६ घंटे काम करना पड़ता है। पूंजीपति प्रबन्धकों द्वारा मजदूरों को काबू करने के लिए शरीरिक दण्ड देना हर रोज़ का काम है। २० करोड़ के लगभग मज़दूर खतरे भरी हालतों में काम करते हैं। चीन में हर साल ७ लाख के करीब मज़दूर काम के दौरान गंभीर किस्म की चोटों का शिकार हो जाते हैं। जिस के कारण औस्त १ लाख जानें चली जातीं हैं।
माओ के दौर में चीनी मज़दूर एक वर्ग-शक्ति थे और कारखानों के अन्दर मान सम्मान का जीवन ब्यतीत करते थे। फिर भी चीनी मज़दूर वर्ग अभी किशोर अवस्था में थी और गैर-तजुरबेकार था। माओ की मौत के बाद चीनी मज़दूर वर्ग नेतृत्व से वंचित हो गया और १९९० में निजीकरण की आंधी के आगे विनाशक हार खा बैठा।
साबका सरकारी क्षेत्र के बहुत सारे मज़दूरों (जो चीन में पुराने मज़दूरों के तौर पर जाने जाते हैं) ने तब से ही निजीकरण और अन्धाधुन्द कटौतियों के खिलाफ समूहिक संघर्ष का बीड़ा उठाया है। उनके संघर्ष का असर नए रखे गए सरकारी क्षेत्र के मज़दूरों पर भी पड़ रहा है और निकाले गए मज़दूरों पर भी। इस से चीन के सर्वहारा वर्ग के एक विशेष हिस्से, सरकारी क्षेत्र के मज़दूर में वर्ग चेतना के साथ साथ समाजवादी चेतना का भी प्रसार हुआ है।
एक मशहूर चीनी मज़दूर का कहना है कि दूसरे पूंजीवादी देशों के मज़दूरों के मुकाबले में चीनी मज़दूर वर्ग के अन्दर समाजवादी दौर और पूंजीवादी दौर दोनों के विशेष ऐतिहासिक अनुभव की बदौलत, ''तुलनात्मक प्रवीण वर्ग चेतना'' विकसित हुई है।
इस ऐतिहासिक अनुभव की वजह से सरकारी क्षेत्र के चीनी मज़दूरों के संघर्ष अक्सर तत्काल आर्थिक मांगों तक सीमित नहीं होते। बहुत सारे मजदूर नेता यह समझते हैं कि उनकी मौजूदा हालत सिर्फ व्यक्तिगत पूंजीपतियों की लूट की वजह से नहीं है। बुनियादी स्तर पर नज़र मारने से पता चलता है कि ये एक बड़े वर्ग संघर्ष में हुई ऐतिहासिक हार की वजह से है, जिसकी वजह से समाजवाद पर पूंजीवाद की आरजी जीत हुई। ऐसा सोचने लगे हैं ये मज़दूर।
काम से छँटनी किये गए मज़दूरों के एक नेता ने बताया कि ''समाजवाद में मज़दूर कारखाने के मालिक होते हैं, मज़दूर वर्गीय भाई बहन होतें हैं और अंधाधुंद छँटनी नहीं की जा सकती। पर निजीकरण के बाद मज़दूरों को 'दिहाड़ीदार मज़दूर' बना दिया गया है। वे अब मालिक नहीं रहे। अंधाधुंद छँटनी का यही असली कारण है।'' इस नेता के अनुसार मज़दूरों के संघर्ष व्यक्तिगत मामले या विशेष मांगों को मनवाने तक सीमित नहीं होने चाहिए। मज़दूरों का ''बुनियादी हित'' उत्पादन के साधनों पर जन-समुदाय के स्वामित्व की बहाली में है।
सरकारी क्षेत्र में काम कर रहे बहुत सारे मौजूदा मज़दूर ''पुराने मज़दूरों'' के बच्चे हैं, या उनके पास पुराने मज़दूरों के साथ काम करने का अनुभव है, या वे उन मज़दूरों के पडोस में रहते हैं। इस तरह सरकारी क्षेत्र के नये मज़दूर पुराने मज़दूरों के संघर्षों एवं उनके राजनैतिक अनुभव के प्रभाव में आए हुए हैं। यह २००९ में तौंग-हूआ स्टील मज़दूरों के निजीकरण विरोधी संघर्ष में दिखाई दिया।
तौंग-हूआ स्टील, जलीन राज्य के तौंग-हूआ नगर में सरकारी मलकियत वाला एक कारखाना था। सरकार ने १० बिलियन यूआन की कीमत वाले इस कारखाने को २ बिलियन यूआन में जिआन लौंग कम्पनी को बेच दिया था। जिआन लौंग के कब्जे के बाद ३६००० मज़दूरों में से २४००० की छाँटी कर दी गई। खतरे वाले कामों' पर मज़दूरों के वेतन में दो तिहाई कटौती कर दी गई। प्रबन्धक मज़दूरों को मनमर्जी से सजाएं देने और जुर्माना करने लगे।
२००७ में तौंग हूआ स्टील प्लांट के मज़दूर इसका विरोध करने लगे। इस संघर्ष के दौरान माओ के दौर का एक मज़दूर ''-मास्टर वू'' नेता के तौर पर उभर आया। वू ने मज़दूरों को स्पष्ट कर दिया कि असल मामला किसी विशेष समस्या का नहीं है बल्कि ''निजीकरण की राजनैतिक लाईन का है।''
जुलाई २००९ में मज़दूर आम हड़ताल पर रहे। जब जिआन लौंग के जनरल मैनेजर ने भी मज़दूरों को गोली मरवाने की धमकी दी तो गुस्साए मज़दूरों ने मैनेजर को पीट पीट कर मार डाला। मौके पर हाजिर राजकीय गवर्नर और हज़ारों हथियारबंद पुलिस कर्मियों में से किसी ने भी दखल देने की हिम्मत ना की। अब जिलीन राज्य सरकार ने स्टील कारखाने की निजीकरण की योजना रद्द कर दी। तौंग हूआ स्टील मज़दूरों की जीत चीन के कई हिस्सों में मज़दूरों के लिए प्रेरणा का एक बड़ा रत्रोत बन कर उभरी।
स्टील के कई और कारखानों में मज़दूरों के विरोध उठ खड़े और क्षेत्रीय सरकारों को निजीकरण के फैसले रद्द करने के लिए मजबूर कर दिया गया। दूर दराज के राज्यों में मज़दूर कार्यकर्ताओं ने तौंग-हूआ की जीत को अपनी जीत महसूस किया। उनको यह पछतावा रहा कि बहुत ही कम पूंजीपतियों को सबक सिखाया जा सका।
२०१० की गर्मियों में चीन की आटोइलैक्ट्रोनिक और कपड़ा उद्योगों में दर्जनों हड़तालें हुई। पूंजीपतियों को मज़दूरों की रोज़ाना दिहाडी बढ़ानी पड़ी। चीन की तीव्र गति की हड़तालों के नए दौर में दाखिल होने की सम्भावना को लेकर चीन के मुख्य धारा के विद्वान चिंता में है कि इस तरह चीन की सस्ती मज़दूरी की प्रथा समाप्त हो जाएगी और चीन की 'समाजिक स्थिरता' खतरे के मूंह में चली जाएगी।
उद्योगिक क्षेत्र के रोजगार में सरकारी मज़दूर सिर्फ २० प्रतिशत बनते हैं। उनकी गिनती अब २ करोड़ है। चीनी पूंजीवादी आर्थिकता के लिए ऊर्जा और भारी उद्योगिक क्षेत्र युद्धनैतिक महत्व वाले आधारभूत क्षेत्र हैं। चीनी मज़दूर वर्ग के आने वाले उभारों में सरकारी क्षेत्र के यह मज़दूर इस आधारभूत उद्योगिक क्षेत्र में अपनी हैसीयत की बदौलत बड़ी राजनैतिक ताकत बन कर उभरने का अभ्यास कर सकेंगे।
सब से ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह होगी कि चीनी सरकारी क्षेत्र के मज़दूर अपने श्रेष्ठ ऐतिहासिक और राजनैतिक अनुभव का फायदा उठा सकते हैं। क्रांतिकारी समाजवादी बुद्धिजीवीओं की मदद से चीनी सरकारी क्षेत्र के मज़दूर, कुल चीनी मज़दूर वर्ग का नेतृत्व अपने हाथ में ले सकते हैं और भविष्य में चीन के मज़दूरों के आंदोलनों को एक स्पष्ट क्रांतिकारी दिशा प्रदान कर सकते हैं।
''सुर्ख रेखा'' कम्यूनिसट क्रांतिकारी पब्लिकेशन है, जो लोगों को सामाजिक क्रांति की ज़रूरत एवं महत्व के बारे में जागृत करने के लिए सक्रिय है। ''सुर्ख रेखा'' इस पब्लिकेशन की तरफ से पंजाबी में निकाली जाने वाली दो मासिक पात्रिका है। इस पैम्फलिट में दी गई टिप्पणियां ''सुर्ख रेखा'' के स्तिम्बर-अक्तूबर अंक में से ली गई हैं।
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