Published using Google Docs
होली: Edited

होली खुशियों और भाईचारे का पर्व है, इस पर्व पर लोग आपसी गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे को रंग, गुलाल लगाकर होली मनाते हैं। होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, इस दिन होली जलाई जाती है और इसके अगले दिन रंग और गुलाल के साथ होली खेली जाती है, जिसे धुलंडी नाम से जाना जाता है। धुलंडी पर बच्चे-बड़े सभी मिलकर हंसते-गाते एक दूसरे के साथ होली खेलते, सारा दिन मौज-मस्ती में बिताते हैं। मंदिरों में भी होली भक्ति-भाव से गुलाल और फूलों के साथ खेली जाती है, मंदिरों, देवालयों में पूरे फाल्गुन माह होली के गीत-संगीत और भजन के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

होली का त्योहार मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि राक्षसों के राजा कश्यप और उसकी पुत्री दिति के दो पुत्र थे हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप। हिरण्याक्ष बलशाली तो था ही उसने ब्रह्मा की तपस्या से यह वरदान प्राप्त किया हुआ था कि न तो कोई मनुष्य, न भगवान और न ही कोई जानवर उसे मार सकेगा। ब्रह्मा से वरदान पाकर हिरण्याक्ष अत्यंत क्रूर और अत्याचारी हो उठा था। एक बार हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र के नीचे पाताल लोक में छिपा दिया। पृथ्वी को पाताल लोक से बाहर लाने के लिए सभी देवताओं ने मिलकर जल में निवास करने वाले भगवान विष्णु का आह्वान किया, भगवान विष्णु ने ‘वाराह’ नाम का अवतार रचा जिसका सिर तो सूअर का और बाकी शरीर मनुष्य का था। अपने इस अवतार में विष्णु ने पृथ्वी को पाताल से बाहर लाकर समुद्र तल के ऊपर स्थित कर हिरण्याक्ष का वध कर दिया।

इसे भी पढ़ें: अलग-अलग राज्यों में इस तरह मनाया जाता है होली का त्योहार

हिरण्याक्ष की मृत्यु से उसका भाई हिरण्यकश्यप बहुत दुखी हुआ। उसने भगवान विष्णु को पराजित करने के लिए भगवान ब्रह्मा और शिव जी की घोर तपस्या की और वरदान प्राप्त किया कि उसे कहीं भी मृत्यु का भय न रहे, न तो उसे मनुष्य ही मार सके न पशु, न वह दिन में मारा जा सके न रात में, न उसे घर के अंदर मारा जा सके न घर के बाहर, न वह जल में मारा जा सके न थल में और न ही उसे किसी अस्त्र से मारा जा सके, न किसी शस्त्र से।

ब्रह्मा से वरदान पाकर हिरण्यकश्यप मृत्यु से अभय हो गया और तीनों लोकों को प्रताड़ित करने लगा। हिरण्यकश्यप ने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया और लोगों से कहा कि वे किसी और को नहीं बल्कि मेरी पूजा करें, मुझे भगवान मानें। हिरण्यकश्यप के एक पुत्र भी था प्रह्लाद, वह बचपन से ही भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था। हिरण्यकश्यप ने जब पुत्र प्रहलाद को भगवान विष्णु का जाप करते देखा तो वह बहुत क्रोधित हुआ, पिता के क्रोध के बावजूद प्रहलाद की विष्णु भक्ति बंद नहीं हुई । क्रोधित हो हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को अपने पास बुलाया (होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती थी)। हिरण्यकश्यप ने होलिका से कहा कि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर जलती हुई अग्नि में बैठ जाए। भाई के आदेश पर जब होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया किन्तु वह अग्नि में जलकर राख हो गई और वहीं प्रहलाद भगवान विष्णु का नाम लेता हुआ अग्नि से बाहर निकल आया।

शास्त्रों के मुताबिक जिस दिन होलिका जली वह फाल्गुन माह की पूर्णिमा का दिन था। इसीलिए होली फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है।

बहिन होलिका के अग्नि में दहन हो जाने से हिरण्यकश्यप अत्यधिक क्रोधित हो उठा था। उसने गदा उठाई और भक्त प्रह्लाद से बोला-बहुत विष्णु का भक्त बना फिरता है, बता कहां है तेरा भगवान। प्रह्लाद ने कहा,  “मेरा भगवान तो सर्वशक्तिमान है, वह कण-कण में व्याप्त है। यहाँ भी है, वहाँ भी है।”

हिरण्यकश्यप ने एक खम्भे की तरफ इशारा किया और कहा, “ क्या इस खम्भे में भी है तेरा भगवान?” भक्त प्रह्लाद ने कहा, “हाँ।” यह सुनकर हिरण्यकश्यप अपनी गदा लेकर खम्भे की तरफ दौड़ा, वह खम्भे पर गदा से प्रहार करने ही वाला था कि खम्भे को फाड़कर उसमें से भगवान विष्णु ने नरसिंह के अवतार में, जो आधा नर था आधा सिंह प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप को उठाकर महल के प्रवेश द्वार की चैोखट पर, जो न घर का बाहर था न भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था न रात, नरसिंह अवतार में, जो न नर था न पशु, अपने जांघों पर रखकर जो न धरती थी न पाताल, अपने लंबे तेज नाखूनों से जो न अस्त्र थे न शस्त्र, हिरण्यकश्यप की छाती को फाड़ कर उसका वध कर दिया। इस तरह भगवान विष्णु की कृपा से राक्षसों हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप के अत्याचारों का अन्त हुआ और पृथ्वी पर फिर से सुख-शांति और उल्लास का वातावरण कायम हो गया।